माधो सिंह प्रथम
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सरामद-ए-राजा-ए हिंदुस्तान राज-राजेश्वर राज-राजेंद्र महाराजधिराज महाराजा सवाई माधोसिँह जी प्रथम जयपुर के प्रमुख महाराजाओं में से एक थे। राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर की स्थापना जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई माधोसिंह जी प्रथम ने ही 1763 ईस्वी के लगभग की थी। सवाई माधोसिंह जी प्रथम की वजह से सवाई माधोपुर शहर 17वीं व 18वीं शताब्दी के आसपास एक ख्याति प्राप्त शहर माना जाने लगा था। राजस्थान सरकार ने 15 मई 1949 में सवाई माधोपुर शहर को सवाई माधोसिंहजी के नाम पर जिला बनाकर उनके द्वारा स्थापित शहर का सम्मान बढ़ा दिया। तब से लेकर आज तक जिले का नाम सवाई माधोपुर के रूप में भारत स्तर पर जाना जाता है।
राज्याभिषेक_29/12/1750
महाराजा सवाई माधो सिंहजी की माता मेवाड़-उदयपुर के महाराणा अमर सिंहजी द्वितीय की पुत्री चँद्र कँवरजी थी।इसके अतिरिक्त बाईजी लाल विचित्र कँवरजी और किशन कँवरजी भी चँद्र कँवर से उत्पन्न हुई थी।
माधोसिँह जी की सात रानियाँ और पुत्र पाँच हुए थे जिनमे से उनके उत्तराधिकारी महाराजा सवाई पृथ्वी सिँहजी और उनके बाद बने महाराजा सवाई प्रताप सिँहजी की माता रानी चुंडावतजी कुंदन कँवरजी पुत्री रावत जसवंत सिंहजी देवगढ़ की थीं इसके अलावा अन्य रानियों में से रानी सिसोदीनीजी रतन कँवरजी पुत्री राजा सूरतान सिंहजी और दूसरी उनके पुत्र राजा सरदार सिंहजी बनेड़ा की पुत्री रानी ब्रज कँवरजी थीं। इनकी एक रानी राठौड़जी अर्जुन कँवरजी पुत्री महाराजा राय सिंहजी ईडर की और पौत्री महाराजा अजीत सिंहजी जोधपुर-मारवाड़ की थीं। अन्य पुत्र कुंवर मान सिँहजी,कुंवर भवानी सिँहजी और कुंवर रघुबीर सिँहजी भी हुए थे परंतु तीनों बाल्यकाल में ही समाप्त हो गए।
सफदरगंज समझोता, 1758 __यह समझोता माधोसिंह प्रथम और मुगल बादशाहअहमदशाह और नवाब सफदरगंज(अवध) केमध्य 1758 कोहुआ
संपादित करेंइस समझौते के पश्चात मुगल बादशाह अहमदशाह ने माधोसिंह प्रथम को जनवरी1759 को रणथंभौर का किला भेंट किया।
भरवाड़ा युद्ध_1761
संपादित करेंकोटा शासक शत्रुसाल, माधोसिंह को रणथंभौरकिला दिए जानेके कारण अप्रसन हुए और बारां में यहयुद्ध हुआ
इसयुद्ध में शत्रुसाल के सेनापति झालाजालिम सिंह ने माधोसिंह को पराजित कर दिया
इसयुद्धके पश्चात शत्रुसाल ने रणथंभौर पर अधिकार कर लिया
1767 में माधोसिंह ने मावंडायुद्ध मे भरतपुर शासक जवाहरसिंह को पराजित किया गया
1763 मे मोतीडूंगरी महलों का निर्माण करवाया।
अपने भाई ईश्वरीसिंह से उतराधिकार को लेकर संघर्ष__
झिलाई/जमोली संधि __1745
संपादित करेंयह संधि माधोसिंह प्रथम व ईश्वरीसिंहके मध्य जयपुर के दीवान राजमलखत्री करवाता हैं।
इस संधि के तहत माधोसिंह को रामपुर व टोंक परगना देना तय हुआ। जो 5 लाख रुपए वार्षिक आय का परगना था l
राजमहल का युद्ध__1 मार्च 1747 (टोंक में)
संपादित करेंईश्वरीसिंह का साथ मुगलसेना ने दिया और माधोसिंहका साथ मेवाड़ महाराणा जगतसिंह2 और कोटा शासक दुर्जनसाल और मराठाओ ने दिया । लेकिन इस युद्ध में विजय ईश्वरीसिंह हुआ
बगरू का युद्ध[1]
संपादित करेंईश्वरीसिंह का साथ मुगलसेना ने दिया और माधोसिंहका साथ मेवाड़ महाराणा जगतसिंह2 और कोटा शासक दुर्जनसाल और मराठाओ ने दिया । लेकिन इस युद्ध में विजय माधोसिंह की हुई
माधोसिंह के युद्धजितनेके पश्चात ईश्वरीसिंह से माल, निवाई, टोडा परगने मांगे जिसे ईश्वरी सिंह ने स्वीकार कर लिए।
और मराठाओं को हर्जाना दिलवाया।
ईश्वरी सिंहकी मृत्यु के बाद माधोसिंहप्रथम जयपुर का शासक बना। 5 मार्च 1768 गई।
By rajasthan history books
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- ↑ Rajasthan history books.