सरयू राय
सरयू राय भारत के झारखण्ड राज्य की जमशेदपुर पूर्व सीट से निर्दलीय विधायक हैं। २०१९ के झारखंड विधान सभा चुनावों से पहले उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को छोड़ और जमशेदपुर पूर्व निर्वाचन क्षेत्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास को परास्त कर के विधायक बने। दिसम्बर २०१९ तक वो जमशेदपुर पश्चिम सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक थे। २०१४ के चुनावों में वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी बन्ना गुप्ता को 10517 वोटों के अंतर से हराकर निर्वाचित हुए। [1]
सरयू राय | |
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विधायक-जमशेदपुर पूर्व, झारखण्ड
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कार्यकाल दिसंबर २०१९ - अभी | |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
२०१४ के चुनावों के बाद पूर्ण बहुमत में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री बने रघुवर दास एवं केबिनेट मंत्री बने सरयू राय। रघुवर दास सरकार में शामिल मंत्री सरयू राय ने 1994 में सबसे पहले पशुपालन घोटाले का भंडाफोड़ किया था। बाद में इस घोटाले की सीबीआइ जांच हुई। राय ने घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने को उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक संघर्ष किया। इसके फलस्वरूप राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव समेत दर्जनों राजनीतिक नेताओं व अफसरों को जेल जाना पड़ा। सरयू राय ने 1980 में किसानों को आपूर्ति होने वाले घटिया खाद, बीज, तथा नकली कीटनाशकों का वितरण करने वाली शीर्ष सहकारिता संस्थाओं के विरूद्ध भी आवाज उठायी थी। तब उन्होंने किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए सफल आंदोलन किया। सरयू राय ने ही संयुक्त बिहार में अलकतरा घोटाले का भी भंडाफोड़ किया था। इसके अलावा झारखंड के खनन घोटाले को उजागर करने में सरयू राय की अहम भूमिका रही। इतने घोटालों के पर्दाफाश के बाद तो सरयू राय का नाम भ्रष्ट नेताओं में खौफ का पर्याय बन गया।
जीवनी (Biography)
बिहार और झारखंड के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में सरयू राय का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सही मायनों में उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1974 के उस प्रसिद्ध छात्र आंदोलन से हुई थी जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने किया था। सरयू राय इस आंदोलन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हुए थे।
वह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी रहे। उन्होंने संगठन के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दीं और बिहार एवं झारखंड विधानमंडल के सदस्य भी रहे। वह जुलाई 1998 से जुलाई 2004 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य और फरवरी 2005 से अक्टूबर 2009 झारखंड विधानसभा के सदस्य रहे। इस दौरान वह कुछ समय के लिए झारखंड राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में वह लगभग 3000 वोटों के मामूली अंतर से अपनी सीट हार गए लेकिन दिसंबर 2014 में वह एक बार फिर 49, जमशेदपुर-पश्चिम विधानसभा सीट से झारखंड विधानसभा पहुंचे। उस चुनाव में सरयू राय ने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को 10,000 से भी अधिक वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी।
इसके बाद फरवरी 2015 में उन्हें झारखंड सरकार में संसदीय कार्य, खाद्य सार्वजनिक वितरण विभाग और उपभोक्ता मामलों का मंत्री (कैबिनेट) बनाया गया। बाद में कुछ अपरिहार्य कारणों के चलते उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री का पद छोड़ दिया।
वर्ष 2019 में उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन इस बार वह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और लगभग 16000 वोटों के बड़े अंतर से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को पराजित कर इतिहास रच दिया। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी मौजूदा मुख्यमंत्री को उन्हीं के मंत्रिमंडल के पूर्व सदस्य ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर इतने बड़े अंतर से शिकस्त दी।
