सदस्य वार्ता:Shivdan deshnoke/प्रयोगपृष्ठ
चालकनेची हिन्दू देवी
मामडि़या नाम के एक चारण थे। मामड़जी जी निपुतियां थे उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की थी ।
एक बार अपने घर से कही बहार जा रहे थे। उस समय चारण जाति की कन्याए जो सामने से जा रही थी,उन कन्याओ ने मामड़जी को देख रास्ते मे अपूठी खड़ी हो।गई क्योकि सुबह के समय निपुतियें व्यक्ति का कोई मुह देखना नही चाहता। इस बात का रहस्य मामड़जी को समझ मे आ गया, वह दुखी होकर वापिस घर आ गए। मामड़जी के घर पर आदि शक्ति हिंगलाज का एक छोटा सा मन्दिर था, वहा पुत्र कामना से अनशन धारण कर सात दिन तक बिना आहार मैया की मूर्ति के आगे बेठे रहे।
आठवे दिन उन्होंने दुखी होकर अपना शरीर त्यागने के लिए हाथ मे कटारी लेकर ज्युहीं मरनेलगे उसी समय शिव अर्धांगनी जगत जननी गवराजा (हिंगलाज) प्रसन्न हुई, उन्होंने कहा - तुने सात दिन अनशन व्रत रखा हे, इसलिए मे सात रूपों मे तुम्हारे घर पुत्री रूपों मे अवतार धारण करुगी और आठवे रूप मे, भाई भैरव को प्रगट करुँगी, तुम्हे मरने की कोई आवश्यकता नही हे, इतना कह कर मातेश्वरी अंतरध्यान हो गई। माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। देवी हिंगलाज माता सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने 8वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़ (मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया था । ये सात बहिने थी- 1-आवड, आवड बाई 2-गुलो- गेल,(गुलीगुलाब बाई) 3-हुली –होल,हुल(हुलास बाई) 4-रेप्यली-रेपल,रेपली(रूपल बाई ) 5-आछो- साँची,साचाई (साँच बाई ) 6-चंचिक - राजू,रागली (रंग बाई) और 7-लध्वी- लंगी, खोड़ियार (लघु बाई) सबसे छोटी, आदि नामों से सातों बहनों कर जन्म हुवा। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी।जिसमे महामाया आवड़ व सबसे छोटी लघु बाई ,खोड़ियार सर्वकला युक्त शक्तियाँ का अवतार बताया गया है। इस प्रकार आठवे रूप मे भाई का जन्म बताया गया,जिसका, नाम मेहरखा था। लोकपूज्य चालक राय हिंगलाज माता का ही एक रूप हैं। जैसलमेर राज्य के माड़ क्षेत्र में ‘चेलक’ निवासी मामडि़या जी चारण के कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि आप मेरे यहां जन्म लें। माता कि कृपा से मामडि़या जी के यहां 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ (माता चाल राय) ने विक्रम संवत 808 में चैत्र सुदी नवमी मंगलवार को मामडि़या जी चारण के यहां जन्म लिया। इनके बाद जन्मी भगवती की 6 बहिनों के नाम आशी, सेसी, मेहली, होल, रूप व लांग था। अपने अवतरण के पश्चात् भगवती आवड़ जी ने बहुत सारे चमत्कार दिखायें तथा नगणेची, काले डूंगरराय, भोजासरी, देगराय, तेमड़ेराय व तनोट राय नाम से प्रसिद्ध हुई।
तनोट माता का मंदिर जैसलमेर से करीब 130 कि.मी. दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के निकट स्थित है। यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना हैं। यह मंदिर सदा ही आस्था का केंद्र रहा है पर 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बाद यह मंदिर देश-विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए रखे हुए हैं।
इसी प्रकार 1971 के भारत-पाक युद्ध में माता तनोट की कृपा से शत्रु के सैंकड़ों टैंक व गाडि़यां भारतीय फौजों ने नेस्तानाबूद कर दिये और शत्रु सेना पलायन करने के लिए विवश हो गई। अतः माता श्री तनोट राय जनसमुदाय के साथ ही भारतीय सैनिकों व सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र हैं। देशनोक में करणी माता का प्रसिद्द मन्दिर है। देशनोक मे मातेश्वरी चालक नेची का मन्दिर है
कुल देवी
