सुशील कुमार का जन्म मध्यप्रदेश के सतना जिले के एक छोटे से गाँव पालदेव (नौबस्ता) में हुआ है , वो अपनी शिक्षा दीक्षा चित्रकूट में ही ली वो अपने घर में सबसे छोटे हैं , ये तीन भाई है इनसे दो बड़े करुणा सागर और रामदुलारे है।

सुशील की माँ का नाम श्री मती कमला और पिता श्री छोटेलाल है. सुशील कुमार का पुरा नाम सुशील कुमार पटेल है.... घर के और बाहर के लोग सुशील को प्यार से 'सुल्ली' कह कर बुलाते है....सुशील ने अपनी शुरुआत की शिक्षा विद्याधाम पूर्व माध्यमिक विद्यालय (जानकीकुन्ण्य चित्रकूट जिला सतना मध्यप्रदेश) में ली और इनका बचपना यही बीता ।दो-चार अध्यापिकाओ ने इनका बहुत ध्यान दिया जैसे श्री मती .पुष्पा सिंह,श्री मती शान्ती सिंह,श्री मती रेखा सिंह ,और सबसे ज्यादा श्री मती... विनीता पांडेय जी....धीरे धीरे ये बड़े हो रहे थे और इन्हें नये ओर अच्छे शिक्षको को पढ़ने को मिल रहा था। जैसे श्री सुनील पांडेय जी,श्री पप्पू सिंह जी,श्री अनिल सिंह जी,श्री विनोद कुमार पांडेय जी और सबसे ज्यादा तो श्री रामाशंकर मिश्र जी(प्राधानाचार्य)

सुशील का मन केवल पढ़ाई में ही नहीं बल्कि पढ़ाई के दौरान और भी बहुत कुछ मे ध्यान देते हैं सुशील का कहना है कि****** "मनुष्य का सर्वांगीण विकास तभी होगा जब वह पढ़ाई के साथ ही साथ अन्य कार्य में संलग्नता से लगा रहे"******सुशील को पढ़ाई के दौरान खेल कूद,गाना,राजनीति आदि में ज्यादा लगाव है.... वो विद्याधाम मे ही कई खेलों में भाग लेना चाहा लेकिन कुछ लड़कों के कारण किसी ने सुशील की तरफ ध्यान नहीं दिया.... लेकिन सुशील ने हार नहीं मानी....वो ८ वीं कक्षा में स्कूल में होने वाले चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़े जिसमें इनकी कारारी हार मिली इन्हें केवल २वोट मिलें ,लेकिन सुशील ने फिर हार नहीं मानी। विद्याधाम में सुशील के बहुत सारे मित्र बनें जिनमें कुछ खास भी थे जैसे -बेद (दादा जी के लड़के),शंशाक अग्रवाल,सत्यप्रकाश,शिवा तिवारी,आकाश तिवारी,रशिक बिहारी,तीरथ पांडेय,सत्यम गौतम,रोहित पटेल,आदि।

सुशील कुमार "नाना जी देशमुख"का नाम बचपन से सुनते आ रहे थे और बहुत बार उन्हें देखा भी जब सुशील ने "नाना जी" को पहली बार जो देखा वह पहले कभी नहीं देखा "नाना जी" के चेहरे में जो तेज था वो दूर से ही दिखाई दे रहा था! सिर्फ तेज नहीं बल्कि तेज के साथ-साथ जो सुगंध आ रही थी उसके आगे दुनिया का कोई भी 'इत्र'(Spray) उस सुगंध के आगे कुछ भी नहीं था। सुशील ने इस विषय में सोचा कि आखिर ये सब कैसे? तो कुछ दिनों तक सोचने के बाद पता चला कि महान व्यक्तियों को कोई 'इत्र' लगाने की जरूरत नहीं होती बल्कि वो अपने कर्मों से जो सुगंध उत्पन्न करते हैं वो कोई बनावटी या मिलावटी नहीं होती वो वास्तविकता होती है। उनसे मिलने के बाद सुशील भी देश के बारे में सोचने लगे। सुशील "नाना जी " के केवल नाम के बारे में ही नहीं बल्कि उनके काम के बारे में भी बहुत कुछ सुना और देखा था। एक दिन सुशील कुमार ने फैसला लिया कि वह नाना जी के द्वारा स्थापित किये गये स्कूल "सुरेन्द्र पाल ग्रामोदय विद्यालय चित्रकूट"में प्रवेश लेंगे और सुशील ने 9 वीं में ही ले लिया था।

