साँचा:आज का आलेख २१ मई २०१०

नारद पुराण, गीताप्रेस, गोरखपुर का आवरण
नारद पुराण, गीताप्रेस, गोरखपुर का आवरण
नारद पुराण स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है।[क] महर्षि व्यास द्वारा लिपिबद्ध किए गए १८ पुराणों में से एक है। प्रारंभ में यह २५,००० श्लोकों का संग्रह था लेकिन वर्तमान में उपलब्ध संस्करण में केवल २२,००० श्लोक ही उपलब्ध है। इस पुराण के विषय में कहा जाता है कि इसका श्रवण करने से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो जाते हैं। पापियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्महत्या का दोषी है, मदिरापान करता है, मांस भक्षण करता है, वेश्यागमन करता हे, तामसिक भोजन खाता है तथा चोरी करता है; वह पापी है। इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय विष्णु भक्ति है। संपूर्ण नारद पुराण दो प्रमुख भागों में विभाजित है। पहले भाग में चार अध्याय हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न मासों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं। दूसरे भाग में भगवान विष्णु के अनेक अवतारों की कथाएँ हैं। विस्तार में...