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फ्लेविया एग्नेस

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फ्लेविया एग्नेस एक भारतीय कानूनविद, लेखिका, और महिला-अधिकार कार्यकर्ता और वकील हैं जो मुंबई में वकालत करती हैं। वे वैवाहिक मसलों, तलाक और संपत्ति संबंधी कानून की विशेषज्ञ हैं और अल्पसंख्यक और कानून, लिंग आदी पर कयी पत्रिकाओं जैसे सबाल्टर्न अध्ययन, आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक, और मानुषी में दिखाई देते है। इनमें से कुछ लेख, लिखे और प्रकाशित किये गय है महिलाओं के आंदोलनों के संदर्भ में, घरेलू हिंसा और नारीवादी न्यायशास्त्र के मुद्दों पर कानून, और आदी के संदर्भ में। 1988 के बाद से, एग्नेस मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत कर रही है। घरेलू हिंसा के साथ अपने अनुभव ने उन्हे एक महिला-अधिकार वकील बनने के लिए प्रेरित किया। वह कानून को बनाने और लागू करने पर सरकार को सलाह देती है और वर्तमान में वे महाराष्ट्र के महीलाओ और बाल विकास मंत्रालय की प्रमुख सलाहकार है। मधुश्री दत्ता के साथ साथ, वे "मजलिस" की सह-संस्थापक है। "मजलिस" एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ "संघ" है। "मजलिस" एक कानूनी और सांस्कृतिक संघ या केंद्र है जिसका स्थपन महीलओ के अधीकारो के लिए अभियान के लिये किया गया था। मजलिस बेसहारा महिलाओ को उनके वैवाहिक अधिकार, बच्चे की हिरासत आदि के लिये कानूनी मदद कर रहा है। 1990 में स्थापना के बाद से, मजलिस 50,000 महिलाओं को कानूनी सेवाएं प्रदान कर चुका है और कयी ऐसे मुद्दों पर महिलाओं के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।

प्रारंभिक जीवन

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फ्लेविया एग्नेस मुंबई में पैदा हुई लेकिन कादरी नामक एक छोटे से शहर में मंगलोर, कर्नाटक में अप्नी चाची के साथ रहते बडी हुई। उन्के सेकेंडरी स्कूल सर्टिफिकेट (एसएससी) की परीक्षा की पूर्व संध्या पर, उनकी चाची का निधन हो गया और एग्नेस वहा से अदन या एदन, यमन चली गयी और एक टाइपिस्ट के रूप में वहा काम किया। उनके पिता की मृत्यु के पश्चात उनके परिवार मंगलौर लौटना पडा। चार अन्य बहनों के साथ वे हमेशा लड़कीयो के स्कूल में ही शिक्षित हुई। वह 20 साल की थी, जब उनकी शादी उनसे 12 साल बडे आदमी से हो गयी। वह आदमी उनहे शारीरिक रूप से पीडा देता था। यह उनकी आत्मकथा "मेरी कहानी ... टूटे हुए जीवन के पुनर्निर्माण की हमारी कहानी" का आधार है। अपने पति से अलग होने के लिए उनहे 14 साल लगे। इन १४ सालो मे उन्होने अपने बच्चों की हिरासत ली, अपनी शिक्षा पुर्ण की और एक वकील बनी।

इस शादी से उनहे तीन बच्चे हुए, एक बेटा और दो बेटियाँ। बच्चो की हिरासत के लिए कई अदालती/कानुनी मामलों के बाद, एग्नेस को दो बेटियों की हिरासत मिल गयी, लेकिन उनके बेटे ने अपने पिता के साथ रहने का फैसला किया। उनकी तलाक की कार्यवाही में ज्यादा समय लगा। एक ईसाई के रूप में, एग्नेस 'ईसाई विवाह अधिनियम' के तहत 'क्रूरता के आधार पर तलाक' की हकदार नही थी और इसके कारण उनहे न्यायिक तौर पर अलग होने के लिए भरतीय न्ययालय मे जाना पडा। तलाक के लिए कानूनी कार्यवाही की लंबाई से निराश होकर्, एग्नेस ने पूरी तरह से मामला सन्न 1986 में गिरा दिया। 90 के दशक में , उन्होने अपने उपनाम के रूप में उपकी माता का नाम 'एग्नेस' का उपयोग शुरू किया।

