साईबर अपराध

कंप्यूटर और नेटवर्क से जुड़े अपराध
(साइबर अपराध से अनुप्रेषित)

साइबर अपराध एक ऐसा अपराध है जिस में कंप्यूटर और नेटवर्क शामिल है। किसी भी कंप्यूटर का अपराधिक स्थान पर मिलना या कंप्यूटर से कोई अपराध करना कंप्यूटर अपराध कहलाता है। कंप्यूटर अपराध मे नेटवर्क शामिल नही होता है। किसी कि निजी जानकारी को प्राप्त करना और उसका गलत इस्तेमाल करना। किसी की भी निजी जानकारी कंप्यूटर से निकाल लेना या चोरी कर लेना भी साइबर अपराध है।

कंप्यूटर अपराध भी कई प्रकार से किये जाते है जैसे कि जानकारी चोरी करना, जानकारी मिटाना, जानकारी मे फेर बदल करना, किसी कि जानकारी को किसी और को देना या कंप्यूटर के भागो को चोरी करना या नष्ट करना। साइबर अपराध भी कई प्रकार के है जैसे कि स्पैम ईमेल, हैकिंग, फिशिंग, वायरस को डालना, किसी की जानकारी को ऑनलाइन प्राप्त करना या किसी पर हर वक़्त नजर रखना।[1]

कंप्यूटर अपराध के प्रकार

  • जानकारी चोरी करना- किसी के भी कंप्यूटर से उसकी निजी जानकारी निकालना जेसे की उपयोगकर्ता नाम या पासवर्ड।
  • जानकारी मिटाना- किसी के कंप्यूटर से जानकारी मिटाना ताकी उसे नुकसान हो या कोई जरूरी जानकारी को मिटाना।
  • फेर बदल करना- जानकारी मे कुछ हटाना या जोड़ना उस जानकारी को बदल देना।
  • बाहरी नुकसान- भागो को नष्ट करना, उसे तोडना या भागो की चोरी करना भी कंप्यूटर अपराध मे आता है।

साइबर अपराध के प्रकार

  • स्पैम ईमेल- अनेक प्रकार के ईमेल आते है जिसमें एसे ईमेल भी होते है जो सिर्फ कंप्यूटर को नुकसान पहुचाते है। उन ईमेल से सारे कंप्यूटर में खराबी आ जाती हैं।
  • हैकिंग- किसी की भी निजी जानकारी को हैक करना जेसे की उपयोगकर्ता नाम या पासवर्ड और फिर उसमे फेर बदल करना।

साइबरफिशिंग- किसी के पास स्पैम ईमेल भेजना ताकी वो अपनी निजी जानकारी दे और उस जानकारी से उसका नुकसान हो सके। यह इमेल आकार्षित होते है।

  • वायरस फैलाना -साइबर अपराधी कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर आपके कम्प्युटर पर भेजते हैं जिसमें वायरस छिपे हो सकते हैं, इनमें वायरस, वर्म, टार्जन हॉर्स, लॉजिक हॉर्स आदि वायरस शामिल हैं, यह आपके कंप्‍यूटर को काफी हानि पहुॅचा सकते हैं। 
  • सॉफ्टवेयर पाइरेसी - सॉफ्टवेयर की नकल तैयार कर सस्‍ते दामों में बेचना भी साइबर क्राइम के अन्‍तर्गत आता है, इससे साफ्टवेयर कम्पनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है साथ ही साथ आपके कीमती उपकरण भी ठीक से काम नहीं करते हैं। 
  • फर्जी बैंक कॉल- आपको जाली ईमेल, मैसेज या फोन कॉल प्राप्‍त हो जो आपकी बैंक जैसा लगे जिसमें आपसे पूछा जाये कि आपके एटीएम नंबर और पासवर्ड की आवश्यकता है और यदि आपके द्वारा यह जानकारी नहीं दी गयी तो आपको खाता बन्‍द कर दिया जायेगा या इस लिंक पर सूचना दें। याद रखें किसी भी बैंक द्वारा ऐसी जानकारी कभी भी इस तरह से नहीं मॉगी जाती है और भूलकर भी अपनी किसी भी इस प्रकार की जानकारी को इन्‍टरनेट या फोनकॉल या मैसेज के माध्‍यम से नहीं बताये। 
  • सोशल नेटवर्किग साइटों पर अफवाह फैलाना - बहुत से लोग सोशल नेटवर्किग साइटों पर सामाजिक, वैचारिक, धार्मिक और राजनैतिक अफवाह फैलाने का काम करते हैं, लेकिन यूजर्स उनके इरादें समझ नहीं पाते हैं और जाने-अनजाने में ऐसे लिंक्‍स को शेयर करते रहते हैं, लेकिन यह भी साइबर अपराध और साइबर-आतंकवाद की श्रेणी में आता है। 
  • साइबर बुलिंग - फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग पर अशोभनीय कमेंट करना, इंटरनेट पर धमकियॉ देना किसी का इस स्‍तर तक मजाक बनाना कि तंग हो जाये, इंटरनेट पर दूसरों के सामने शर्मिंदा करना, इसे साइबर बुलिंग कहते हैं। अक्‍सर बच्‍चे इसका शिकार हाेते हैं। इससे इनके सेहत पर भी असर पडता है

