साँचा:आज का आलेख ६ नवंबर २००९
![आक्सी श्वसन का क्रिया स्थल, माइटोकान्ड्रिया](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/9/94/Animal_mitochondrion_diagram_hi.svg/100px-Animal_mitochondrion_diagram_hi.svg.png)
माइटोकॉण्ड्रिया जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिका द्रव में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दा युक्त अंगाणुओं को कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं। ये कोशिका के कोशिका द्रव में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया। माइटोकाण्ड्रिया के डीएनए एवं कोशिकाओं के केन्द्रक में विद्यमान डीएनए में ३५-३८ जीन एक समान हैं। विस्तार से पढ़ें...