उनकी शादी से पहले, एग्नेस ने केवल अपनी एसएससी परीक्षा पूरी की थी। महिलाओं के आंदोलन में एग्नेस की अधिक से अधिक भागीदारी, लाभकारी रोजगार पाने के लिए, स्वतंत्र रूप से रहने के लिये और अपने बच्चों की कस्टडी पाने के लिए उन्होने आगे का अध्ययन करना चाहा। नतीजतन, एग्नेस ने स्नातक श्रीमती नाथीबाई दामोदर थ्रैक्रसे महिला विश्वविद्यालय (एसएनडीटी) की प्रवेश परीक्षा दी और 1980 में गौरव के साथ समाजशास्त्र में आर्ट्स (बीए) की उपाधी प्रप्त की। एग्नेस ने 1988 में एलएलबी पूरा किया और मुंबई उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास करने शुरू किया। 1992 में मुंबई विश्वविद्यालय से उनहोने अपना एलएलएम पूरा किया। फ्लेविया एग्नेस ने 1997 में भारतीय राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, बंगलौर (एनएलएसआइयू) से एम.फिल किया जिसके के लिये उन्होने कानून और लैंगिक समानता पर काम किया। उन्होने अपनी थीसिस के लिए, विभिन्न धार्मिक समुदायों में व्यक्तिगत कानूनों की राजनीति पर विशेष रूप से जांच की। यह थीसिस बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया।

उनके एम.फिल करने के बाद, एग्नेस एनएलएसआइयू में एक अतिथि संकाय बन गयी। फिर एग्नेस नेशनल लीगल स्टडीज की अकादमी और रिसर्च, हैदराबाद (एनएएलएसएआर) और जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में विजिटिंग फैकल्टी की एक सदस्य बन गयी। उन्हे आज भी भारत में और विदेशों के विश्वविद्यालयों में कानूनी महत्व के मुद्दों पर अतिथि व्याख्यान और पैनल चर्चा के लिए बुलाया जाता है। उन्होने चिकित्सा स्कूलों में भी पढ़ाया है।

महिलाओं के आंदोलन के साथ भागीदारी

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1978 में, एग्नेस ने खुद के लिए कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए और अपने पति से वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक साधन के रूप में स्कूल के बच्चों को निजी ट्यूशन देना शुरू कर दिया। जो बच्चे उनके पास ट्यूशन लेने आते थे, वे भी उनकी तरह टूटे परिवारों से आते थे। धीरे धीरे एग्नेस इन माताओं के साथ संपर्क में आयी और उन्हे यह पता चला कि आज भी महिलाओं के शारीरिक शोषण की समस्या भारत में प्रचलित है। एग्नेस को एक ईसाई होने के नाते हर दिन चर्च में जाना होता था। चर्च में ऐसे ही एक बात पर, जीन, एक छात्रा विरोधी बलात्कार अभियान और मथुरा मामले के बारे में बात कर रही थी। जीन ने भारत में मौजूदा महिलाओं के आंदोलन के बारेमे एग्नेस को अवगत कराया जिसके कारण एग्नेस महिला उत्पीड़न के खिलाफ फोरम (FAOW) की बैठकों के लिए जाने लगी।

महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ फोरम

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महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ फोरम,(FAOW), 1979 में स्थापित किया गया था जो पहले बलात्कार के खिलाफ फोरम के रूप में जाना जाता था। यह एक ऐसा अभियान समूह था जो पत्नी की पिटाई या शारीरिक पीडा, दहेज और यौन उत्पीड़न से जुड़े मुद्दों के साथ निपटत है। यह फोरम स्वायत्त महिला समूह का हिस्सा था। इन समूहों ने महिलाओं से छेड़छाड़, दहेज हत्या, बलात्कार और हिंसा के अन्य रूपों के मुद्दों को संबोधित किया। एग्नेस ने 1980 से फोरम की बैठकों के लिए जाना शुरू किया। उस समय चर्चा का विषय Turbhe क मामला था जिसमे, वाशी, मुंबई के एक उपनगर में एक निर्माण मजदूर के रूप में काम कर रही एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार हुआ था। इस समूह से केवल तीन महिलाओं को वाशी जाने के लिए स्वेच्छा से चुना गया जिसमे से एक एग्नेस भी थी। इन महिलाओं को वाशी मे उस परिवार की मदद के लिए, अधिकारियों के साथ निपटने के लिये और यह सुनिश्चित करने के लिए भेजा गया थ कि क्या उन वाशी की महिलाओं को उनके अधिकार मिले है या नही? Turbhe एग्नेस के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया। एग्नेस ने उस लड़की की समस्या और उसकी उत्पीड़न को गहराई से महसूस कीया और उस समस्या को पहचान लीया। एग्नेस ने वाशी मे एक बहुत ही सफल भाषण दीया जिसके बाद एक बहुत ही सफल सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ था। उसके बाद एग्नेस ने अपना 'सार्वजनिक जीवन' वहाँ से शुरू किया।

