सर्जकता

कुछ नया बनाना

सर्जनशीलता (creativity) एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें नये विचार, उपाय या कांसेप्ट का जन्म होता है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि सृजन का फल (products) में मौलिकता एवं सम्यकता (Lavlesh Q) दोनो विद्यमान होते हैं। निर्माण सृजन का समतुल्य शब्द है, किन्तु इसमें मौलिकता का बोध नहीं है। किसी जानकारी के आधार पर कोई भी निर्माण कर सकता है।

ग्यूसेप आर्किबोल्डो (Giuseppe Arcimboldo) द्वारा सम्राट रुडोल्फ द्वितीय के "वर्टुमनस" (ग्रीष्मकालीन) में चित्रण। पेंटिंग में दर्शाए गए सभी फल और फूल 16वीं शताब्दी की गर्मियों के मौसम के विशिष्ट थे।
  • जब किसी कार्य का परिणाम उत्तम हो जो किसी निश्चित समय पर उपयोगी स्वीकृत किया जाय , यह सृजनात्मक कार्य कहलाता है। -- स्टेन
  • सृजनात्मकता वह कार्य है जिसका परिणाम नवीन हो और किसी समय, किसी समूह द्वारा उपयोगी एवं संतोषजनक रूप मे स्वीकार किया जाए। -- स्टेन
  • सर्जनात्मकता का अभिप्राय प्रचलित मनुष्य विचारों से परे सोचना , नवीन अनुभवों को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहना , वर्तमान को भविष्य से जोड़ना है। -- वार्टलेट
  • किसी नई वस्तु का पूर्ण या आंशिक उत्पादन सृजनात्मकता कहलाता है। -- स्टेगनर एवं कावौस्की
  • सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओँ के विचारों का उत्पादन करता है और जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हें वह पहले से न जानता हो। -- ड्रेवगहल
  • सृजनात्मक चिन्तन वह है जो नए क्षेत्र की खोज करता है, नए परीक्षण करता है, नई भविष्यवाणियां करता है और नए निष्कर्ष निकालता है। -- स्किनर
  • सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने का मानासिक प्रक्रिया है। -- क्रो व क्रो
  • सृजनात्मकता बालकों में प्रायः सामान्य गुण होते हैं, उनमें न केवल मौलिकता का गुण होता है, वरन उनमें लचीलापन, प्रवाहमयता , प्रेरण, एवं संयमता की योग्यता भी पाई जाती है। -- गिलफोर्ड
  • सृजनात्मक बालक पहले से विध्यमान वस्तुओं एवं तत्वों को संयुक्त कर नवीन रचना करता हैै। -- बैरन

सर्जनात्मकता की प्रकृति

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विभिन्न अध्ययनों के आधार पर सृजनात्मकता की प्रकृति तथा उसकी विशेषताओं का निम्नलिखित रूप से उल्लेख किया जा सकता है-

सर्वव्यापकता – सर्जनात्मकता सर्वव्यापक है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ सीमा तक सर्जनात्मकता अवश्य होती है।

नवीनता – सर्जनात्मकता में पूर्ण अथवा आंशिक रूप में नई पहचान की उत्पति मौजूद होती है।

प्रक्रिया और फल – सृजनात्मकता में प्रक्रिया तथा फल दोनों ही शामिल होती है।

परीक्षण द्वारा पोषित – सृजनात्मक योग्यताएँ प्राकृतिक देन हैं किन्तु उन्हे प्रशिक्षण अथवा शिक्षा द्वारा भी पोषित किया जा सकता है।

अनुपम – सृजनात्मकता एक अनोखी मानसिक प्रक्रिया है जिसके साथ कई तरह की मानसिक योग्यताएं और व्यक्तित्व की विशेषताएं जुड़ी होती हैं।

मौलिकता – सृजनात्मकता का परिणाम मौलिक तथा लाभदायक फल देता है।

प्रान्नता तथा संतोष का स्रोत – कोई भी नई सृजनात्मक आभिव्यक्ति सृजनकर्ता के लिए खुशी और संतोष पैदा करती है।

