हरबिन्दर सिंह

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हरबिन्दर सिंह का बचपन

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हरबिन्दर सिंह का जन्म ८ जुलाई १९४८, क्वेटा जो आज आधुनिक पाकिसतान में स्थित है। उन्होने फुटबॉल में जालन्धर ज़िले के कैन्टोनमेन्ट बोर्ड हाई स्कूल का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि उन्होने कॉलेज स्तर पर एथलेटिक्स में अपनी छाप छोड़ी फिर भी उन्होने हॉकी मे अपनी अनोखी पहचान बनाई।

उनकी पढ़ाई

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हरबिन्दर सिंह खालसा कॉलेज, अमृतसर मे पढ़े। उनका चयन कॉलेज का प्रतिनिधित्व करने के लिये हॉकी तथा एथलेटिक्स, दोनों के लिये हुआ। १९५९ में, कानपुर में आयोजित अन्तर विश्वविद्यालय क्रीडा प्रतियोगिता में उन्होने पँजाब विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। इसी साल उन्होने, त्रिवेन्द्रम में पँजाब राज्य का प्रतिनिधित्व कनिष्ठ एथलेटिक्स प्रतियोगिता मे भी किया, १९६१ के अन्तर विश्वविद्यालय हॉकी प्रतियोगिता और राष्ट्रीय हॉकी चैमपियनशिप १९६१, हैदराबाद में तथा १९६२ में, भोपाल में प्रतिनिधित्व किया।

इसके पश्चात उनकी नियुक्ति भारतीय रेल सेवा में हो गयी। वह १९७२ तक भारतीय रेल का प्रतिनिधित्व, राष्ट्रीय हॉकी चैमपियनशिप में करते रहे। १९६७ में संगरूर जिले की ओर से खेलते हुए, ४ × १०० मीटर रिले रेस का गोल्ड मेडल का ख़िताब जीता। उनका दो स्वर्ण पदकों का भिन्न -भिन्न खेलों में जीतना एक अद्वितीय उपलब्धि थी। १९६१ में उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के साथ न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया दौरे के साथ ही अपना अंतरराष्ट्रीय करियर शुरू किया, जहाँ वे टीम के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे।

उन्होने १९६१ से १९७२ तक १२ वर्षों की लम्बी अवधि के दौरान तीन ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया था ।

टोक्यो १९६४ में उन्हें स्वर्ण पदक, सबसे अधिक गोल करने हेतु प्रदान किया गया [ कुल नौ गोलों में से उनके पाँच गोल थे]। इसके बाद मेक्सिको, १९६८ में, मेक्सिको के ख़िलाफ़ हैट-ट्रिक तथा अधिकतम् गोल करने के लिये कांस्य पदक दिय गया। उन्हें सेन्टर फोरवर्ड़ के रूप में म्यूनिख, (१९७२) "विश्व इलेवन" में - कांस्य पदक से नवाज़ा गया। एशियाई खेलों में हरबिंदर सिंह १९६६ में स्वर्ण पदक टीम और १९७० में रजत पदक टीम (कप्तान के रूप में) के सदस्य थे।

श्री हरबिन्दर सिंह ने १९६३, फ्रांस के ल्यों में अंतरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंन्ट और १९६६ , हैम्बर्ग, पश्चिमी जर्मनी में भी भाग लिया। भारत ने दोनों टूर्नामेंट जीते।

१९८६ में उन्हें एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली महिला टीम के मुख्य कोच के रूप में चुना गया था। उन्होंने ध्यान चंद एवं बलबीर सिहं जैसे सुविख्यात ओलंपिक सेंटर फॉरवर्ड्स का स्थान लिया और उन्होने अपने आप को प्रमाणित किया। उन्होंने अपने स्पोर्ट्स कैरियर के दौरान विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ३६ स्वर्ण, ८ रजत और ४ कांस्य पदक जीते।

उनके पुरस्कार

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उन्हें १९६७ में अर्जुन पुरस्कार (अर्जुन अवॉर्ड), १९६६ में 'रेल मंत्री अवार्ड' और १९७२ में 'रेलवे का सर्वश्रेष्ठ स्पोर्टमैन' सम्मान से सम्मानित किया गया।

वह पिछले ५४ वर्षों से हॉकी के खेल से जुड़े हुए हैं। वह हॉकी के सर्वोत्तम खिलाड़ी, कोच, चयनकर्ता व आयोजक के रूप में जाने जाते है।

साँचा:Http://www.sikhsinhockey.com/Default.aspx?id=594324

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