सरयू राय पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका अदा कर चुके हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित दैनिक 'द नवभारत टाइम्स' के पटना संस्करण में एक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार के रूप में भी काम किया। इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों और क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं के लिए समाचार, कॉलम और लेख भी लिखे। उन्होंने बिहार के सोन नदी क्षेत्र के किसानों के आंदोलन का समर्थन और प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से 'कृषि बिहार' नामक पत्रिका का संपादन भी किया।
वह एक सक्रिय और सफल पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी चिंता, झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण, जल निकायों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से जुड़ी है। इन समस्याओं को उन्होंने अच्छी तरह समझा और उनके निवारण के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उन्होंने दामोदर, स्वर्णरेखा और सोन जैसी नदियों को औद्योगिक प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए सराहनीय कार्य किया। उन्होंने इन नदियों का लंबाई और चौड़ाई के आधार पर आकलन किया और इनके पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार के लिए कई अहम सुझाव भी दिए। वह भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति और स्वच्छ प्रशासन के समर्थक हैं।
उन्हें राजनीति और प्रशासन से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों को उठाने और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने कई भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भी चलाए और भ्रष्ट राजनेताओं एवं अधिकारियों को सजा भी दिलवाई। भ्रष्टाचार और प्रदूषण के खिलाफ उनके संघर्ष को समाज के हर कोने से, हर वर्ग से दिन-ब-दिन गति और समर्थन मिल रहा है। हालांकि, सत्ता का करीबी एक वर्ग उनका विरोधी भी है।
बचपन और परिवार
(Childhood and family)
सरयू राय का जन्म 16 जुलाई 1951 को एक छोटे से गांव खनिता में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। बिहार के तत्कालीन शाहाबाद जिले के इटाढ़ी ब्लॉक स्थित उनके गांव खनिता में लगभग 100 परिवार रहते थे।
वर्ष 1991 में बिहार का प्रशासनिक पुनर्गठन करते हुए शाहाबाद जिले को चार जिलों- गया, बक्सर, रोहतास और कैमूर में विभाजित कर दिया गया। वर्तमान में सरयू राय का पैतृक गांव उत्तर प्रदेश की उत्तर और पश्चिम सीमा से सटे बक्सर जिले के अंतर्गत आता है। गंगा नदी के दाहिनी ओर स्थित बक्सर एक प्राचीन स्थान है जिसका उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'रामायण' के बाल कांड में महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली के रूप में किया गया है। महर्षि विश्वामित्र ताड़का, मारीच, सुबाहू और अन्य राक्षसों के विनाश के लिए प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ वन में लेकर लाए थे।
तत्कालीन शाहाबाद जिला वर्ष 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 80 वर्षीय बहादुर योद्धा वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में हुए विद्रोह के स्थल के रूप में जाना जाता है। उस आंदोलन के दौरान वीर कुंवर सिंह ने शाहाबाद में अपने मुख्यालय जगदीशपुर से शक्तिशाली ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी और उत्तर भारत में जहां भी उन्होंने चढ़ाई की, वहां अंग्रेजों को पराजित किया।
उनका पैतृक गांव खनिता में विभिन्न जाति-धर्मों के लगभग 100 परिवार रहते हैं जहां हिंदू की विभिन्न जातियों के लोगों के साथ ही लगभग एक दर्जन घर मुस्लिम समुदाय के लोगों के भी हैं। यह गांव जातीय और सांप्रदायिक सद्भाव की गौरवशाली परंपरा की विरासत को आज भी सहेजे हुए है। इस गांव में भगवान शिव का सदियों पुराना एक पूजा स्थल भी है जिसे बूढ़ा महादेव के नाम से जाना जाता है। इस पूजा स्थल के चारों ओर मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर हैं। होली हो, दिवाली हो, ईद हो या फिर मोहर्रम का अवसर, यहां हर त्योहार हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर मनाते हैं। इतना ही नहीं वे एक-दूसरे के उत्सवों में शामिल होते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। हिंदुओं द्वारा कर्बला में पहलाम से पहले मोहर्रम का ताजिया उठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है और खुले आसमान के नीचे बूढ़ा महादेव में होली खेलने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग भी उसी श्रद्धा भाव से उमड़ते हैं। इस गांव में आज भी इन प्राचीन परंपराओं का पालन किया जाता है। राज्य, देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तमाम मतभेदों के बावजूद इस गांव में आज भी हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कायम है। यहां आज भी हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के लोगों में फर्क कर पाना बेहद मुश्किल है।
