सदस्य वार्ता:हिन्दु परम्परा

                                               "हिन्दु परम्परा"

हिन्दु परम्परा का इतिहास सम्पूर्ण विश्व भर मे सबसे पुराना इतिहास है । जब पुरे विश्व भर की विभिन्न सभ्यताये केवल अपना जन्म मात्र लेने की कगार पर ही थी,हिन्दु परम्परा व सभ्यता अपना मूल स्वरूप सन्जोए विश्व भर को एक आदर्श दर्पण की तरह अपनी प्रगति की परिधि मे सन्जोए उनका मार्ग दर्शन कर रही थी। हिन्दु परम्परा एक सोच है,एक स्वच्छ विचार है,एक स्वस्थ सम्पूर्ण कार्य शैली है जिसका पर्दार्पण हिन्दु ॠषि मुनियों की हजारो वर्षो की तपस्या के परिणाम स्वरूप ही सम्भव हो सका। =="अतिथि देवो भव"== इस परम्परा के अन्तर्गत अपने को विलिन कर पाना एक सहज़ कार्य नही इस परम्परा के अन्तर्गत अतिथि भी भगवान तुल्य है यह किसी दूसरी सभ्यता या परम्परा के मूलविचारो मे तथाकथित तौर पर नही पाया जाता कहने का तात्पर्य यह की इस परम्परा के जो मूलमन्त्र है वह इतने सहज् व श्रेष्ठ है कि जिनका पालन करने वाला अगर सचा अनुसरणी है तो वह अपने आप को देवता तुल्य होने से कभी नही रोक सकता भले ही वह ऐसा कदाचित नही चाहता, हिन्दु परम्परा के स्वच्छ विचार,्सहज कार्यप्रणाली,दूसरो के प्रति आदर,सम्मान व प्रेम की भावना,सदाचार, सुविचार ना जाने इस तरह की असंख्य व्यवहारिक गतिविधियां कब उसे देवता तुल्य बना दे यह उसे भी ज्ञात नही पडता । इस परम्परा का अनुसरण करने वाला स्यम में इतना द्ड़संकलपित व अनुशाषित होता है की उसे कभी भी दूसरो पर आश्रित नही रहना पडता उसमें सदैव दूसरो के प्रति स्नेह भाव,आदर-सतकार परम्परागत तौर पर भरा रहता है जिसके कारण इस परम्परा के अनुयाई सदैव दूसरो के हित के बारे में ही सोचते रहते हैं। राजेश सोयल दुवारा इन विचारो का रखना उतना ही महत्वपर्ण है जितना की समयानुसार अपने को ढाल लेना आज चूंकि परंम्पराये क्षत विक्षित होती जा रही है मानवता एक अन्देरे कूप की और अग्रसर है मानव सयंम मानवता का शत्रु बन बैठा है मानव दिन प्रतिदिन स्वार्थ के घनघोर बवण्डर में फसता चला जा रहा है ऐसे में केवल वही सभ्यताऐं व परम्पराऐं जीवित रहेंगी जिनका अनुसरण करने वाले सही रूप में मानवता के कल्याण हेतु सदैव त्तात्पर्य हैं इसी का ज्वलंत उदाहरण है "हिन्दु परम्परा" जन्मों-2 तक ना तो ये कभी मिटि है और ना कभी मिटेगी।

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