लोचशीलता – चिन्तन तथा व्यवहार में लोचशीलता सृजनशीलता की महत्वपूर्ण विशेषता है। सृजनशीलता व्यक्ति हमेशा नए दृष्टिकोण , व्यवहार और विचार अपनाने के लिए तैयार रहता है। अतः वह समस्या के नवीन हल ढूंढने में सफल रहता है।

प्रतिक्रियाओं की बहुलता – सृजनात्मक चिंतन में बहुल प्रतिक्रियाओं, चयन तथा कियाओं की दिशाओं की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

विस्तृत क्षेत्र – सृजनात्मक व्याख्या का क्षेत्र विशाल होता है। कोई भी विचार अथवा अभिव्यक्ति जो कि सृजनकर्ता के लिए मौलिक होती है वह सृजनात्मकता की उदाहरण है। इस में मानव दक्षताओं के सभी पक्ष शामिल हैं जैसे कहानी, नाटक, कविता, गीत लिखना, चित्रकला, संजीत, नृत्य, मूर्तिकला के क्षेत्र में कार्य सामाजिक और राजनीतिक सम्बन्ध, व्यापार, शिक्षण तथा अन्य व्यवसाय।

पुनः व्याख्या – किसी समस्या अथवा उसके अंश की पुनः व्याख्या सृजनात्मकता की विशेषता है। जे० सी० शा० एलन नेविल, हरबर्ट साईमन ने किसी समस्या के सृजनात्मक समाधान में निम्नलिखित बातों को महत्वपूर्ण समझा है – (१) चिंतन का विषय नवीन तथा मूल्यवान होना चाहिए। (२) चिन्तन बहु-विधि होना चाहिए।

सृजनात्मक व्यकितत्व – सृजनात्मक व्यक्तित्व में सबसे महत्वपूर्ण गुण मौलिक चिन्तन, परिणाम पर पहुँचने की स्वतन्त्रता, जिज्ञासा, स्वायत्तता, हास्य, आत्म विश्वास को समझने तथा संगठन बनाने की योग्यता वाले गुण होते हैं।

असामान्य तथा प्रासंगिक चिंतन की अनुरूपता – सृजनात्मक बालक तर्क, चिन्तन, कल्पना का द्वारा प्रासंगिक मगर असामान्य चिंतन से समझौता करते हैं व चुनौती को स्वीकार करते हैं और इस चुनौती का सृजनात्मक उत्तर देते हैं।

सर्जनशील बालक के व्यक्तित्व एवं व्यवहार सम्बन्धी विशेषतायें

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सर्जनशील बालक के व्यवहार में प्रायः निम्न गुणों एवं विशेषताओं की झलक मिलती हैं-

