सदस्य:Yashsaxena208/भारत में तिब्बती संस्कृति

1960 में  मैसूर की सरकार (उस समय का कर्नाटक ) ने मैसूर की बाइलाकुप्पे जिला में लगभग तीन हज़ार एकर ज़मीन अवांटित की थी । इससे पहली तिब्बतन निर्वासन निपटान, लुग्सुंग संदुपलन्ग का प्रारम्भ हुआ । कुछ वर्षों बाद एक और निपटान का उद्घाटन हुआ जिसे तिब्बतन डीके लर्सए के नाम से जाना जाता है ।इसके बाद तीन और ऐसे निपटान खरे किये गए और कर्नाटक में भारत की सबसे बड़ी तिब्बतन आबादी घोसित की गयी  ।रबगेलिंग उपनिवेश हुन्सुर के पास स्तिथ गुरुपुर गाँव में बना , ढोंडेनलिंग उपनिवेश की स्तापना कोल्लेग के पास ओढेरपल्या में हुई और दोएगलिंग उपनिवेश की स्तापना उत्तर कनाडा के मुंडगो में हुई | बीर तिब्बतन उपनिवेश की स्तापना बीर, हिमाचल प्रदेश में हुई । कई और प्रदेशों ने भी तिब्बतन शरणनार्थियों को आश्रय दिय।

भारत की सर्कार ने तिब्बतन शरणार्थियों के लिए विशिष्ठ विद्यालय बनवाये जिनमें उन बच्चों को मुफ्त का शिक्षा , स्वास्थ  देखभाल एवं छत्तरवर्त्ती जो विद्यालय में अववल  आते थे । मेडिकल एवं सिविल इंजीनियरिंग की कुछ सीट्स भी तिब्बतन के लिए नियुक्त किया जाता है । तिब्बतन भारत में रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट के बलबूते रहते हैं जिसे हर साल या हार आधे साल में नवीकृत करवानी पड़ती है । हर १६ साल से ऊपर के तिब्बतन के पास यह सर्टिफिकेट होना ज़रूरी है । नए शरणार्थियों को यह सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता । भारतीय सरकार टिएबटन को एक साल बाद " ईलो बुक" देती है जिसके बलबूते वह विदेश जा  सकते हैं ।

ओरिजिन एंड नुमबर्स 

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सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन टिबेटनस को एक " ग्रीन बुक" देती है जो शरणार्थियों के लिए पहचान प्रमाण पत्र का काम करती है । २००९ में सी.टी.ए  के सर्वेक्षण पे आधारित , १२७९३५ तिब्बतन प्रवासी मिले थे जिसमे ९४२०३ भारत में , १३५१४ नेपाल में , १२९८  भूटान में और १८९२० बाकि दुनिया में पायी जाती है । मगर , वो १५०००० के करीब अनुमानित किये जाते हैं ।

कई तिब्बतन यूनाइटेड स्टेट्स , कनाडा , यूनाइटेड किंगडम , स्विट्ज़रलैंड , नॉर्वे फ्रांस , ताइवान एवं ऑस्ट्रेलिया में भी प।ये जाते हैं ।

पहली लहर 

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१९५९ के तिब्बतन विद्रोह के दौरान , दलाई लामा एवं   उन्के कुछ' सरकारी अधिकारी भारत भाग आये'।  १९५९ से १९६० के दौरान करीब ८०००० तिब्बतन ने उनका पीछा  करके भारत में हिमालयाज के दवार से प्रवेश करने की कोशिश की । यह तादात १०००- २५०० प्रति वर्ष से लेकर १०००० प्रति वर्ष हो गयी। इस तादात पे शर्नार्थियोंन का भारत में आगमन करने को "एक्सोडस" कहा जाता है । १९६१ में यूनाइटेड नेशन्स ने तिब्बतन लोगों की इस संख्या में आस पास के देशों में संचार करने के कारन उनपर हो " अधिकार के दुरूपयोग " का सबूत पाया । 

दूसरी लहर 

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१९८० में तिब्बतन लोगन का अपने देश छोड़ने की एक दूसरी लहर दिखी जब डिबेट ने अपने द्वार दूसरे देशों के साथ व्यापर के लिए खोले । कहा जाता है की यह बढ़ती राजनितिक दबाव का नतीजा है । १९८६ से १९९६ के दौरान करीब २५००० और तिब्बतन ने भारत में प्रवेश किया । इस संचार को अक्सर "सेकंड एक्सोडस" के नाम से जाना जाता है । 

विकीलीक्स के मुताबिक , १९८० से नवम्बर २००९ के बीच करीब ८७०९६ तिब्बतन ने भारत के धर्मशाला में आगमन किया और ४६६२० भारत घूम कर तिब्बत लौट गए । अधिकतर लोग जो रुक गए उनमें बच्चे थे जो भारत में स्तिथ तिब्बतन  विद्यालयों  में पढ़ रहे थे । 

