सर्व धर्म सम भाव हिंदू धर्म की एक अवधारणा है जिसके अनुसार सभी धर्मों द्वारा अनुसरण किए जाने वाले मार्ग भले ही अलग हो सकते हैं, किंतु उनका गंतव्य एक ही है।

इस अवधारणा को रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द[1] के अतिरिक्त महात्मा गांधी[2] ने भी अपनाया था। हालाँकि ऐसा माना जाता है कि इस विचार का उद्गम वेदों में है, इसका अविष्कार गांधीजी ने किया था। उन्होंने इसका उपयोग पहली बार सितम्बर १९३० में हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता जगाने के लिए किया था, ताकि वे मिलकर ब्रिटिश राज का अंत कर सकें।[2] यह भारतीय पंथनिरपेक्षता (Indian secularism) के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, जिसमें धर्म को सरकार एक-दूसरे से पूरी तरह अलग न करके सभी धर्मों को समान रूप से महत्त्व देने का प्रयास किया जाता है।[3][4]

सर्व धर्म सम भाव को अति-रूढ़िवादी हिन्दुओं के एक छोटे-से हिस्से ने यह खारिज कर दिया है कि धार्मिक सार्वभौमिकता के चलते हिंदू धर्म की अपनी कई समृद्ध परंपराओं को खो दिया है।[5]:60

  1. Long, Jeffrey (2012). "The Politicization of Hinduism and the Hinduization of Politics: Contrasting Hindu Nationalism with the Transformative Visions of Swami Vivekenanda and Mahatma Gandhi". प्रकाशित Ricci, Gabriel R. (संपा॰). Politics in Theology. Transaction. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781412848039.
  2. Rakhit, Maanoj. RKM Propagating the Opposite of What Vivekananda and Ramakrishna Had Said: Call to the Rank and File at RKM! Stand Up and Uphold the Truth. Maanoj Rakhit. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788189746490.
  3. Smith, Donald E (2011). India as a Secular State. Princeton University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781178595253.
  4. Larson, Gerald James (2001). Religion and Personal Law in Secular India: A Call to Judgment. Indiana University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-253-33990-1.
  5. Long, Jeffrey D. (2007). A Vision for Hinduism: Beyond Hindu Nationalism. I.B.Tauris. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781845112738.

बाहरी कड़ियाँ

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