मेधा सूक्त
(सरस्वती सूक्त से अनुप्रेषित)
मेधा सूक्त में मेधा (धारणा शक्ति, प्रज्ञा, बुद्धि ) को देवी के रूप में प्रार्थना की गयी है। मेधा सूक्त, देवी सरस्वती की स्तुति का प्रसिद्ध मंत्र है क्योंकि मेधा देवी, सरस्वती देवी की एक रूप मानी जातीं हैं। मेधा सूक्त के कम से कम दो रूपों में उपलध है। इसमें से एक रूप में महानारायण उपनिषद के छः मंत्र हैं। यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय अरण्यक का एक भाग है। दूसरे रूप में ऋग्वेद के खिल सूक्त के नौ मंत्र हैं। एक तीसरा रूप भी है जिसमें अथर्व वेद के पाँच मन्त्र हैं।
- मेधादेवी जुषमाणा न आगाद्विश्वाची भद्रा सुमनस्य माना ।
- त्वया जुष्टा नुदमाना दुरुक्तान् बृहद्वदेम विदथे सुवीराः ।
- त्वया जुष्ट ऋषिर्भवति देवि त्वया ब्रह्माऽऽगतश्रीरुत त्वया ।
- त्वया जुष्टश्चित्रं विन्दते वसु सा नो जुषस्व द्रविणो न मेधे ॥ १ ॥
- प्रसन्न होती हुई देवी मेधा और सुन्दर मनवाली कल्याणकारिणी देवी विश्वाची हमारे पास आयें । आपसे अनुगृहित तथा प्रेरित होते हुए हम असद्भाषीजनों से श्रेष्ठ वचन बोलें और महापराक्रमी बनें । हे देवि ! आपका कृपा-पात्र व्यक्ति ऋषि (मन्त्र-द्रष्टा) हो जाता है, वह ब्रह्न-ज्ञानी और श्री-सम्पन्न हो जाता है। आप जिस पर कृपा करती हैं, उसे अद्भुत सम्पत्ति प्राप्त हो जाती है। हे मेधे ! आप हम पर प्रसन्न होवो और हमें द्रव्य से सम्पन्न करें.
- मेधां म इन्द्रो दधातु मेधां देवी सरस्वती ।
- मेधां मे अश्विनावुभावाधत्तां पुष्करस्रजा ।
- अप्सरासु च या मेधा गन्धर्वेषु च यन्मनः ।
- दैवीं मेधा सरस्वती सा मां मेधा सुरभिर्जुषतां स्वाहा ॥ २ ॥
- इन्द्र हमें मेधा प्रदान करें, देवी सरस्वती हमें मेधा-सम्पन्न करें, कमल की माला धारण करने वाले दोनों अश्विनीकुमार हमें मेधा-युक्त करें। अप्सराओं में जो मेधा प्राप्त होती है, गन्धर्वों के चित्त में जो मेधा प्रकाशित होती है, सुगन्ध की तरह व्यापिनी भगवती सरस्वती की वह दैवी मेधा-शक्ति मुझपर प्रसन्न हों ।[1]