वहां पढ़ने के बाद "नाना जी" के द्वारा आयोजित किये गये "समाज सेवा" से जुड़े। "नाना जी" का सपना था कि वे भारत के 50 0 ग्रामो को स्वावलंबी बनाये और 500के बाद 1000 और इसी तरह बढ़ते रहेंगे। सुशील "नाना जी" के सपने को अपना सपना मान कर इसमें काम करना शुरू किया और संस्थान द्वारा आयोजित सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेने लगे और बड़ी बड़ी संगोष्ठी में भी हिस्सा लिया और बहुत महा पुरुषों को सुना।

सुशील कुमार गाँवों में जाकर वही 5_6,7,7दिनो तक रहकर लोगों को जागरूक करते हैं। और संस्थान,स्कूल में आयोजित हर कार्यक्रम में भाग लिया ,सुशील 9वीं में ही कई खेलों में हिस्सा लिया और स्कूल की तरफ से बाहर भी खेलने गए,और स्कूल का नाम रोशन किया।

वो किसी भी तरह से 9वीं में पास हो गए. और 9वीं में ही "ए.सी.सी." का आवेदन कर दिया, और सुशील के बड़े भाईया(करुणा सागर)की शादी हो गई। और सुशील 10वीं में अच्छे से पढ़ने का सोचा लेकिन कई कारणों से वो सिर्फ सोचते ही रहें !

और सुशील कुमार को 10वीं में ही "ए.सी.सी."(3 एम.पी.बटालियन एन.सी.सी. रीवा) में कैम्प करने का मौका मिला,यह कैम्प चित्रकुट में ही आयोजित किया गया था*यहाँ से सुशील को बहुत कुछ सीखने को मिला.यहाँ से सुशील कुछ अलग ही सीखें जो उनके जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं,इन 10दिन के कैम्प में सुशील ने अपना सब कुछ लगा दिया.और इन्हें ऐसा लगने लगा कि कोई फतह हासिल कर ली.और 10वीं के पेपर भी आ रहे थे.जैसा भी था चल रहा था किसी तरह से .पेपर आ गए और पेपर भी दे दिए आखिर कार किसी तरह से इनके 10वीं में 62% बन गए।

पेपर के बाद मस्ती करने लगे,मस्ती के साथ -साथ उन्हें अपने भविष्य की चिंता होने लगी की वे आगे कौन से विषय का चयन करें लोगों से पूछते कि क्या सही है क्या गलत ?लेकिन किसी ने भी संतुष्ट नहीं किया.घर वालों का मन था कि लड़का हमारा विज्ञान(Science) विषय(subject) पढ़े.सुशील ने कहा ठीक है.सुशील उसी समय कोचिंग(coaching)कोचिंग जाने लगे कुछ दिनों के बाद उनका मन नहीं लगा फिर सुशील ने अपने मन की बात सुनी और माँ मंदाकनी नदी के तट पर शान्त माहौल में बैठ गए और सोचने लगे अपने भविष्य(future) के बारे में.. कभी अंदर से आवाज आई कि सुशील कुछ ऐसा कर जिससे नाम हो जाए....ऐसा नाम की पूरा देश जाने की "एक है सुशील" फिर सुशील ने एक कठिन वाणिज्य(commerce) विषय लेने का निर्णय लिया। सुशील का यह मानते हैं कि अपने भविष्य के कुछ फैसले खुद से लेना चाहिए जैसे एक शादी दूसरी आजादी यहाँ आजादी का मतलब है कि तुम्हें भविष्य में क्या करना है ,क्या बनाना है ये सब चयन के लिए आजादी जरूरी है।

कुछ दिनों बाद सुशील स्कूल जाने लगे और उन्हें अच्छा भी लग रहा था। सुशील 9वीं से ही अपनी

कक्षा के प्रमुख(class monitor) हुआ करते थे और अपनी राय लोगों को देते लड़कियों के सामने ज्ञान की बातें भी कर दिया करते जब लड़कियाँ ना होती तो तो लड़कों को देशदुनिया के बारे में बातचीत करते और नई जानकारी भी साझा करते लोगों को बहुत पसंद भी आता था।

कोई भी लड़का कुछ भी गलत -सही करते सब सुशील से पूछ कर करते, कक्षा का कोई भी लड़का लड़ाई-झगड़ा करता उसे कक्षा में ही सुलझा लिया करते, और खुद लड़कियों से लड़ाई कर लेते।सुशील अध्यापक के जाने के बाद खुद ही शुरू हो जाते और कहते आज का विचार ये रहा......10वीं में तो बहुत ज्यादा हो जाता था जिस दिन स्कूल ना जाते उस दिन कक्षा में लगता कुछ है ही नहीं। और सुशील को भी अच्छा लगता जो लोगों का प्यार मिलता था।

सुशील को लोग अलग-अलग नामों से जाना जाता है कोई कुछ तो कोई कुछ कह कर बुलाता है,जैसे मेजर,तूफानी प्रमुख है।