संपादित करेंमामडि़या नाम के एक चारण थे। मामड़जी जी निपुतियां थे उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की थी ।
एक बार अपने घर से कही बहार जा रहे थे। उस समय चारण जाति की कन्याए जो सामने से जा रही थी,उन कन्याओ ने मामड़जी को देख रास्ते मे अपूठी खड़ी हो।गई क्योकि सुबह के समय निपुतियें व्यक्ति का कोई मुह देखना नही चाहता। इस बात का रहस्य मामड़जी को समझ मे आ गया, वह दुखी होकर वापिस घर आ गए। मामड़जी के घर पर आदि शक्ति हिंगलाज का एक छोटा सा मन्दिर था, वहा पुत्र कामना से अनशन धारण कर सात दिन तक बिना आहार मैया की मूर्ति के आगे बेठे रहे।
आठवे दिन उन्होंने दुखी होकर अपना शरीर त्यागने के लिए हाथ मे कटारी लेकर ज्युहीं मरनेलगे उसी समय शिव अर्धांगनी जगत जननी गवराजा (हिंगलाज) प्रसन्न हुई, उन्होंने कहा - तुने सात दिन अनशन व्रत रखा हे, इसलिए मे सात रूपों मे तुम्हारे घर पुत्री रूपों मे अवतार धारण करुगी और आठवे रूप मे, भाई भैरव को प्रगट करुँगी, तुम्हे मरने की कोई आवश्यकता नही हे, इतना कह कर मातेश्वरी अंतरध्यान हो गई। माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। देवी हिंगलाज माता सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने 8वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़ (मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया था । ये सात बहिने थी- 1-आवड, आवड बाई 2-गुलो- गेल,(गुलीगुलाब बाई) 3-हुली –होल,हुल(हुलास बाई) 4-रेप्यली-रेपल,रेपली(रूपल बाई ) 5-आछो- साँची,साचाई (साँच बाई ) 6-चंचिक - राजू,रागली (रंग बाई) और 7-लध्वी- लंगी, खोड़ियार (लघु बाई) सबसे छोटी, आदि नामों से सातों बहनों कर जन्म हुवा। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी।जिसमे महामाया आवड़ व सबसे छोटी लघु बाई ,खोड़ियार सर्वकला युक्त शक्तियाँ का अवतार बताया गया है। इस प्रकार आठवे रूप मे भाई का जन्म बताया गया,जिसका, नाम मेहरखा था। लोकपूज्य चालक राय हिंगलाज माता का ही एक रूप हैं। जैसलमेर राज्य के माड़ क्षेत्र में ‘चेलक’ निवासी मामडि़या जी चारण के कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि आप मेरे यहां जन्म लें। माता कि कृपा से मामडि़या जी के यहां 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ (माता चाल राय) ने विक्रम संवत 808 में चैत्र सुदी नवमी मंगलवार को मामडि़या जी चारण के यहां जन्म लिया। इनके बाद जन्मी भगवती की 6 बहिनों के नाम आशी, सेसी, मेहली, होल, रूप व लांग था। अपने अवतरण के पश्चात् भगवती आवड़ जी ने बहुत सारे चमत्कार दिखायें तथा नगणेची, काले डूंगरराय, भोजासरी, देगराय, तेमड़ेराय व तनोट राय नाम से प्रसिद्ध हुई।
तनोट माता का मंदिर जैसलमेर से करीब 130 कि.मी. दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के निकट स्थित है। यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना हैं। यह मंदिर सदा ही आस्था का केंद्र रहा है पर 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बाद यह मंदिर देश-विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए रखे हुए हैं।
इसी प्रकार 1971 के भारत-पाक युद्ध में माता तनोट की कृपा से शत्रु के सैंकड़ों टैंक व गाडि़यां भारतीय फौजों ने नेस्तानाबूद कर दिये और शत्रु सेना पलायन करने के लिए विवश हो गई। अतः माता श्री तनोट राय जनसमुदाय के साथ ही भारतीय सैनिकों व सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र हैं। देशनोक में करणी माता का प्रसिद्द मन्दिर है। देशनोक मे मातेश्वरी चालक नेची का मन्दिर है Shivdan deshnoke (वार्ता) 17:49, 6 सितंबर 2022 (UTC)