उपजाऊ जलोढ़ भूमि और सिंचाई के संसाधनों से भरपूर यह गांव तीन ओर से ऐतिहासिक सोन नदी की नहरों से घिरा हुआ है। आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) के अंत तक यह गांव पक्के सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाया था। उस वक्त यह गांव जुलाई में मानसूनी बारिश की शुरुआत से लेकर दिसंबर में धान की कटाई का मौसम पूरा होने तक लगभग छह महीने तक मुख्य मार्ग से कटा रहता था। उस दौर में इस गांव में खुदरा दुकानदारों के लिए दैनिक उपभोग का सामान लाने के लिए परिवहन का एकमात्र साधन घोड़े और गधे हुआ करते थे।
जनवरी से जून तक शेष छह महीनों में धूल भरी कच्ची सड़कों पर परिवहन के साधन के तौर पर बैलगाड़ियों का उपयोग किया जाता था। बाद में इन बैलगाड़ियों की जगह ट्रैक्टर और जीप जैसे संसाधनों ने ले ली।
वर्ष 1997-2002 के बीच जब सरयू राय बिहार विधान परिषद के सदस्य बने तो उनके अथक प्रयासों के बाद नौवीं पंचवर्षीय योजना के तहत स्थानीय क्षेत्र विकास निधि के माध्यम से इस गांव को ब्लॉक/उपमंडलीय केंद्र तक पक्की सड़कों से जोड़ा गया।
उनके पिता स्वर्गीय केशव प्रसाद राय ने औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी। वह सिर्फ अपने हस्ताक्षर करना ही जानते थे जबकि उनकी मां स्वर्गीय सुखवासी देवी एक गृहिणी थीं, वह पूरी तरह निरक्षर थीं।
उनकी पांच बहनें हैं, एक को छोड़कर बाकी सभी उनसे बड़ी हैं, इसके अलावा एक छोटा भाई भी है जिनका नाम यमुना राय है। वह गांव में रहकर ही पुश्तैनी खेती की देखभाल करते हैं।
प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा
सरयू राय ने तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय में की। इसके बाद की पढ़ाई के लिए उनके गांव और आसपास के इलाके में कोई विद्यालय नहीं था। गांव के बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए पांच किलोमीटर दूर ब्लॉक मुख्यालय इटाढ़ी स्थित विद्यालय जाना पड़ता था। यहां जाना आसान नहीं था। बच्चों को पैदल सोन नदी, नहर के किनारे खेतों से होकर जाना पड़ता था। सरयू राय किसी भी सूरत में आगे की पढ़ाई करना चाहते थे इसलिए उन्होंने पांच किलोमीटर दूर जाकर पढ़ाई करने का फैसला किया। गांव के अन्य बच्चों के साथ वह रोजाना नंगे पैर नदी, नहर और खेतों से होकर पांच किलोमीटर का फासला तय करके स्कूल जाने लगे। उन्होंने पूरी मेहनत और लगन से पढ़ाई की और वर्ष 1966 में बिहार स्कूल शिक्षा बोर्ड से हाईस्कूल की परीक्षा विज्ञान विषयों के साथ उत्तीर्ण की। उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें राष्ट्रीय योग्यता छात्रवृत्ति (नेशनल मैरिट स्कॉलरशिप) से नवाजा गया। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए पटना आ गए। यहां प्रतिष्ठित पटना साइंस कॉलेज में उन्होंने प्री-यूनिवर्सिटी विज्ञान में एडमिशन लिया। प्री-साइंस में उनका रिजल्ट शानदार रहा। इस परिणाम के आधार पर 1967 में उनका चयन बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना के इलेक्ट्रिकल ब्रांच के लिए हो गया लेकिन उन्होंने साइंस कॉलेज, पटना से ही भौतिक विज्ञान की पढ़ाई को प्राथमिकता दी। साइंस कॉलेज, पटना से भौतिक विज्ञान ऑनर्स में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने 1970-72 बैच में स्पेक्ट्रोस्कोपी के साथ मास्टर डिग्री हासिल की।
पूर्व राजनीतिक कैरियर
सरयू राय जब आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तो उसी वक्त (1962 में) भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया था। राष्ट्रीयता के इस दौर में वह अपने सहपाठी और घनिष्ठ मित्र राम सिहासन यादव उर्फ भोला शंकर बंधु के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। यादव वर्तमान में एक विद्यालय में शिक्षक हैं। वह बिहार में आरएसएस के एक समर्पित पदाधिकारी के तौर पर भी जाने जाते हैं। संघ के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से प्रभावित होकर वह आरएसएस में शामिल हो गये और 1962 से 1966 तक (जब तक वह उच्च शिक्षा के लिए पटना नहीं गए थे) अपने गांव 'शाखा' में 'मुख्य शिक्षक' के रूप में संघ के लिए सेवा कार्य करते रहे।
