जनजाति कोतवाल

(1) मध्यप्रदेश राज्य बड़वानी, धार, अलीराजपुर, झाबुआ एवं खरगोन, खंडवा आदि आस-पास के सभी जिले आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होकर प्रत्येक जिले के अधिकंश गाँव एवं वनांचलों में भील, भीलाला, बारेला एवं तड़वी जनजाति के साथ ही अनुसूचित जाति की उपजाति कोतवाल समाज के लोग भी समान भौगोलिक क्षेत्र एवं समान परिवेश में निवास करते हैं।

(2) यह कि मध्यप्रदेश के लगभग 17 जिलों में अनुसूचित जनजाति की उपजाति जैसे भील, भीलाला, बारेला एवं तड़वी और अनुसूचित जाति की उपजाति कोतवाल (कोटवाल) समुदाय की संस्कृति, परम्परा, भाषा-शैली वेशभुषा, खान-पान, रहन-सहन, तीज-त्यौहर, शादी-ब्याह (छाक), अंतिम संस्कार, दशाकर्म (बारवों) आदि सामाजिक एवं मांगलिक कार्यक्रम समान रूप से प्रचलित हैं।

(3) यह कि भील, भीलाला, बारेला, तड़वी एवं कोतवाल (कोटवाल) समाज का वाद्य यंत्र क्रमशः ढोल-मान्दल होकर एक साथ समानांतर बजाये जाते हैं। तथा उक्त दोनों वाद्य यंत्र आदिवासी (जनजाति) समाज में प्रचलित होकर अपनी पहचान के प्रतिक हैं।

(4) अनुसूचित जनजाति भील, भीलाला, बारेला, तड़वी एवं अनुसूचित जाति कोतवाल (कोटवाल) समुदाय प्रकृति पुजक होकर समान रूप से धार्मिक आस्था रखते हैं।

(5) उक्त दोनों समाजों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि व मजदूरी हैं।

(6) यह कि गाँव का प्रमुख (मुखिया), पटेल, वारती एवं कोतवाल आदि जिन्हे पंच परमेश्वर कहा जाता हैं, मिलकर गाँव के हित में आवश्यकतानुसार बैठक, चिंतन-मनन एवं अन्य कार्य योजना बनाने और समाजिक तथा मांगलिक कार्यक्रमों के साथ सामाजिक त्यौहार, शादी-ब्याह, नुक्ता (बारवों) आदि के सफल आयोजन हेत सर्व सहमति से निर्णय लिया जाता है, और उक्त समस्त लिये गये निर्णय के अनुरूप कोतवाल समाज भी नियमों का पालन करते हुए समस्त आयोजन करतें हैं।

(7) उक्त दोनों समाज के कल्याण, सुख-दुःख में सहयोग, शादी-ब्याह, दशा कर्म (बारवों) और सामाजिक विवादों को सुलझाने आदि में तन-मन-धन से परस्पर सहयोग प्रदान करतें हैं।

(8) उक्त समस्त जनजाति समुदाय एवं कोतवाल समुदाय की कुलदेवी पूर्ण रूप से एक ही हैं।

(9) क्योकि कोतवाल समाज में अशिक्षा एवं अज्ञानता के चलतें सामाजिक एवं शैक्षणिक स्थिति काफी दयनीय होने तथा आजादी के बाद त्रुटिवश सर्वे एवं बदोबश्त के दौरान बलाई (अनुसूचित जाति) समाज के साथ जोड़े जाने से वास्तविक जाति कोतवाल होने वंचित हैं जो कि अनुसूचित जनजाति की मूल पहचान रखते हैं, साथ ही वास्तविक उपजाति कोतवाल होकर ग्रामीण क्षेत्र में आज भी कोतवाल (कोटवाल) अथवा चौकिदार आदि के नाम से जाना पहचाना जाता हैं।

(10) उपरोक्त समानताओं एवं विशेषताओं के फलस्वरुप ही महाराष्ट्र राज्य शासन के द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 के तहत अनुसूचित जनजाति की सूची क्रमांक 47

पर अंकित एवं गुजरात राज्य के अनुसूचित जातियों ओर अनुसूचित जनजातियों आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 के तरह अनुसूचित जनजातीयों की सूची क्रमांक 29 तथा कर्नाटक राज्य की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 तथा 1991 के अधिनियम संख्या 39 द्वारा अंतः स्थापित अनुसूचित जातियों की सूची क्रमांक 48 पर अंकित होकर कोतवाल (कोटवालिया) को अनुसचित जनजाति की मान्यता दी गई हैं।

इन्ही तथ्यों एवं प्रामाणिकताओं के अधार पर मध्यप्रदेश के राज्य में भी कोतवाल (कोटवाल) समुदाय को अनुसचित जनजाति की श्रेणी में शामिल किये जाने की महती आवश्कता है। साथ हि उक्त समानताओं, विशेषताओं एवं विशेष परिस्थितियों के बावजूद भी हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक जीवन पर विपरित प्रभाव पड़ रहा हैं तथा जनजाति की मूल पहचान से वंचित होने के कारण शासन की जन हितेषी योजनाओं का लाभ जैसे शिक्षा रोजगार, वन अधिकार पत्र एवं जमीन नामांतरण आदि सुविधाओं से वंचित हैं।


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