तीसरी लहर 

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रिचर्ड मार्टीनी द्वारा  २००८ में बनायीं गयी दस्तावेज़ी में यह दिखाया गया है की हर साल करीब ३०००-४५०० तिब्बतन तिब्बत छोड़ कर धर्मशाला जाते हैं । अक्सर ये नए अप्रवासी बच्चे होते हैं जो भारत के तिब्बतन विद्यालय के लिए भारत आते हैं । कई राजनितिक कार्यकर्ता एवं भिक्षु भी तिब्बत छोड़कर भारत आ गए हैं । नए आये हुए तिब्बतन एवं भारत जन्मे तिब्बतन में काफी सांस्कृतिक अंतर है । भारतीय तिब्बतन नए आये हुए तिब्बतन जो चीनी गाने गाते हैं , सिनेमा देखते हैं अवं मंदारिन में बात करते हैं को बिलकुल पसंद नहीं करते हैं । दलाई लामा खुद काफी भाषाएँ जानते हैं और सबको अन्य भाषाएँ सिखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं । 

भारत में 

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भारत में तिब्बतन के सबसे  अहम संगठन का नाम सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन है । यह धर्मशाला के मैकलॉडगंज में स्तिथ है । यह संगठन १० देशों के  कार्यालय का प्रबंधन करता है । यह कार्यालय तिब्बतन के लिए वाणिज्य दूत का काम करते हैं । यह कार्यालय नई दिल्ली, भारत; न्यूयार्क, संयुक्त राज्य अमेरिका, जिनेवा, स्विट्जरलैंड; टोक्यो, जापान; लंदन, यूके; कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया; पेरिस, फ्रांस; मास्को, रूस; प्रिटोरिया, दक्षिण अफ्रीका; और ताइपेई, ताइवान में स्तिथ है । कई गैर सरकारी संगठन तिब्बतन लोगों की संस्कृति अवं आजादी  पर काम करती है । 

नई दिल्ली में एक सीट के साथ केंद्रीय तिब्बती स्कूल प्रशासन एक स्वायत्त संगठन उद्देश्य भारत में रहने वाले हैं, जबकि संरक्षण और उनकी संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने तिब्बती बच्चों की शिक्षा के लिए भारत में, की स्थापना का प्रबंधन और सहायता करने के लिए स्कूलों के साथ 1961 में स्थापित किया गया है । अपनी खुद की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, 2009 के रूप में प्रशासन तिब्बती आबादी की एकाग्रता के क्षेत्रों में 71 स्कूलों चल रहा था, पूर्व प्राथमिक से बारहवीं कक्षा के लिए रोल पर लगभग 10,000 छात्रों के साथ, और 554 शिक्षण स्टाफ के साथ। वर्ष 2009 में तिब्बती बच्चों के गांवों बैंगलोर (भारत) जो "उच्च शिक्षा के लिए दलाई लामा संस्थान" नामित किया गया था में निर्वासन में तिब्बती पहले उच्च कॉलेज की स्थापना की। इस कॉलेज के लक्ष्यों को तिब्बती भाषा और तिब्बती संस्कृति, साथ ही विज्ञान, कला, परामर्श और सूचना प्रौद्योगिकी को पढ़ाने के लिए कर रहे हैं । 

भारत में बस्तियों से प्रवासन
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भारत में तिब्बती बस्तियों से युवा लोगों के प्रवासन चिंता का एक गंभीर कारण है, क्योंकि यह हाशिए के साथ निर्वासन में तिब्बती पहचान और संस्कृति का खतरा है। तेनजिन लक्ष्य  के अनुसार, सबसे निर्वासन बस्तियों वर्ष आयु वर्ग के लोगों द्वारा संरक्षित कर रहे हैं, बस्तियों में कुछ स्थापित स्कूलों के विद्यार्थियों की कमी के लिए बंद करने के कगार पर हैं, और स्नातकों समुदाय में रोजगार के अवसरों की कमी की वजह से भारतीय शहरों के लिए बिखरने रहे हैं। नवांग ठोगमेड , एक सीटीए अधिकारी के अनुसार, नव भारत में तिब्बतियों के पलायन के लिए सबसे अधिक बार बार उद्धृत समस्याओं भाषा बाधा, भारतीय भोजन के लिए अपने नापसंद करते हैं, और गर्म जलवायु, जो तिब्बती कपड़े असहज बनाता है। कुछ बंधुओं भी डर है कि उनके तिब्बती संस्कृति भारत में पतला किया जा रहा है। भारतीय टेलीविजन हिन्दी और अंग्रेजी में चलाता है।