पटना जाने के बाद कुछ वर्षों के लिए उनका आरएसएस से संपर्क टूट गया। कुछ साल गोविंदाचार्य जी भागलपुर के आरएसएस प्रचारक के तौर पर बिहार आए तो सरयू राय के पुराने मित्र भोला शंकर बंधु ने गोविंदाचार्य जी को सरयू राय के बारे में बताया। इसके बाद सरयू राय एक बार फिर संघ से जुड़ गए। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ काम करना शुरू किया। उन्हें एबीवीपी की विज्ञान महाविद्यालय इकाई का प्रभारी मनोनीत किया गया। वर्ष 1969 में एबीवीपी की ओर से शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर छात्र आंदोलन चलाया गया जिसमें सरयू राय भी शामिल हुए। आंदोलन के इचिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी छात्र संगठन द्वारा विधानसभा का घेराव किया गया। इस आंदोलन में सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद, विक्रम कुंवर सहित कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। गिरफ्तार किए गए नेताओं में सरयू राय भी शामिल थे। उन्हें लगभग एक सप्ताह तक जेल में ही रहना पड़ा था। बाद में उन्होंने एबीवीपी में विभिन्न पदों के दायित्व का निर्वहन किया।
इसके बाद वह 1974 के प्रसिद्ध बिहार छात्र आंदोलन में शामिल हो गए और एबीवीपी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। उन्हें बिहार क्षेत्र के छपरा, सीवान और गोपालगंज के एबीवीपी संगठन प्रभारी के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया था। 18 मार्च 1974 को जब बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ते भ्रष्टाचार और शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की मांग को लेकर छात्रों का हुजूम बिहार विधानसभा का घेराव करने के लिए आगे बढ़ रहा था तो पुलिस ने आंदोलनकारी छात्रों पर लाठियां बरसाईं और गोलियां भी चला दीं। इस पुलिसिया कार्रवाई में घायल हुए छात्रों को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया था। सरयू राय करीब एक सप्ताह तक भर्ती छात्रों की देखभाल के लिए अस्पताल में ही रहे। वह घायल छात्रों के इलाज से लेकर भोजन तक का पूरा ख्याल रखते थे।
9 अप्रैल, 1974 को एबीवीपी के वरिष्ठ पदाधिकारी श्री राम बहादुर राय की गिरफ्तारी के बाद सरयू राय को जेपी आंदोलन में एबीवीपी छात्र कार्रवाई समिति की राज्य संचालन समिति के नामित सदस्य के रूप में जोड़ा गया। इस दौरान उन्हें स्वर्गीय लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गज नेताओं के साथ काम करने का मौका मिला।
इस बीच उन्होंने सिंदरी और हजारीबाग में आरएसएस के संघ शिक्षा वर्ग (ओटीसी) का प्रथम एवं द्वितीय वर्ष पूरा किया।
ओटीसी के द्वितीय वर्ष के दौरान प्रो. राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया ने उनसे आरएसएस के लिए कम से कम दो साल का समय देने को कहा। इस पर वह सहमत हो गए और उन्हें बिहार के छपरा (सारण) जिले के जिला प्रचारक का दायित्व सौंपा गया।
आपातकाल के दौरान की गतिविधियां (Activities during Emergency)
बात उन दिनों की है जब सरयू राय संघ शिक्षा वर्ग (ओटीसी) पूरा कर चुके थे। इसके कुछ ही दिनों बाद 25 जून 1975 की रात पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। सारे लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए, सेंसरशिप लगा दी गई, अखबारों पर ताला लगा दिया गया और जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चन्द्रशेखर जैसे नेताओं को जेल में डाल दिया गया। 28 जून 1975 को आरएसएस पर भी रोक लगा दी गई। इस दौरान सरयू राय को आपातकाल के खिलाफ भूमिगत आंदोलन के लिए काम करने को कहा गया एवं भूमिगत आंदोलन से जुड़े प्रकाशन एवं जनसंपर्क अभियान के देखरेख की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। उन्हें पुस्तिकाओं का हिन्दी अनुवाद करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया।
देश-विदेश की जेलों तथा अन्य स्थानों से अंग्रेजी में पर्चे भेजे गए। बाद में उन्हें 'द लोकवाणी' नामक एक भूमिगत पत्रिका का संपादन सौंपा गया। उनकी जिम्मेदारी पत्रिका के लिए सामग्री की व्यवस्था करने, उसे संपादित करने और प्रसारित करने की थी जबकि अशोक कुमार सिंह और अन्य को पत्रिका के मुद्रण (प्रिंटिंग) और प्रबंधकीय पहलुओं की देखभाल करने का काम सौंपा गया था।
