सर्गेय इवानोविच चुप्रीनिन
साहित्यविद, आलोचक, टीकाकार और उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी के लेखकों की रचनाओं के संकलनकर्ता और संस्कृति के वाहक सेर्गेय चुप्रीनिन का जन्म १९४७ में अर्खान्गेल्स्क प्रदेश के वेल्स्क नगर में हुआ। १९७१ में रस्तोफ विश्वविद्यालय के भाषा संकाय से एम.ए. करने के बाद इन्होंने सोवियत विज्ञान अकादमी के विश्व साहित्य संस्थान से १९७६ में पीएच.डी. की और फिर १९९३ में भाषाशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। १९९९ से सेर्गेय चुप्रीनिन प्रोफेसर हैं।
दिसंबर १९९३ से चुप्रीनिन 'ज़्नामया' (परचम) नामक साहित्यिक पत्रिका के संपादक हैं। इसके साथ-साथ ने गोर्की साहित्य संस्थान में तत्याना बेक के साथ मिलकर सन २००५ तक नए कवियों के लिए कविता के सेमिनार आयोजित करते रहे। १९६९ से सर्गेय चुप्रीनिन के आलोचनात्मक लेख केंद्रीय पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। अलेक्सांदर कुप्रीन, निकालाय उस्पेन्स्की, प्योत्र बबरीकिन, व्लास दराशेविच और निकालाय गुमिल्योफ जैसे लेखकों की रचनावलियों के टीकाकार और संकलनकर्ता के रूप में भी सेर्गेय चुप्रीनिन ने काफी नाम कमाया है।
'सुनो साथियो, वारिसो!... रूसी सोवियत जनकविता' (१९८७), 'रूसी लेखकों की रचनाओं में बीसवीं शताब्दी के शुरू का मास्को' (१९८८), '१९५३ से १९५६ के बीच सोवियत रूसी साहित्य की रचनाएँ' (१९८९) भी इनकी उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। इनकी अन्य पुस्तकें हैं- 'आलोचना तो आलोचना है' (१९८८), 'नया रूस और साहित्य की दुनिया' (२००३) और 'आज का रूसी साहित्य- एक मार्गदर्शिका' (२००७)। सेर्गेय चुप्रीनिन की रचनाएँ अंग्रेज़ी, बल्गारी, डच, चीनी, जर्मन, पोलिश, फ्रांसिसी और चेक भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। सेर्गेय चुप्रीनिन रूसी पेन सेंटर के सदस्य हैं और बहुत से पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा वे स्वयं भी कई पुरस्कारों के संयोजक और उनके निर्णायक मंडलों में शामिल हैं।