सहरसा
सहरसा (Saharsa) भारत के बिहार राज्य के सहरसा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले और कोसी प्रमंडल का मुख्यालय भी है। यह कोसी नदी के समीप पूर्व में बसा हुआ है।[1][2]
सहरसा Saharsa | |
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मत्स्यगन्धा मन्दिर, सहरसा | |
निर्देशांक: 25°53′N 86°36′E / 25.88°N 86.60°Eनिर्देशांक: 25°53′N 86°36′E / 25.88°N 86.60°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | बिहार |
ज़िला | सहरसा ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 1,56,540 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, मैथिली |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 852201-852154, 852221-852127 |
दूरभाष कोड | 91-6478 |
वाहन पंजीकरण | saharsa |
विवरण
संपादित करेंज़िले के रूप में सहरसा की स्थापना 1 अप्रैल 1954 को हुई थी जबकि 2 अक्टुबर 1972 से यह कोशी प्रमण्डल का मुख्यालय है। यहाँ कन्दाहा में सूर्य मंदिर एवं प्रसिद्ध माँ तारा स्थान महिषी ग्राम में स्थित है। प्राचीन काल से यह स्थान आदि शंकराचार्य तथा यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ के लिए भी विख्यात रहा है। इसी के बगल में स्थित बनगांव में बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं का प्रसिद्ध मंदिर है। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल का जन्मस्थल भी यहीं है।
== इतिहास kunal Kumar gupta सहरसा मिथिला राज्य का हिस्सा था। बाद में मिथिला मगध साम्राज्य के विस्तारवाद का शिकार हो गया। बनमनखी-फारबिसगंज रोड पर सिकलीगढ में एवं किशनगंज पुलिस स्टेशन के पास मौर्य स्तंभ मिलने से यह बात प्रमाणित है। १९५६ में प्रसिद्ध इतिहासकार आर के चौधुरी के निर्देशन में हो रहे खुदाई के दौरान गोढोघाट एवं पटौहा में आहत सिक्के मिले हैं। मगध साम्राज्य में बिम्बिसार के समय बौद्ध धर्म के राजधर्म बनने पर यहाँ भी बौद्ध प्रभाव बढने लगा। जिले का बिराटपुर, बुधियागढी, बुधनाघाट, पितहाही और मठाई जैसी जगहों पर बौद्ध चिह्न मिले हैं। ७वीं सदी में जब आदि शंकराचार्य भारत भ्रमण पर निकले और शास्त्रार्थ द्वारा हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने लगे तब उनका आगमन सहरसा जिले के महिषी ग्राम में हुआ। कहा जाता है जब आदि शंकराचार्य ने यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में हरा दिया तब उनकी विदुषी पत्नी भारती ने उन्हे चुनौती दी तथा शंकराचार्य को पराजित कर दिया।
भूगोल
संपादित करेंसहरसा जिला कोशी प्रमंडल एवं जिला का मुख्यालय शहर है। इसके उत्तर में मधुबनी एवं सुपौल, दक्षिण में खगड़िया, पूर्व में मधेपुरा एवं पश्विम में दरभंगा और समस्तीपुर जिला स्थित है। जिले का कुल क्षेत्रफल 1,661.3 वर्ग कि०मी० है। नेपाल की ओर से आने वाली नदियों में प्रायः हर साल आने वाली बाढ और भूकंप जैसी भौगोलिक आपदाओं से प्रभावित होता रहा है। बाढ के दिनों में नाव दुर्घटना से प्रतिवर्ष दर्जनों लोग काल के गाल में समा जाते हैं। वर्ष २००८ में कोशी बाँध टूटने से उत्पन्न बाढ लाखों लोगों के लिए तबाही एवं मौत का पर्याय बन गयी। ज़िले की प्रमुख नदियाँ कोशी, धेमरा एवं कोशी की वितरिकाएँ हैं। नगर के प्रमुख अधिवास सहरसा, सिमरी बख्तियारपुर, महिषी सौरबजार एवं नौहट्टा हैं।
जनसांख्यिकी
संपादित करें2011 की भारत जनगणना के अनुसार इस नगर की कुल जनसंख्या 1,56,540 थी, जिसमें से 83,291 पुरुष और 73,249 स्त्रियाँ थीं। इसका साक्षरता दर 75.63% था। कुल जनसंख्या में से 25,748 निवासी 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे थे।