बैंगलोर जेल में श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लिखा गया लेख जिसका शीर्षक था 'एक समय आता है जब कानून का उल्लंघन कर्तव्य बन जाता है' (A Time comes when disobedience to law becomes duty) और डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के संसद से आश्चर्यजनक तरीके से भागने का समाचार वो यादगार सामग्री है जिसे सरयू राय द्वारा अनुवादित कर प्रकाशित किया गया था।
अगस्त 1975 में अचानक से सरयू राय को लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (पी एंड टी) की ओर से ऑडिटर पद के लिए इंटरव्यू का बुलावा आया। उन्हें इस पद के लिए चुना गया था लेकिन आपातकाल के खिलाफ चल रहे आरएसएस के जेल भरो सत्याग्रह में शामिल होने के कारण उन्होंने इस इंटरव्यू को
26 जनवरी, 1976 तक स्थगित करने सा आग्रह किया जिस दिन सत्याग्रह समाप्त होना था।
सत्याग्रह समाप्त होने के बाद उन्होंने नौकरी ज्वाइन कर ली। कार्यालय में आपातकाल के विरुद्ध आंदोलन के लिए काफी सकारात्मक माहौल था और कुछ दिनों के अंतराल के बाद "लोकवाणी" के संपादन, अनुवाद एवं आपातकाल विरोधी भूमिगत गतिविधियों के संचालन के लिए कार्यालय सबसे उपयुक्त स्थान बन गया।
बाद में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। चूंकि बिहार में तत्कालीन जनसंघ के लगभग सभी वरिष्ठ नेता या तो गिरफ्तार कर लिए गए थे या फिर आपातकाल में भूमिगत हो गए थे। ऐसे में सरयू राय को जेपी आंदोलन समर्थक अन्य राजनीतिक दलों के राज्य के नेताओं और ट्रेड यूनियनों के साथ समन्वय बनाने और चर्चा कर उनके विचारों को एक नई पार्टी का मसौदा तैयार करने के लिए एकत्र करने का काम सौंपा गया। जन संघ, कांग्रेस (ओ), लोकदल और अन्य सोशलिस्ट पार्टियों को मिलाकर एक नए राजनीतिक दल के गठन के लिए ट्रेड यूनियन के प्रख्यात नेता श्री दत्तो पंत बी ठेंगड़ी के मार्गदर्शन में वरिष्ठ नेताओं के एक समूह द्वारा एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया गया था। आपातकाल के दौरान यह सबसे चुनौतीपूर्ण कार्यों में से एक था।
वर्ष 1977 के लोकसभा के आम चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी के तानाशाही शासन की हार के बाद सरयू राय को पटना में आरएसएस के बौद्धिक प्रमुख (प्रभारी बौद्धिक शाखा) के रूप में काम करने के लिए कहा गया था।
कुछ महीनों बाद उन्हें जनता युवा मोर्चा (जनता पार्टी की युवा शाखा जो पूर्ववर्ती जनसंघ गुट के प्रति निष्ठा रखती थी) का संगठन सचिव नामित किया गया। सरयू राय ने वर्ष 1979 तक इस पद पर काम किया। 1980 की शुरुआत में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार में वरिष्ठ नेताओं के साथ मतभेद के कारण उन्हें बिहार जनता युवा मोर्चा के राज्य संगठन सचिव का पद छोड़ने के लिए कहा गया और 'अफगानिस्तान पर रूसी आक्रमण के विरुद्ध समिति' के लिए काम करने की जिम्मेदारी दी गई। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी इसके राष्ट्रीय संयोजक थे। सरयू राय को इसकी बिहार राज्य कमेटी का संयोजक मनोनीत किया गया। समिति में
रूस समर्थक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) को छोड़कर सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों को शामिल किया गया था।
राजनीतिक सफर
1977 के संसदीय चुनावों में पहली बार कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बेदखल हुई थी। इन चुनावों के बाद आपातकाल हटा दिया गया और आरएसएस को प्रतिबंधित करने का आदेश भी वापस ले लिया गया। 1977 में ही कुछ समय के लिए सरयू राय ने पटना में आरएसएस के बौद्धिक प्रमुख के तौर पर काम किया। कुछ समय बाद ही उन्हें तत्कालीन जनसंघ (जिसका जनता पार्टी में विलय हो चुका था) की युवा शाखा जनता युवा मोर्चा का बिहार राज्य संगठन सचिव बना दिया गया।
1979 के अंत में उनसे यह दायित्व वापस ले लिया गया। इसके बाद कुछ समय के लिए उन्होंने पटना में आरएसएस के बौद्धिक प्रमुख के तौर पर काम किया। इस दौरान उन्हें
'अफगानिस्तान पर रूसी आक्रामण' के खिलाफ बनाए गए संगठन के राज्य संयोजक की एक और जिम्मेदारी सौंपी गई। सीपीआई को छोड़कर सभी राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इसके सदस्य थे।
एक नक्सली समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले एक करिश्माई वामपंथी नेता स्वर्गीय सत्य नारायण सिंह इस समिति के मुख्य वास्तुकार और तत्कालीन जनता पार्टी के सदस्य डॉ. सुब्रमण्यन स्वामी इसके राष्ट्रीय संयोजक थे।