  • वह विचार और कार्य में मौलिकता का प्रदर्शन करता है।
  • वह समायोजन (adjustment/adoption) में सक्षम होता है एवं उसकी साहस भरे कार्यों में प्रवृत्ति होती है.
  • वह एकरसता और उबाऊपन की अपेक्षा कठिन और टेढ़े-मेढ़े जीवन पथ से आगे बढ़ना पसंद करता है।
  • उसकी स्मरण शक्ति अच्छी होती है और उसके ज्ञान का दायरा भी विस्तृत होता है.
  • उसमें चुस्ती, सजगता, ध्यान एवं एकाग्रता की प्रचुरता होती है.
  • वह जिज्ञासु प्रकृति का होता है।
  • वह भविष्य के प्रति आशावान और दूरदृष्टि वाला होता है ।
  • उसमें स्वयं निर्णय लेने की पर्याप्त योग्यता होती है।
  • वह अस्पष्ट, गूढ़ एवं अव्यक्त विचारों में रुचि रखता है।
  • वह प्रायः अपने विचित्र एवं मूर्खता भरे विचारों के लिये प्रसिद्धि अर्जित करता है।
  • जटिलता, अपूर्णता, असमरूपता के प्रति उसका लगाव होता है और वह खुले दिमाग से सोचने में विश्वास रखता है।
  • समस्याओं के प्रति उसमें उच्च स्तर की संवेदना पाई जाती है।
  • उसकी विचार अभिव्यक्ति में अत्यधिक प्रवाहात्मकता (Fluency) पाई जाती है ।
  • उसकी अभिव्यक्ति में सदैव स्वाभाविकता एवं सहजता पाई जाती है ।
  • अपने व्यवहार में वह आवश्यक लचीलेपन का परिचय देता है।
  • उसमें अपने सीखने या प्रशिक्षण को एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरण करने की योग्यता पाई जाती है।
  • उसमें उच्च स्तर की विशेष कल्पनाशक्ति, जिसे 'सृजनात्मक कल्पना' का नाम दिया जाता है, पाई जाती हैं।
  • उसके सोचने विचारने के ढंग में केन्द्रीयकरण (Convergence) एवं रूढ़िवादिता के स्थान पर विविधता (Divergence) एवं प्रगतिशीलता पाई जाती है।
  • उसमें विस्तारीकरण (Elaboration) की प्रवृत्ति पाई जाती है अर्थात् वह अपने विचारों, कार्यों एवं योजनाओं के अत्यन्त सूक्ष्म पहलुओं पर ध्यान देता हुआ हर बात को अधिक विस्तार से कहना और करना चाहता है।
  • रहस्यपूर्ण, अज्ञात और अनजान से वह भयभीत नहीं होता।
  • समस्या के किसी नवीन हल एवं समाधान तथा योजना के किसी नवीन प्रारूप का उसकी ओर से सदैव स्वागत ही किया जाता है और इस दिशा में वह स्वयं भी अथक प्रयास करता रहता है।
  • वह अपने 'आत्म' को महान सृजक परमात्मा की भांति सृजनकर्ता मानता है और उसे अपनी सृजन की हुई वस्तुओं एवं विचारों में गौरव एवं संतुष्टि का बोध होता है।
  • वह अपने समय एवं शक्ति को व्यर्थ में ही अपने 'आत्म' से लड़ने अथवा उसकी रक्षा करने में नहीं गंवाता अतः उसके पास अपनी रचना एवं सृजनकार्यों से आनंदित होने के लिये पर्याप्त समय एवं शक्ति रहती है।
  • उसमें उच्च स्तर की सौन्दर्यात्मक अनुभूति, ग्राह्यता एवं परख क्षमता पाई जाती है।
  • अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा उसमें आत्म-सम्मान के भाव और अहं के तुष्टिकरण की आवश्यकता कुछ अधिक ही पाई जाती है।वह आत्म-अनुशासित होता है तथा अन्याय और बुराइयों के साथ उसकी कभी पटरी नहीं बैठती। अपने इन गुणों के कारण ही उसे बहुधा गलत समझा जाता है तथा अनुशासनहीन, झगड़ालू एवं विद्रोही तक की संज्ञा दे डाली जाती है।
  • वह अपने व्यवहार और सृजनात्मक उत्पादन में विनोदप्रियता, आनन्द, उल्लास, स्वच्छन्द एवं स्वतन्त्र अभिव्यक्ति तथा बौद्धिक स्थिरता का प्रदर्शन करता है।
  • अपने उत्तरदायित्व के प्रति वह सजग होता है।
  • स्थिरता और पूर्णता के स्थान पर अस्थिर, संभावित एवं अपूर्ण वर्तमान को स्वीकार कर आगे बढ़ने की योग्यता उसमें पाई जाती है। विपरीत एवं विरोधी व्यक्तियों तथा परिस्थितियों को सहन करने तथा उनसे सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता भी उसमें पाई जाती है।
  • उसकी कल्पना एवं दिवा स्वप्नों का संसार भी काफ़ी अद्भुत एवं महान होता है। सामान्य बालक की तुलना में वह अपना काफी समय इस सुनहरे संसार में विचरण हेतु व्यतीत करने का आदी पाया जाता है।
  • सृजन के समय मस्तिष्क की सोचने विचारने सम्बन्धी प्रक्रिया का कोई ग्राफ अगर प्राप्त किया जाये तो सृजनशील बालक की मस्तिष्क प्रक्रिया अन्य बालक की तुलना में काफ़ी अलग दिखाई पड़ सकती है।
  • वह दूसरों के विचारों का आदर करता है तथा अपने सुझावों के विरोध का बुरा नहीं मानता।

