भारत का विकास

शायद व्रिद्धावस्था मे दिमग खलि रहने के कारण भूत और वर्तमान के बीच भटकता रकहता है। यदी कारण है कि विमन दिनो से कई बार जीवन काल मे आये बदलावो पर मन भटक्त रहत है। बचपन से आज तक सामाजिक, आर्थिक व शैक्श्णैक मूल्यो मे बदलाव के साथ विकास का यह ६० सालो का सफर कितना कुछ अपने साथ लाया व कित्ना कुछ अपने साथ ले गया, इस पर प्राय मन भटक्ता रहत है।

इस्मे कोई सन्देह नहि है कि पिछले सात दशकि मे भारत ने प्रशसनीय प्रगति की है। शिक्शा, सुख-सुविधा के साधन, उपछार की उपलब्धता, कमाने के अवसर, सचार माध्यम तथा मनोरजन के साधनि का तेजी से विस्तार एक बहुत बदी उपलब्दि है।

लूगो के आर्थिक विकास और क्रय शक्ति मे व्रधि से आज भारत विकासशील देशो मे अग्रिम पकित मे खडा है। आने वामे बीस से पच्चीस सालो मे भविश्य का अध्ययन करने वाले विद्वान भारत को जापान व अमेरिका से सम्प्न्न्ता मे आगे निकल जाने की भविश्यवाणी करने लगे है। सभी भारतीयो को देश की इस उपलब्धि पर गर्व महसूस कोना चाहिए

किन्तु विकास के इस सफर मे हमने क्या खोया है? इस पर लोगो का ध्यान शायद बहुत कम हीजाता है। मेरे अनुसार सबसे महत्वपूर्ण पान्च मनुश्यरता के आधार मुल्य जो हमने इस विकास यात्रा मे गवाए है, वे इस उपलब्धि को बोना बनाने के लिए पर्याप्त है।

१) सन्तोश-

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