इस दौरान जनता पार्टी में “दोहरी सदस्यता” के मुद्दों पर गंभीर बहस शुरू हुई। पूर्व के जनसंघ समूह और अन्य ने आरएसएस एवं जनता पार्टी की एक साथ दोहरी सदस्यता का विरोध किया। परिणाम स्वरूप जनता पार्टी का विभाजन हो गया और जनसंघ समूह के पूर्ववर्ती नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी नामक एक नए राजनीतिक दल का गठन किया।
1980 के मध्य में जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री चंद्रशेखर ने सरयू राय से जनता पार्टी के साथ काम करने को कहा। जुलाई 1980 में उन्हें तत्कालीन जनता पार्टी का बिहार राज्य महासचिव बनाया गया। इसके अलावा उन्होंने बिहार के किसानों को संगठित करने के लिए बिहार खेतिहर मंच का गठन किया। इस मंच से प्रसिद्ध किसान नेता शरद जोशी के नेतृत्व में उन्होंने शीर्ष सहकारी संगठन बिस्कोमैन (बिहार को-ऑपरेटिव मार्केटिंग यूनियन) की ओर से किसानों को सप्लाई किए जा रहे घटिया बीज उर्वरक और कीटनाशक के मुद्दों को उठाया। उन्होंने 1974 के बाणसागर समझौते का उल्लंघन कर रहे सोन नदी के पानी के बंटवारे का मुद्दा भी उठाया। यह समझौता बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच कृषि संबंधी उद्देश्यों के लिए सोन नदी के पानी के बंटवारे से संबंधित था।
उन्होंने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के क्षेत्र में सिंगरौली में स्थापित की जा रहीं लगभग 35000 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाओं के बिहार पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा करार देते हुए इसका विरोध किया।
उस समय यह आशंका जताई गई थी कि ये परियोजनाएं पर्यावरण के लिए आपदा के तौर पर काम करेंगी और रेनु नदी के प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत बन जाएंगी, जो सोन नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। सोन नदी बिहार के गया एवं शाहबाद जिलों के एक बड़े उपजाऊ क्षेत्र के लिए सिंचाई की आवश्यकताओं को पूरा करती है। ये परियोजनाएं रिहंद बांध को भी प्रदूषित करेंगी जिसका पानी सोन नदी में मिलने के बाद बिहार के पलामू जिले (वर्तमान झारखंड में स्थित) के लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
जनता पार्टी में काम करने के दौरान उनके सैयद शहाबुद्दीन जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ गंभीर राजनीतिक मतभेद हो गए जिसके बाद उन्होंने वर्ष 1984 में पार्टी के राज्य महासचिव के पद के साथ-साथ जुलाई 1984 में सक्रिय राजनीति से भी दूरी बना ली।
पार्टीगत राजनीति से उनके इस्तीफे का एक और महत्वपूर्ण कारण पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर के साथ भारत यात्रा ट्रस्ट को लेकर उनके वैचारिक मतभेद भी थे। जनता पार्टी के बिहार महासचिव के पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने 1974 के जेपी आंदोलन के आदर्शों को जनता तक पहुंचाने और उनका प्रचार करने के लिए जेपी विचार मंच का गठन किया।
इसके बाद उन्होंने एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा। यह सिलसिला वर्ष 1993 तक यूं ही चलता रहा, जब तक कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल नहीं हो गए। हालांकि, इस दौरान वह किसानों के लिए काम करते रहे। उन्होंने सोन नहर क्षेत्र के किसानों की कार्रवाई समिति का नेतृत्व किया, जिसमें श्री वशिष्ठ नारायण सिंह, श्री शिवानंद तिवारी और अन्य नेता उनके सहयोगी थे। उन्होंने नालंदा जिले के किसानों के मुद्दों को आगे बढ़ाने में नीतीश कुमार का सहयोग भी किया। पटना में आयकर भवन चौराहे पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आदमकद कांस्य प्रतिमा स्थापित कराने में उनकी महती भूमिका रही। वह जेपी प्रतिमा निर्माण समिति के संयोजक थे जिसमें श्री नीतीश कुमार, श्री शिवानंद तिवारी, प्रो ज़ाबीर हुसैन, अब्दुल बारी सिद्दीकी, श्री गौतम सहाय राणा और अन्य सदस्य के रूप में शामिल थे।
इस प्रतिमा का अनावरण बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 1991 में किया था। श्री जगदानंद सिंह के कहने पर उन्होंने द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग के पूर्णकालिक गैर-सरकारी सदस्य और सिंचाई आयोग के उपसमिति 1 के संयोजक के रूप में काम किया और राज्य के लिए पहली जल नीति तैयार करने में अहम योगदान दिया।
राजनीति से इस्तीफा देने के 9 साल के अंतराल के बाद वह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर मई 1993 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।
