साँचा:आज का आलेख १३ फ़रवरी २०१०
(साँचा:आज का आलेख १३ फरवरी २०१० से अनुप्रेषित)
ब्रह्म मुद्रा योग की एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्रा है और यह योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक है। इसके बारे में बहुत कम ज्ञान उपलब्ध है। इसके अंतर्गत ब्रह्ममुद्रा के तीन मुख और भगवान दत्तात्रेय के स्वरूप को स्मरण करते हुए साधक तीन दिशाओं में अपना सिर घुमाता है। इसी कारण इसे ब्रह्ममुद्रा कहा जाता है। यह मुद्रा गर्दन के लिए विशेष लाभदायक तो है ही, और जन साधारण लोगों के लिए जबकि लोग अनिद्रा, तनाव, मानसिक अवसाद जैसे रोगों से ज्यादा घिर रहे हैं एक अचूक उपाय है। ब्रह्म मुद्रा में कमर सीधी रखते हुए पद्मासन, वज्रासन या सिद्धासन में बैठना होता है। फिर अपने हाथों को घुटनों पर और कंधों को ढीला छोड़कर गर्दन को धीरे-धीरे दस बार ऊपर-नीचे करना होता है। दाएं-बाएं दस बार गर्दन घुमाने के बाद पूरी गोलाई में यथासंभव गोलाकार घुमाकर इस क्रम में कानों को कंधों से छुआते हैं। इसी का अभ्यास लगातार करने को ब्रह्ममुद्रा योग कहा जाता है। इसके चार से पांच चक्र तक किये जा सकते हैं। विस्तार में...