प्रशासनिक विभाजन
संपादित करेंसहरसा जिले के अंतर्गत २ अनुमंडल एवं १० प्रखंड हैं।
- अनुमंडल- सहरसा सदर (७ प्रखंड) एवं सिमरी बख्तियारपुर (३ प्रखंड)
- प्रखंड- कहरा, सत्तर कटैया, सौर बाजार, पतरघट, महिषी, सोनबरसा, नौहट्टा (सभी सहरसा अनुमंडल अंतर्गत), सिमरी बख्तियारपुर, सल्खुआ एवं बनमा ईटहरी
पर्यटन स्थल
संपादित करें- चौसठ योगिनी रक्त काली मंदिर या मतस्यगंधा मंदिर कोसी भर में प्रसिद्ध है l यहाँ सैकड़ों लोग प्रतिदिन पूजा और संध्या काल में घुमने आते हैं। यहां चौसठ योगिनी मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। के अंदर एक स्थान पर 108 मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। इसमें माँ काली की एक बहुत बड़ी प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर के उत्तर दिशा में एक पुरानी झील का निर्माण किया गया था जो वर्षो से वीरान पड़ा था। पिछले वर्ष 2017 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी के द्वारा झील का पुनर्निर्माण करवाया गया, जिससे मंदिर के सौन्दर्य में चार चांद लग गया। पर्यटकों को झील में बोटिंग की सुविधा भी प्रदान की गई।
- तारा स्थान (महिषी) - सहरसा से १६ किलोमीटर पश्विम स्थित महिषी ग्राम में स्थित अति प्राचीन तारा स्थान लोगों की श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र है। यहाँ माँ तारा के साथ एकजटा और नील सरस्वती प्रतिमाएँ पूजित हैं।
- मंडन-भारती स्थान (महिषी) - महिषी प्रखंड में स्थित यह स्थान अद्वैतवाद के प्रवर्त्तक शंकराचार्य एवं मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के बीच हुए शास्त्रार्थ का गवाह है।
- सूर्य मंडिर (कन्दाहा) - भारत प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश रहा है। इस संस्कृति के कुछेक पहलू अभी भी अच्छी तरह से ज्ञात नहीं है। इन्हीं में से एक प्राचीन सूर्य मंदिर के रूप में सहरसा जिले के कन्दाहा गाँव में मौजूद है।
मिथिलान्तार्गत कोशी एवं धर्ममूला नदी के बीच अवस्थित एक छोटा सा गाँव कन्दाहा की पुण्यमयी धराधाम में अवस्थित संपूर्ण विश्व की अद्वितीय सुर्यमूर्ती जो कि द्वापर युगीन है, की एक अनोखी गाथा है। सर्वप्रथम इस प्राचीन धरोहर को संजोकर रखनेवाला कन्दाहा गाँव का प्राचीन नाम कंदर्पदहा था, जिसका शाब्दिक अर्थ है- कंदर्प (कामदेव) का जहां दहन हुआ हो। पुराणों के अनुसार श्री शिवजी के द्वारा कामदेव का दहन इसी कन्दाहा की धरती पर किया गया था ,अतः इस जगह का नाम कंदर्पदहा पड़ा जो कालांतर में कन्दाहा में परिणत हो गया।
मूर्तिपरिचय
संपादित करेंकन्दाहा की सूर्यमूर्ति प्रथम राशि मेष की है, जिसका प्रमाण सिंहाशन पर मेष का चिह्न होना है। पांच फीट की सूर्यमूर्ति आठ फीट के सिंहासन में सात घोड़ों के रथ पर अपनी दोनों पत्नियों, संज्ञा एवं छाया, जिनको विभिन्न पुरानों में विभिन्न नाम दिया गया है के साथ विराजमान हैं, जिसका संचालन सारथि अरुण कर रहे हैं। साथ ही, बाएं भाग में संवत्सर चक्र भी विद्यमान है। भगवन सूर्य के दो हाथ हैं ,जिसमें कमल का फूल दृष्टिगोचर होता है ,जिसमे बायाँ हाथ मुग़ल आतताइयों द्वारा खंडित कर दिया गया था। सिंहासन की अद्भुत कलाकृति तो देखते ही बनता है। सूर्यमूर्ति के दायें भाग में अष्टभुज गणेश एवं बाएं भाग में शिवलिंग और सामने श्री सुर्ययंत्र रखा हुआ है। गर्भगृह के द्वार पर चौखट पर उत्कीर्ण कलाकृति एवं लिपि भी अपने आप में बेमिसाल है। लेकिन दुर्भाग्यवश सभी मूर्तियों को मुगलों द्वारा कुछ न कुछ क्षति पहुचाई गयी है।
सूर्य मन्दिर