स्वर्गीय श्री कैलाशपति मिश्रा और श्री गोविंदाचार्य ने अनुभवी पत्रकार श्री दीनानाथ मिश्रा के साथ मिलकर उन्हें भाजपा में शामिल कराने का निर्णय लिया। उन्हें भाजपा बिहार राज्य कार्यकारी समिति का सदस्य और बौद्धिक शाखा का महासचिव बनाया गया। बाद में वह पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और राज्य महासचिव नामित किए गए।
1998 में उन्हें पार्टी की ओर से बिहार विधान परिषद के द्विवार्षिक चुनाव के लिए नामित किया गया और वह बिहार विधान परिषद के सदस्य चुन लिए गए।
भाजपा प्रवक्ता के तौर पर सरयू राय ने 11 अक्टूबर 1994 को राजनेताओं की मिलीभगत से किए गए भ्रष्टाचार और सरकारी खजाने से की गई अवैध निकासी का पर्दाफाश किया, खास तौर पर पशुपालन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया।
उन्होंने तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार के खिलाफ 44 बिंदुओं पर आधारित चार्जशीट जमा की। इसमें कुछ विशिष्ट आरोप भी लगाए गए लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में कोई भी उनके तर्कों और आरोपों को मानने के लिए तैयार नहीं था, खुद उनकी अपनी पार्टी भाजपा के नेता भी उनसे सहमत नहीं थे जबकि बजटीय आवंटन के विश्लेषण और विधानमंडल द्वारा स्वीकृत पूरक मांगें इन आरोपों के पुख्ता होने के संकेत दे रहे थे। जनवरी 1996 में सामने आए चारा घोटाले ने इन आरोपों को प्रमाणित किया। यही चारा घोटाला बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार के पतन का कारण बना और लालू यादव को जेल जाना पड़ा। सरयू राय उन याचिकाकर्ताओं में से एक थे जिन्होंने पटना उच्च न्यायालय में इस चारा घोटाले को लेकर एक पीआईएल दायर की थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट की ओर से पटना हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच के आदेश दिए गए। सरयू राय उन लोगों में भी शामिल थे जिन्होंने बिहार के प्रसिद्ध बिटूमिन घोटाले को उजागर किया और भाजपा महासचिव के तौर पर इस संबंध में पटना हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की जिस पर हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया। उन्होंने भाजपा महासचिव और प्रदेश प्रवक्ता के तौर पर सार्वजनिक हित से जुड़े बिहार के कई मुद्दों को उठाया और सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। वर्ष 1997 में उन्हें पीरो विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा से उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन तत्कालीन समता पार्टी (अब जदयू) के उम्मीदवार श्री शिवानंद तिवारी के समर्थन में अपना नामांकन वापस लेने को कहा गया। वर्ष 1998 में उन्हें द्विवार्षिक विधान परिषद चुनाव में भाजपा उम्मीदवार नामित किया गया जिसमें उन्होंने जीत हासिल की। उन्होंने बिहार राज्य के विभाजन तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की समन्वय समिति के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। कैलाशपति मिश्रा के साथ उन्होंने झारखंड भाजपा में सह संगठन सचिव का दायित्व भी निभाया। वह वर्ष 2002 तक इस पद पर रहे। वर्ष 2003 से 2005 तक वह भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य रहे।
भारत के राजनीतिक मानचित्र पर बिहार के विभाजन और 15 नवम्बर 2000 को झारखंड के 28वें राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद वर्ष 2005 में उन्होंने जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
हालांकि, वर्ष 2009 में उसी विधानसभा सीट से उन्हें मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 में वह एक बार फिर उसी विधानसभा सीट से मैदान में उतरे और 10000 से भी अधिक वोटों से जीत हासिल की। इस बार उन्हें झारखंड की भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। रघुबरदास सरकार में उन्हें खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग, उपभोक्ता मामले विभाग और संसदीय कार्य विभाग की भी जिम्मेदारी सौंपी गई।
उन्होंने विभाग को डिजिटल बनाने और डिजिटल कमांड स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत की। पीओएस मशीन के माध्यम से खाद्य वितरण प्रणाली की एंड टू एंड कम्प्यूटरीकृत निगरानी व्यवस्था शुरू की। उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ-साथ उपभोक्ता मामलों के विभाग में भी प्रमुख नीतिगत बदलाव के लिए कई कार्य किए। उन्होंने संसदीय कार्य विभाग में रहते हुए सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच सार्थक संवाद के माध्यम से विधान सभा के कामकाज को सुचारू बनाने जैसे कई उल्लेखनीय कार्य किए।
