सर्वेश्वरवाद
सर्वेश्वरवाद कारण और कार्य को अभिन्न मानता है। इसकी प्रमुख प्रतिज्ञा यह है कि ब्रह्म और ब्रह्मांड एक ही वस्तु है। नवीन काल में स्पीनोजा इस सिद्धांत का सबसे बड़ा समर्थक समझा जाता है। उसके विचारानुसार यथार्थ सत्ता एकमात्र द्रव्य, ईश्वर, की है, सारे चेतन उसके चिंतन के आकार हैं, सारे आकृतिक पदार्थ उसके विस्तार के आकार हैं।
सर्वेश्वरवाद वैज्ञानिक और धार्मिक मनोवृत्तियों के लिए विशेष आकर्षण रखता है। विज्ञान के लिए किसी घटना को समझने का अर्थ यही है उसे अन्य घटनाओं से संबद्ध किया जाए, अनुवेषण का लक्ष्य बहुत्व में एकत्व को देखना है। सर्वेश्वरवाद इस प्रवृत्ति को इसके चरम बिंदु तक ले जाता है और कहता है कि बहुत्व की वास्तविक सत्ता है ही नहीं, यह आभासमात्र है। धार्मिक मनोवृत्ति में भक्तिभाव केंद्रीय अंश है। भक्त का अंतिम लक्ष्य अपने आपकोश् उपास्य में खो देना है। अति निकट संपर्क और एकरूपता में बहुत अंतर नहीं। भक्त समझने लगता है कि उसका काम इस भ्रम से छूटना है कि उपास्य और उपासक एक दूसरे से भिन्न हैं।
मनोवैज्ञानिक और नैतिक मनोवृत्तियों के लिए इस सिद्धांत में अजेय कठिनाइयाँ हैं। हम बाहरी जगत् को वास्तविक कर्मक्षेत्र के रूप में देखते हैं, इसे छायामात्र नहीं समझ सकते। नैतिक भाव समस्या को और भी जटिल बना देता है। यदि मनुष्य स्वाधीन सत्ता ही नहीं तो उत्तरदायित्व का भाव भ्रम मात्र है। जीवन में पाप, दु:ख और अनेक त्रुटियाँ मौजूद हैं सर्वेश्वरवाद के पास इसका कोई समाधान नहीं।
ईश्वर का अभिप्राय
संपादित करेंपूर्वेषामापि गुरुः कालेन्नान्च्छेद्दात् ।। (उक्त सूक्ति सामवेद से बताई जाती है) अर्थः परमात्मा (परम + आत्मा)जिसमें कर्म और गुण का संयोजन दिखता हैं आवश्यकता पूर्ति हेतु विभिन्न दैव संपदाओं(जल,वन,अग्नि) पर निर्भरता के कारण हम उन देवताओं का आराधन करते हैं। ---संड्गीत में स्वर को ईश्वर बताया गया है तो, (ईe~~+स्वर) तारतम्य सप्तक का स्वर बोला जाता है अर्थात् इईकार का स्वर जो प्रकृति मे आकाश मंडल से आता है या अनाहद नाद का लगातार बदलते हुये नये रूप में उपस्थित रहना ईश्वर के प्रत्यक्ष होने का प्रमाण है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Arthur Peacocke, winner of the 2001 Templeton Prize and theology faculty member at Oxford University
- Christian Cadre, Panentheism Anyone?
- Dr. Jay McDaniel on Panentheism
- Biblical Panentheism: God in All Things, by Jon Zuck
- The Nature of Love: A Theology, Thomas Jay Oord (2010) ISBN 978-0-8272-0828-5
- Symbiotic Panentheism
- John Polkinghorne on Panentheism
- [1] Spiritual Minded
- Panentheism Sources in Judaism compiled by Rabbi Bradley Shavit Artson[मृत कड़ियाँ]