महिलाओं की भलायी के एग्नेस ने सक्रियता और विरोध प्रदर्शन की राह पीछे छोड़ दी और कानूनी प्रक्रिया को अगले कदम की तरह लेने का फैसला किया। 1990 में शुरू, मजलिस कानूनी प्रणाली (वैवाहिक विवाद, घरेलू हिंसा, आर्थिक अधिकार और संपत्ति बस्तियों सहित) के लिए महिलाओं की पहुँच का समर्थन करता है। मजलिस एक ऐसा संगठन है, जो महिलाओं को सशक्त बनाने चहता है। वह महिलाओं के समूहों के लिए कानूनी जागरूकता के कार्यक्रमों का आयोजन करके उन्हें उनके अधिकारों के बारे में सूचित करने की कोशिश करता है। इसके अतिरिक्त मजलिस नीतिगत हस्तक्षेप और जनता के अभियानों में संलग्न, बलात्कार पीड़ितों के लिए समर्थन प्रणाली और महिलाओं के मुद्दों पर लेख या किताबें के प्रकाशन के लिए मदद करता है। मजलिस का कार्यालय कलिना में है जिसमें, 25 वकीलों की टीम है। 500 से 600 महिलए मजलिस से हर साल बलात्कार और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों से निपट्ने के लिये सहायता लेती है। मजलिस के दो केन्द्र है। कानूनी केंद्र फ्लेविया एग्नेस के नेतृत्व मे पीडित महिलाओं ओर से मामले लेता है और उन्हें न्याय दिलाने में मदद करता है। मधुश्री दत्ता, एक दस्तावेजी फिल्म निर्माता के नेतृत्व में सांस्कृतिक केंद्र चलता है। मुकदमेबाजी के अलावा, मजलिस पुलिस अधिकारियों, गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों, शादी नियमों पर सलाहकारों और, बाल यौन अपराधों की रोकथाम अधिनियम (POCSO) आदि पर प्रशिक्षण आयोजित करता है।

मजलिस बाल अधिकारों और मानवाधिकारों अर्थात, बलात्कार, तलाक, वैवाहिक संपत्ति और हिरासत से संबंधित मामलों में हस्तक्शेप करता है। सामाजिक बदलाव के लिए मजलिस का एजेंडे है - व्यक्तिगत महिलाओं को अदालत में गुणवत्ता कानूनी प्रतिनिधित्व, वकालत और प्रशिक्षण के माध्यम से लोगो की मानसिकता को बदलना और लिंग अभियान और हस्तक्षेपों के माध्यम से विचारधारा विकसित करना।

एग्नेस का सबसे पहला प्रकाशित काम उनकी आत्मकथा थी जो 1984 मे प्रकाशित हुआ। उन्होने अर्थशास्त्र और राजनीतिक साप्ताहिक जैसी अकादमिक पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने के लिए जारी रखा है। एग्नेस ने महिलाओं के अधिकारों पर पुस्तकों के लिए कागजात का योगदान किया है। इंडियन एक्सप्रेस और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों को सेशन एड कॉलम मे लेख लिखे है। उन्होने इच्छामृत्यु, बलात्कार कानूनों और शक्ति मिल्स परीक्षण, समान नागरिक संहिता, मौत की सजा आदी के बारे में लिखा है। एग्नेस ने परिवार के कानून, महिलाओं के अधिकार और संपत्ति जैसे विषयो पर कई किताबें लिखी है।

प्रमुख किताबे

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1984 - मेरी कहानी ... टूटे हुए जीवन के पुनर्निर्माण की हमारी कहानी

1999 - कानून और लैंगिक असमानता: भारत में महिलाओं के अधिकारों की राजनीति

2001 - राष्ट्र, राज्य और भारतीय पहचान

2003 - महिलाए और भारत में कानून

2011 - परिवार कानून: खंड एक, परिवार कानून और संवैधानिक दावे

2011 - परिवार विधि द्वितीय: विवाह, तलाक, और वैवाहिक याचिका

2012 - वार्ता रिक्त स्थान: कानूनी डोमेन, लिंग चिंता, और सामुदायिक कन्स्त्र्क्स

पुरस्कार

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1992 - नीरजा भनोट अवार्ड, व्यक्तिगत समस्याओ पर काबू पाने और महिलाओं के अधिकारों की दिशा में योगदान के लिए।

1995 - सामाजिक मुद्दों पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म - भय की यादें

2000 - सर्वश्रेष्ठ मानव विज्ञान / नृवंशविज्ञान फिल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - अक्का पर खरोचे।

2014 - Uncha Maza Zoka पुरस्कार, महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए उपलब्धि हासिल करने पर।

https://en.wikipedia.org/wiki/Flavia_Agnes http://majlislaw.com/en/top/about-us/about/