गैर राजनीतिक गतिविधियां
सरयू राय ने वर्ष 1982 में जनता पार्टी के बिहार राज्य महासचिव के रूप में जनहित के कई मुद्दे उठाए और शीर्ष सहकारी संगठनों द्वारा किसानों को नकली एवं घटिया कृषि सामग्री उपलब्ध कराने के भ्रष्ट आचरण के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
उन्होंने बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच सोन नदी के जल को लेकर हुए बानसागर समझौते के उल्लंघन के प्रति भी चिंता जताई। उन्होंने किसानों की पीड़ा और राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा कृषि क्षेत्र के साथ किए जा रहे सौतेले व्यवहार को उजागर करने के लिए बिहार खेतिहर मंच के नाम से एक किसान संगठन की स्थापना की।
उन्होंने सोन नदी के सह घाटी राज्यों, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश द्वारा अंतरराज्यीय बानसागर समझौते के उल्लंघन का मुद्दा उठाया। यह समझौता 17 सितंबर 1974 को बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच हुआ था।
उन्होंने सोन नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी, रेनु नदी के निकट क्षेत्र में सोन नदी बेसिन में प्रस्तावित 35,000 मेगावाट क्षमता वाले मेगा थर्मल पावर कॉम्प्लेक्स लगाने के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में भी चेतावनी दी थी, जिसके लिए रिहंद बांध में आवंटित सोन नदी के जल का बिहार को दिया जाने वाला हिस्सा उपयोग किया जाना था।
वर्तमान में उनके द्वारा पूर्वानुमानित दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं और 1874 में वापस शुरू की गई प्रसिद्ध सोन नहर प्रणाली, जो बिहार के आठ जिलों में लगभग 22.5 लाख हेक्टेयर उपजाऊ भूमि को सिंचाई प्रदान करती है, को सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने 1984 में स्वर्गीय लोकनायक जय प्रकाश नारायण के विचारों के प्रचार के लिए जेपी विचार मंच का गठन किया। इस संगठन को पटना में आयकर चौराहे पर जेपी की आदमकद कांस्य प्रतिमा लगाने का श्रेय दिया जाता है, जहां 4 नवंबर, 1974 को प्रसिद्ध बिहार छात्र आंदोलन के दौरान युवाओं और छात्रों की एक विशाल रैली का नेतृत्व करते हुए जेपी को लाठी का वार झेलना पड़ा था। जेपी विचार मंच के महासचिव के रूप में उनकी पहल पर संसद परिसर में गेट नंबर 1 के सामने लोकनायक जय प्रकाश नारायण की एक और आदमकद कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई थी। यह प्रतिमा जेपी विचार मंच द्वारा जनसहयोग से दान की गई थी और संसद समिति के विनिर्देशों के अनुसार उनके द्वारा सुझाए गए मूर्तिकार द्वारा बनाई गई थी।
वर्ष 1985 में, बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों की हार के बाद, तत्कालीन वयोवृद्ध समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर ने चुनावी कदाचारों की जांच करने और उपयुक्त चुनाव सुधार उपायों का सुझाव देने के लिए एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया। सरयू राय को इस समिति का सदस्य नामित किया गया और उन्होंने स्वर्गीय श्री पीके सिन्हा और अन्य सहयोगियों के साथ रिपोर्ट तैयार करने एवं सिफारिशों को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने भारत सरकार के खान विभाग द्वारा अधिसूचित दो विशेष समितियों के सदस्य के रूप में कार्य किया। तब साध्वी उमा भारती इस विभाग की मंत्री थीं। इन दो समितियों का उद्देश्य स्थानीय निवासियों के बीच खनिज निष्कर्षण के लाभ को साझा करने और खदानों एवं अन्य संबंधित गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण के खतरों को रोकने के सुझाव देना था।
उन्होंने भारत के प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्रों जैसे डब्ल्यूसीएल, सीसीएल, बीसीसीएल, ईसीएल आदि का व्यापक दौरा किया।
समिति के सदस्य के तौर पर उनके अनुभव ने पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को एक दिशा प्रदान की।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "भारत निर्वाचन आयोग-विधान सभाओं के साधारण निर्वाचन 2014 के रूझान एवं परिणाम". मूल से 28 दिसंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसंबर 2014.
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