थिएटर की दुनिया यानी मनोरंजन के साथ रोजगार


थिएटर के कार्य जगत में निर्देशन, निर्माण, सैट की डिजाइनिंग, वेशभूषा की डिजाइनिंग, कथा-लेखन, पटकथा-लेखन और रंगमंच की प्रकाश व्यवस्था शामिल है। प्रत्येक पहलू अपने आप में अध्ययन का अलग क्षेत्र है तथा इसमें तकनीकी और अकादमिक दोनों प्रकार के कौशल शामिल हैं। प्रत्येक कौशल की नाटक में बराबर की व महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रोडक्शन में कार्यक्रम की संकल्पना तैयार करने एवं कलाकारों का चयन करने का कार्य शामिल है। इन कलाकारों में प्रोडक्शन सहायक और तकनीकी क्षेत्र से जुड़े कार्यपालक (एक्जीक्यूटिव) का चयन किया जाता है। निर्देशन सबसे कठिन कार्य है। निर्देशक इस टीम का कप्तान होता है, जो रंगमंच तथा रंगमंच से इतर तकनीकी पक्षों से संबंधित प्रमुख निर्णय लेता है। जैसे - नाटक अभिनीत करने का क्षेत्र और सैट की डिजाइनिंग। निर्देशक पर अभिनेता और अभिनेत्री के चयन की जिम्मेदारी होती है। इसके बाद उसे नाटक को समझना पड़ता है तथा विभिन्न पात्रों को आकार देना होता है। कथा और पटकथा-लेखन अन्य रोचक कार्य हैं, जिसके लिए नाटक की भाषा पर आधिपत्य होना चाहिए तथा लेखन की क्षमता होनी चाहिए। साथ ही किसी अन्य स्रोत (साहित्यिक विधा) से लोकप्रिय कथा को नाटक के अनुकूल बनाने की क्षमता होनी चाहिए। पटकथा लेखक थिएटर की बाधाओं को ध्यान में रखकर लिखता है। वह सुनिश्चित करता है कि पटकथा स्रोता/दर्शकगणों की प्राथमिकताओं की पूर्ति करती है। साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि ऐसा करते समय कथा का मूल भाव या उसकी आत्मा ही लुप्त न हो जाए। कला निर्देशन और वेशभूषा डिजाइनिंग- ये दो अन्य सर्जनात्मक पहलू हैं। कला निर्देशन मूलत: रंगमंच के उपयोग की समझ-बूझ से संबंधित है। इसमें रंगमंच के निर्माण से जुड़े तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन की संकल्पना तैयार करना शामिल है। विद्यार्थी को इस संबंध में पूरा प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्पन्न करना पड़ता है। इसमें वास्तुशिल्प, आंतरिक सज्जा तथा प्रत्यक्ष संचार/संप्रेषण का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। वेशभूषा की डिजाइनिंग में रंगों तथा अभिनेता की भूमिका को समझने की कोशिश की जाती है। इस कार्य में शैली और अभिव्यक्ति निर्णायक अंग हैं। डिजाइनर से उम्मीद की जाती है कि वह कथानक और पटकथा को ध्यान में रखते हुए रंगमंच का डिजाइन तैयार करें। बारंबारता, वेशभूषा, केश-सज्जा, आभूषण, जूते-चप्पल आदि तथा अन्य सामग्री इस कार्य का अनिवार्य भाग है। सैट के डिजाइनर को निर्माण के दृश्यात्मक आकर्षण (अपील) उत्पन्न करने की जिम्मेदारी निभानी होती है। उन्हें दृश्यों की जानकारी दी जाती है ताकि सैट सही ढंग से तैयार किए जा सके। नट, अभिनेता, पेंटर, बढ़ई, तकनीशियन इस दिशा में समस्त आवश्यक उपकरण जुटाने के लिए कार्य करते हैं। प्रकाश व्यवस्था एक उभरता हुआ व्यवसाय है। कार्य की मात्रा क्रमबद्ध रूप से रंगमंच के 'शो' की संख्या पर निर्भर करती है। इस व्यवस्था में विविधता आ जाने से इस क्षेत्र का भविष्य उज्‍जवल है। ध्वनि (साउंड) तकनीशियनों की आज काफी मांग है। विशेष रूप से यह मांग इस कारण बढ़ रही है कि संगीत से नाटक की आत्मा मंच पर अभिव्यक्त होती है। थिएटर क्षेत्र में शामिल होने के लिए निम्नलिखित योग्यता होनी चाहिए - कार्य के प्रति प्रतिबद्धता और कार्य का दबाव सहने की क्षमता, शांत स्वभाव, सर्जनात्मक क्षमताओं एवं प्रबंधकीय तथा प्रशासनिक जानकारी का मिश्रण, लोगों के बारे में निर्णय लेने, उन्हें समझने की क्षमता, संप्रेषण कौशल और भाषा पर अधिकार, लोक-रुचि का ज्ञान तथा देखने-समझने की प्रबल शक्ति। ध्वनि तकनीशियन और इंजीनियरों के मामले में तकनीकी योग्यता तथा इलेक्ट्रॉनिक्स की जानकारी होना जरूरी है। थिएटर के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए सर्वाधिक अनिवार्य गुण यह है कि व्यक्ति प्रतिभा-संपन्न होना चाहिए, छोटी आयु में ही इस बात का पता चलता है तथा वर्ष-दर-वर्ष प्रतिभा परिपक्व होती जाती है। वषों तक कठोर श्रम के बाद असाधारण रूप से प्रतिभा-सम्पन्न कलाकार अपना स्थान बना पाता है। इसके अलावा व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण लेना भी महत्वपूर्ण है। यद्यपि इस व्यवसाय के लिए किसी विशिष्ट शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं है, फिर भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रवेश के लिए जरूरी है कि छात्र स्नातक हो तथा स्कूल या कॉलेज स्तर पर कम से कम दस नाटकों में भाग ले चुका हो। ध्वनि (साउंड) रिकॉर्डिग के मामले में भौतिकी या इलेक्ट्रॉनिक्स में डिग्री प्राप्त करना जरूरी है। छात्र में फोटोग्राफी के प्रति रुचि हो और उसने चलचित्र विज्ञान (सिनेमेटोग्राफी) में डिग्री प्राप्त की हो। रंगमंच के अधिकांश कलाकार व्यावसायिक थिएटर कंपनियों तथा ऑल इंडिया रेडियो, टेलीविजन स्टूडियो, मूवी स्टूडियो, फिल्म डिवीजन, गीत एवं नाटक डिवीजन आदि जैसे अर्ध-थिएटर संस्थानों में रखे जाते हैं। जो लोग मनोरंजन उद्योग में कुछ नया कर दिखाना चाहते हैं, वे थिएटर के माध्यम से लोगों में लोकप्रिय होते हैं। घर में गैर-सरकारी (प्राइवेट) प्रशिक्षण देने तथा स्वतंत्र रूप से नाटक लेखन और निर्देशन के रूप में स्व-रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध हैं। थिएटर में लोगों को बहुत ज्यादा पारिश्रमिक नहीं मिलता और जो लोग अपनी कलात्मक इच्छा को संतुष्ट करना चाहते हैं, उनकी वित्तीय स्थिति सुदृढ़ होनी चाहिए। यदि किसी कलाकार को दर्शकों का संरक्षण प्राप्त है, केवल तभी यह व्यवसाय लाभदायी हो सकता है। थिएटर की दुनिया काफी बड़ी है, जहां हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है। यहां परदे के पीछे कार्य करनेवाले कलाकारों के मिले-जुले प्रयासों का ही परिणाम सामने आता है।


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