समान काम का समान वेतन (Equal pay for equal work) एक प्रकार का श्रमिक अधिकार है जिसके अनुसार एक ही कार्य को करने वाले सभी लोगों को समान वेतन मिलना चाहिए।

आज से लगभग 47 वर्ष पहले संसद में पास ठेका मजदूर (संचालन एवं उन्मूलन) कानून 1970 के केंद्रीय रूल 1971 के अंतर्गत धारा 25 (5) के अनुसार, "अगर कोई ठेकेदार के द्वारा न्युक्त ठेका वर्कर अपने प्रधान नियोक्ता द्वारा न्युक्त वर्कर के बराबर कार्य करता है, तो ठेकेदार के द्वारा काम करने वाले ठेका वर्कर का वेतन, छुटटी और सेवा शर्ते उस संस्था के प्रधान नियोक्ता के वर्कर के बराबर होगा".

देश की संसद ने बनाया था. कानून बनाते समय सरकार ने यह माना था कि ठेका मजदूरों को रोजगार के लिए रखे जाने के चलते कई समस्याएं सामने आ रही हैं. इसके पूर्ण रूप में खात्मे के लिए ही संसद में काफी सोच विचार के बाद उपरोक्त कानून बनाया गया था. दूसरी पंच वर्षीय योजना में योजना आयोग ने त्रिपक्षीय कमेटियों (सरकार-मालिक-मजदूर) की सिफारिश व आम राय से यह माना था कि

1. जहां कहीं भी सम्भव है ठेका मजदूरों द्वारा किए जा रहे काम को ही समाप्त कर दिया जाए.

2. जहां कहीं यह सम्भव न हो वहां ठेका मजदूर के काम को संचालित कर उन्हें वेतन अदायगी व अन्य जरूरी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं.

इन दोनों कामों को लागू करवाने की जिम्मेदारी केन्द्र व राज्य सरकारों के तहत चल रहे श्रम विभाग की थी.

इंडियन स्टफिंग फैडरेशन के रिर्पोट के अनुसार आज पूरे देश में लगभग 1 करोड 25 लाख लोग सरकारी विभाग में कार्यरत है, जिसमें 69 लाख लोग केवल ठेके पर काम कर रहे हैं. सरकार मानती है कि ठेका वर्कर को समान काम करने के वावजूद समान वतन का भुगतान नही किया जा रहा है। चीफ लेबर कमीश्नर (सेन्ट्रल) ने सर्कुलर नं. office Memorandum दिनांक- 23.1.2013, fileNo.14(113) Misc RLC (Cood)/2012 सरकार के सभी मिनिस्ट्री को जारी किया.

माननीय सुप्रीम कोर्ट] ने भी 26 अक्टूबर 2016 को ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत पर मुहर लगाते हुए कहा अस्थायी कामगार भी स्थायी की तरह मेहनताना पाने के हकदार हैं।