भारत की सांस्कृतिक एकता

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सांस्कृतिक एक्ता राष्ट्र की एकात्मकता का प्रमाण है। मानव की जन्मजात उच्छृंखमल प्रवृत्तियों पर प्रतिबन्ध की परिचायक है। येह व्यक्ति और राष्ट्र की उन्नति का सौपन है। विश्व के विशाल प्रांगण मै व्यक्ति की पहचान का प्रतीक है। सांस्कृतिक एकता का अर्थ, भारत की दो, तीन या चार धार्मिक वृत्तियों से जुड़ा संस्कृति का मिलन नहीं, न ही इस्का अर्थ एक मिश्रित संस्कृति का उदय है। इसका सीधा सा अर्थ है की हिन्दू धर्म मैं विभिन्न मत-मतान्तरों के होते हुए भी खान-पान, रहन-सहन, पूजा-पाट मै विभेद रेहते हुए भी विश्व का हिन्दू सांस्कृतिक दृष्टि से एक सूत्र में बँधा है वह एक है। भारत में ढाई कोस पर बोलि बदलती है तथा संविधान में स्वीकृत बाइस भाषाएं हैं। भारत की संस्कृति आर्य ,हूण, कुषाण तथा शक संस्कृति से बहुत प्रभावित हुई। भारत की संस्कृति ने उपरोक्त जातियों से अच्छी-अच्छी बातों को ग्रहण किया । भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी परम उदारता और सहिष्णुता है । धार्मिक, सामाजिक, नैतिक व्यवहारों में भारत की संस्कृति अन्य देशों की अपेक्षा कहीं अधिक उदार है, क्योंकि भारतीय संस्कृति की नींव धर्म का दृढ़ आधार लेकर खड़ी हुई है । मिस, यूनान तथा चीन देश की संस्कृति को भारतीय संस्कृति ने प्रभावित किया था, इतिहास इसका साक्षी है । भारतीय संस्कृति की एक अन्य विशेषता सुव्यवरथा है, जो हमें सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों तक में प्राप्त होती है। भारतीय संस्कृति का केनवास विशाल है और उस पर हर प्रकार के रंग और जीवंतता है। यह देश कई सदियों से सहिष्णुता, सहयोग और अहिंसा का जीवंत उदाहरण रहा है और आज भी है। इसके विभिन्न रंग इसकी विभिन्न विचारधाराओं में मिलते हैं। धर्मनिरपेक्षताः भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने के मामले में सबसे आगे है। पूजा और अपने धर्म के पालन की आजादी भारत में विविध संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। ना किसी धर्म को नीची नज़र से देखा जाता है, ना किसी को खास उंचा स्थान दिया जाता है। वास्तव में मुसीबत के समय सभी धर्म अपने सांस्कृतिक मतभेद होने के बाद भी साथ आते हैं और विविधता में एकता दिखाते हैं।

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