सहजयोग का हिंदी में अर्थ है कि सह =आपके साथ और ज =जन्मा हुआ योग से तात्पर्य मिलन या जुड़ना अत: वह तरीका जिससे मनुष्य का सम्बन्ध (योग) परमात्मा से हो सकता है सहजयोग कहलाता है , मानव शरीर में जन्म से ही एक शुक्ष्म तन्त्र अद्रश्य रूप में हमारे अन्दर होता है जिसे आध्यात्मिक भाषा में सात चक्र और इड़ा, पिंगला, शुशुम्ना नाड़ियों के नाम से जाना जाता है इसके साथ परमात्मा कि एक शक्ति कुण्डलिनी नाम से मानव शरीर में स्थित होती है यह कुण्डलिनी शक्ति बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है और जब भ्रूण दो से ढाई महीने (६० से ७५ दिन) का होता है तब यह शिशु के तालू भाग (limbic area) में प्रवेश करती है और मश्तिष्क में अपने प्रभाव को सक्रिय करते हुए रीढ़ कि हड्डी में मेरुरज्जु में होकर नीचे उतरती है जिससे ह्रदय में धडकन शुरू हो जाती है इस तरह यह कार्य परमात्मा का एक जिवंत कार्य होता है जिसे डॉक्टर बच्चे में एनर्जी आना बोलते हैं इसके बाद यह शक्ति रीढ़ कि हड्डी के अंतिम छोर तिकोनी हड्डी (sacrum bone) में जाकर साढ़े तीन कुंडल (लपेटे) में जाकर स्थित हो जाती है इसीलिए इस शक्ति को कुण्डलिनी बोलते हैं यह शक्ति प्रत्येक मानव में सुप्तावस्था में होती है जो मनुष्य या अवतार इस शक्ति के जागरण का अधिकारी है वह यह कुण्डलिनी शक्ति जागृत करता है जिससे मानव को आत्मसाक्षात्कार मिलता है तब यह कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है और सातों चक्रों से गुजरती हुई सहस्त्रार चक्र पर पहुँचती है तब मानव के सिर के तालू भाग में और हाथों कि हथेलियों में ठण्डी -ठण्डी हवा महसूस होती है जिसे हिन्दू धर्म में परम चैतन्य(Vaibrations), इस्लाम में रूहानी,बाइबिल में कूल ब्रीज ऑफ़ द होलिघोस्ट कहा जाता है इस तरह सभी धर्म ग्रंथो में वर्णित आत्मसाक्षात्कार को सहजयोग से प्राप्त किया जा सकता है

अब तक धरती पर जो भी सच्चे गुरु ,सूफी, संत, पीर पैगम्बर और अवतार आये वे सहजयोग से भलीभांति परिचित थे वे सब परमात्मा से योग का एकमेव रास्ता सहजयोग दुनिया को बताना चाहते थे परन्तु उस समय साधारण मानव समाज उन बातों को समझ नहीं पाया और उनके जाने के बाद अलग अलग धर्म सम्प्रदाय बनाकर मानव आपस में लड़ने लग गये संत कबीर ने जीवन भर सहजयोग का ही वर्णन किया है परन्तु वे किसी को आत्मसाक्षात्कार दे नहीं पाये

धरती पर मानव उत्क्रांति में समय समय पर किये गये परमात्मा के कार्य में अनेक गुरु ,सूफी, संत, पीर पैगम्बर और अवतारों ने धरती पर जन्म लिया और मानव जाति को सहजयोग का ज्ञान दिया अब तक इनके किये गये अधूरे आध्यात्मिक कार्यो को आगे बढ़ाते हुए इसको सार्वजनिक करने के लिए साक्षात् आदिशक्ति का अवतरण निर्मला श्रीवास्तव (श्री माताजी निर्मला देवी) रूप में हुआ जो आधुनिक युग में सहजयोग संस्थापिका है जिन्होंने दुर्लभ आत्मसाक्षात्कार को सार्वजनिक और आसान बनाकर संसार में प्रदान किया जिसका आज विश्व के १७० देशों के सभी धर्मों के लोग लाभ ले रहे हैं

आधुनिक युग में श्री माताजी निर्मला देवी ही है जिसने संसार के सभी धर्मो को गहराई से समझाते हुए सबमे एक ही सत्यता को स्पष्ट किया है और सभी धर्मो को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया है