सरस्वती राजमणि

भारतीय राष्ट्रीय सेना में अधिकारी

सरस्वती राजमणि भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिन्द फौज / INA) की एक सेनानी थीं। उन्होणे भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैन्य गुप्तचर विभाग में कार्य किया था।

वह हाल में कौशिक श्रीधर द्वारा निर्देशित 'वॉयस ऑफ ए इंडिपेंडेंट इंडियन' नामक एक लघु फिल्म में दिखाई दी थीं, जो यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

बचपन संपादित करें

सरस्वती राजमणि का जन्म 11 जनवरी 1927 को रंगून, बर्मा (वर्तमान म्यांमार ) में हुआ था। उसके पिता के पास एक सोने की खान थी और वे रंगून के सबसे धनी भारतीयों में से एक थे। उनका परिवार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का कट्टर समर्थक था और उन्होंने इसके लिये धन का भी योगदान दिया। [1]

16 वर्ष की आयु में, रंगून में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण से प्रेरित होकर उन्होंने अपने सभी आभूषण आजाद हिन्द फौज को दान कर दिए। यह सोचकर कि सरस्वती ने भोलेपन से आभूषण दान कर दिया होगा, नेताजी उसे वापस करने के लिए उसके घर गए। हालांकि, राजमणि इस बात पर अड़ी रही कि नेताजी इस धन का उपयोग सेना के लिए करें। उसके के दृढ़ संकल्प से प्रभावित होकर, उन्होंने उसका नाम 'सरस्वती' रखा। [2] [1]

आजाद हिन्द फौज में कार्य संपादित करें

1942 में राजमणि को आजाद हिन्द फौज की झांसी की रानी रेजिमेंट में भर्ती किया गया था और वह सेना की सैन्य गुप्तचर शाखा का हिस्सा थीं। [3] उन्हें पहली भारतीय महिला गुप्तचर होने का श्रेय दिया जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, राजमणि को कोलकाता में ब्रिटिश सैन्य अड्डे में एक श्रमिक का रूप धरकर एक जासूस के रूप में भेजा गया था ताकि अंग्रेजों के रहस्यों को प्राप्त किया जा सके और उन्हें आजाद हिन्द फौज के साथ साझा किया जा सके। उन्होंने 1943 में बोस की हत्या करने की अंग्रेजों की योजना को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों की योजना यह थी कि जब नेताजी भारतीय सीमाओं की गुप्त यात्रा के करेंगे तभी उनकी हत्या कर दी जायेगी।

लगभग दो वर्षों तक, राजमणि और उनकी कुछ महिला सहयोगियों ने लड़कों का वेश धारण किया और खुफिया जानकारी जुटाई। इस समय उन्होंने अपना नाम 'मणि' रख लिया था। एक बार उनके एक साथी को ब्रिटिश सैनिकों ने पकड़ लिया। उसे बचाने के लिए, राजमणि ने एक नर्तकी का रूप धरकर ब्रिटिश शिविर में घुसपैठ की। उसने ब्रिटिश अधिकारियों को नशीला पदार्थ पिलाया जो प्रभारी थे और अपने सहयोगी को मुक्त कर दिया। जब वे भाग रहे थे, राजमणि को एक ब्रिटिश गार्ड ने पैर में गोली मार दी थी, लेकिन वह फिर भी पकड़ने से बचने में सफल रही। [1]

बाद का जीवन संपादित करें

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात राजमणि के परिवार ने सोने की खान सहित अपनी सारी धन-सम्पत्ति दूसरों को दे दी और भारत लौट आये। सन २००५ में एक समाचार पत्र ने यह समाचार दिया था कि वे चेन्नै में रहतीं हैं तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन मिलने के बाद भी उनको खाने-पीने के भी लाले पड़े हैं। उन्होंने तमिलनाडु सरकार से सहायता का निवेदन किया। तत्कालीन मुख्यमन्त्री सुश्री जयललिता ने उन्हें ५ लाख रूपये की सहायता दी और बिना किराये का मकान उपलब्ध कराया।

उन्होंने प्रतीक चिन्ह नेताजी सुभाष जन्मस्थान राष्ट्रीय संग्रहालय, कटक की आईएनए गैलरी को दान कर दिया।

2016 में, एपिक चैनल ने 'अदृश्य' नामक टेलीविजन श्रृंखला में उनकी कथा को चित्रित किया था। सरस्वती राजमणि ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है। उनकी आत्मकथा हिंदी में "हार नहीं मानुंगी" नाम से प्रकाशित हुई है।

निधन संपादित करें

13 जनवरी, 2018 को हृदय गति रुक जाने के कारण उनका निधन हो गया। उनक अन्तिम संस्कार पीटर्स कालोनी, रायपेटा में किय गया।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "The forgotten spy". Reddif.com. August 26, 2005. अभिगमन तिथि 30 November 2016.
  2. "An INA veteran lives in penury". The Hindu. Jun 17, 2005. अभिगमन तिथि 30 November 2016.[मृत कड़ियाँ]
  3. "Jaya dole for Netaji spy". The Telegraph. June 22, 2005. अभिगमन तिथि 30 November 2016.