सर्जनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक

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सर्जनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखत हैं –

उत्साहपूर्ण वातावरण पैदा करके – रचनात्मका का विकास करने के लिए खोज के अवसर प्रदान करने चाहिएं और ऐसा वातावरण पैदा करना चाहिए जिसमें बच्चा आने आपकों स्वतन्त्र समझें।

बहुत से क्षेत्रों में रचनात्मकता को उत्साहित करना - अध्यापक विधार्थियों को इस बात के लिए उत्साहित करे कि जितने भी क्षेत्रों में सम्भव हो सके, अपने विचारों तथा भावनओं को प्रकट करे । प्रायः अध्यापक यह समझता है कि रचनात्मकता कविताएं, कहानियां, उपन्यास या जीवनियां लिखने तक ही सीमित है। वास्तव में और भी क्षेत्र हैं जैसा कि कला, चित्रकारी, शिल्प, संगीत या नाटक आदि जिसमें नए ढंग से बच्चों को अपने विचार प्रकट करने के लिए उत्साहित किया जा सकता है।

विविधिता की प्रेरणा – अध्यापक को विविध उत्तरों को प्रोत्साहन देना चाहिए। बच्चों के कार्य तथा प्रयत्न में किसी परिवर्तन या विविधता के चिन्ह का स्वागत करना चाहिए और उसे प्रेरणा देनी चाहिए।

लचीलता तथा सक्रियता को उत्साहित करना – अध्यापक को चाहिए कि वह सक्रियता तथा लचीलता को उत्साहित करे और बढ़ावा दे। बुद्धिमान बच्चे पढ़ाई की बहुत सी प्रभावी तथा कुशल विधियों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार क सुन्दर अपवादों का स्वागत किया जाए तथा इनका अच्छी तरह मूल्यांकन किया जाए।

आत्मविश्वास को उत्साहित करना – अध्यापक बच्चों को अपने विचारों में विश्वास तथा सत्कार की भाक्ना के लिए उत्साहित करे। उसे चाहिए कि वह बच्चों के रचनात्मक चिन्तन का पुरस्कार उनके प्रश्नों का सत्कार करते हुए काल्पनिक विचारों के प्रति सम्मान प्रकट करके उनकी स्वाचालित पढ़ाई को प्रोत्साहन दे।

श्रेष्ठकृतियों (master pieces) के अध्ययन की प्रेरणा – अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को श्रेष्ठ – कृतियां के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करे, उन्हें मौलिक रचना करने के लिए कहें, उन्हे बताए कि वे अपने अनुभवो को प्रयोग करने के लिए नए और अच्छे रूप पैदा करें।

स्वयं भी एक रचनात्मक रूचियों वाला व्यक्ति हो – एक प्राचीन स्वयं सिद्ध कथन है कि ( What a teacher does speaks more loudly then what he says ) रचनात्मक रूचियों वाला अध्यापक अपने विधार्थियों को अपने कार्य से चकित करता है और विधार्थियो को नवीनता का सत्कार करना सिखा सकता है। वह अध्यापक जो स्वयं सीख रहा है और अपने विषय क्षेत्र के ज्ञान को जानने का पूर्ण प्रयत्न कर रहा है, अपने शिष्य का अनुकरण करने के लिए एक नमूना प्रदान करता है

बाहरी कड़ियाँ

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