संपादित करेंकंदहा गाँव सहरसा मुख्यालय से पश्चिम १२ किमी पर सतरवार (गोरहो) चौक से तीन किमी उत्तर पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है जहाँ हजारों भक्तजन आते है और भगवान् भास्कर की पूजा अर्चना कर मनचाहा फल पाते हैं। महाभारत और सूर्य पुराण के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण 'द्वापर युग' में हो चुका था। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र 'शाम्ब' किसी त्वचा रोग से पीड़ित थे जो मात्र यहाँ के सूर्य कूप के जल से ठीक हो सकती थी। यह पवित्र सूर्य कूप अभी भी मंदिर के निकट अवस्थित है। इस के पवित्र जल से अभी भी त्वचा रोगों के ठीक होने की बात बताई जाती है।
यह सूर्य मंदिर सूर्य देव की प्रतिमा के कारण भी अद्भुत माना जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में सूर्य देव विशाल प्रतिमा है, जिसे इस इलाके में ' बाबा भावादित्य' के नाम से जाना जाता है। प्रतिमा में सूर्य देव की दोनों पत्नियों 'संग्य' और 'kalh' को दर्शाया गया है। साथ ही 7 घोड़े और १४ लगाम के रथ को भी दर्शाया गया है। इस प्रतिमा की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह बहुत ही मुलायम काले पत्थर से बनी है। यह विशेषता तो कोणार्क एवं देव के सूर्य मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती। परन्तु सबसे अद्भुत एवं रहस्यमयी है मंदिर के चौखट पर उत्कीर्ण लिपि जो अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी है। परन्तु दुर्भाग्य से इस प्रतिमा को भी औरंगजेब काल में अन्य अनेक हिन्दू मंदिरों की तरह ही क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इसी कारण से प्रतिमा का बाँया हाथ, नाक और जनेऊ का ठीक प्रकार से पता नहीं चल पाता है। इस प्रतिमा के अन्य अनेक भागों को भी औरंगजेब काल में ही तोड़कर निकट के सूर्य कूप में फेंक दिया गया था, जो १९८५ में सूर्य कूप की खुदाई के बाद मिले हैं।
१९८५ के बाद यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन आ गया। पुरातत्व विभाग ने मंदिर की देख रेख के लिए एक कर्मचारी को नियुक्त कर रखा है। परन्तु सरकार की तरफ से इस मंदिर के जीर्णोधार एवं विकास के प्रति उपेक्षा ही बरती गयी है। वह तो यहाँ के कुछ ग्रामीणों की जागरूकता एवं सहयोग के कारण मंदिर अपने वर्तमान स्वरुप में मौजूद है। इनमे नुनूं झा एवं जयप्रकाश वर्मा समेत अनेक ग्रामीणों का सहयोग सराहनीय रहा है। इस मंदिर को बिहार सरकार के तरफ से प्रथम सहयोग तब मिला जब अशोक कुमार सिंह पर्यटन मंत्री बने। उन्होंने इस मंदिर के विकाश के लिए २००३ में ३००००० (तीन लाख) रु० का अनुदान दिया। परन्तु यह रकम मंदिर के विकास के लिए प्रयाप्त नहीं थी। फिर भी इस रकम से मंदिर परिसर को दुरुस्त किया गया। साथ ही मुख्य द्वार का निर्माण हो सका। परन्तु अभी भी इस मंदिर एवं इस पिछड़े गाँव के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जिससे कि इस अद्भुत मंदिर की गिनती बिहार के मुख्य पर्यटन स्थल के रूप में हो सके।
- कारु खिरहरी मंदिर
- लक्ष्मीनाथ गोंसाई स्थल (बनगाँव)
- देवन वन शिव मंदिर(देवन)
- शिव मंदिर (नौहट्टा)
- दुर्गा मंदिर (उदाही)
- बाबा बटेश्वर धाम (बलवाहाट)
- नीलकंठ मंदिर (चैनपुर)
- चंड़ीस्थान मंदिर (बिराटपुर)
नगर स्थापना
संपादित करेंपुराणों के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पुत्र साम्ब अतीव सुन्दर थे जिनके द्वारा श्री कृष्ण से मिलने आये महर्षि दुर्वाशा का तिरस्कार कर दिया गया और क्रोधित महर्षि दुर्वाषा साम्ब को कुष्ठ रोग से रूपक्षीण होने का शाप दे बैठे। अब संपूर्ण यदुवंशी परिवार व्यथित हो गए। दैवयोग से नारद जी के आने पर उनके द्वारा साम्ब से सूर्य का तप करने को कहा गया और तत्पश्चात साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के किनारे सूर्य का कठोर ताप किया और जिसके फलस्वरूप भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर उन्हें रोगमुक्त कर दिए। रोगमुक्त करने के साथ ही भगवान् भास्कर ने साम्ब को बारहों राशि में सूर्यमूर्ति की स्थापना का आदेश भी दिया। इसी क्रम में प्रथम मेष राशि के सूर्य की स्थापना हेतु तत्कालीन ज्योतिषियों की गणना के द्वारा श्री शिवजी की तपस्थली इसी कन्दाहा गाँव का चयन हुआ और द्वापर युग में श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब के द्वारा कन्दाहा (कन्दर्पदहा ) में प्रथम राशि मेष के सूर्य की स्थापना हुई और ऋषि मुनियों द्वारा युगांतर से इनकी पूजा होती आ रही है।
युगों बाद चौदहवीं सदी में जब मिथिला राज्य के क्षितिज पर ओईनवार वंशीय ब्राह्मण भवसिंहदेव राजा के रूप में उदित हुए और और दैवयोग से रोगग्रस्त हो गए तो उनके दरबारपंडित (लेखक रुद्रानंद झा के पूर्वज) पंडित बेचू झा की सलाह पर सूर्य भगवान् का पूजन एवं अनुष्ठान आरम्भ हुआ ,इस क्रम में महाराजा द्वारा सूर्यमंदिर के प्रांगन में अवस्थित सूर्य-कूप के औषधीय गुण संपन्न जल से स्नान एवं सेवन किया गया जिससे महाराज पूर्ण स्वस्थ हो गए एवं सुयोग्य दो पुत्र नरसिंहदेव एवं हरिसिंहदेव को प्राप्त कर अत्यंत हर्षित होकर जीर्ण पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार एवं मूर्ती की पुनर्स्थापना कर भगवान् आदित्य के नाम से अपना नाम जोड़कर भवदित्य सूर्य का नाम दिया और तब से भवादित्य सूर्य के नाम से कंदहा में भगवान् सूर्य की पूजा अर्चना होने लगी।
यातायात सुविधाएँ
संपादित करेंसड़क और रेल माग दोनो से ये जुड़ा हुआ है। यह राष्ट्रीय और राज्य सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 31 यहाँ से गुज़रता है। सहरसा भारतीय रेलमार्ग की बड़ी लाइन द्वारा देश की राजधानी दिल्ली , कोलकाता, अमृतसर ,रांची जैसे बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। भारत की सबसे पहली गरीब रथ ट्रैन तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा सहरसा से ही चलायी गयी थी।
सहरसा जिले में पिछले 24 वर्षों से ओवरब्रिज निर्माण की मांग की जा रही है। बंगाली बाजार रेल एवं सड़क ओवरब्रिज बन जाने से सहरसा में जाम की समस्या से छुटकारा मिलेगा।[3]
शिक्षा एवं चिकित्सा
संपादित करेंयहाँ शिक्षा के लिये बहुत सारी निजी और सरकारी स्कूल और कॉलेज है:
- सहरसा कॉलेज सहरसा
- केंद्रीय विद्यालय सहरसा
- जवाहर नवोदय विद्यालय , बरियाही
- राजकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय , सहरसा
- राजकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालय , सहरसा
- बी एन एम होमियोपैथी महाविद्यालय एवं हॉस्पिटल ,सहरसा
- मंडन भारती एग्रीकल्चर महाविद्यालय, अगवानपुर
- लार्ड बुद्धा कोसी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, बैजनाथपुर
- श्री नारायण मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, सहरसा
- ए एन एम एंड सदर अस्पताल, सहरसा
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect Archived 2017-01-18 at the वेबैक मशीन," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
- ↑ "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
- ↑ "Saharsa Bengali Bazar Rail Overbridge gets approval". मूल से 10 दिसंबर 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 दिसंबर 2021.