विश्लेषण

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जब भी अपराध होता है, अपराधी कितना भी होशियार क्यों न हो फिर भी कोई न कोई सबूत छोड देता है।

  • कंप्यूटर पर आने वाले स्पैम ईमेल मे कोई न कोई वर्तनी में गलती मिल जाएगी। मूल ईमेल में ऐसी गलती कभी नहीं मिलेगी।

सूचना तकनीक कानून, 2000 के अंतर्गत साइबरस्पेस में क्षेत्राधिकार संबंधी प्रावधान

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मानव समाज के विकास के नज़रिए से सूचना और संचार तकनीकों की खोज को बीसवीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण अविष्कार माना जा सकता है। सामाजिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों, ख़ासकर न्यायिक प्रक्रिया में इसके इस्तेमाल की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि इसकी तेज़ गति, कई छोटी-मोटी द़िक्क़तों से छुटकारा, मानवीय गलतियों की कमी, कम ख़र्चीला होना जैसे गुणों के चलते यह न्यायिक प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है। इतना ही नहीं, ऐसे मामलों के निष्पादन में, जहां सभी संबद्ध पक्षों की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य न हो, यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प सिद्ध हो सकता है। सूचना तकनीक क़ानून के अंतर्गत उल्लिखित आरोपों की सूची निम्नवत हैः

  • कंप्यूटर संसाधनों से छेड़छाड़ की कोशिश-धारा 65
  • कंप्यूटर में संग्रहित डाटा के साथ छेड़छाड़ कर उसे हैक करने की कोशिश-धारा 66
  • संवाद सेवाओं के माध्यम से प्रतिबंधित सूचनाएं भेजने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 ए
  • कंप्यूटर या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से चोरी की गई सूचनाओं को ग़लत तरीके से हासिल करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 बी
  • किसी की पहचान चोरी करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 सी
  • अपनी पहचान छुपाकर कंप्यूटर की मदद से किसी के व्यक्तिगत डाटा तक पहुंच बनाने के लिए दंड का प्रावधान- धारा 66 डी
  • किसी की निजता भंग करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 इ
  • साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 एफ
  • आपत्तिजनक सूचनाओं के प्रकाशन से जुड़े प्रावधान-धारा 67
  • इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सेक्स या अश्लील सूचनाओं को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 ए
  • इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से ऐसी आपत्तिजनक सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण, जिसमें बच्चों को अश्लील अवस्था में दिखाया गया हो-धारा 67 बी
  • मध्यस्थों द्वारा सूचनाओं को बाधित करने या रोकने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 सी
  • सुरक्षित कंप्यूटर तक अनाधिकार पहुंच बनाने से संबंधित प्रावधान-धारा 70
  • डाटा या आंकड़ों को ग़लत तरीक़े से पेश करना-धारा 71
  • आपसी विश्वास और निजता को भंग करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए
  • कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का उल्लंघन कर सूचनाओं को सार्वजनिक करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए
  • फर्ज़ी डिजिटल हस्ताक्षर का प्रकाशन-धारा 73
  • सूचना तकनीक क़ानून की धारा 78 में इंस्पेक्टर स्तर के पुलिस अधिकारी को इन मामलों में जांच का अधिकार हासिल है।

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) में साइबर अपराधों से संबंधित प्रावधान

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  • ईमेल के माध्यम से धमकी भरे संदेश भेजना-आईपीसी की धारा 503
  • ईमेल के माध्यम से ऐसे संदेश भेजना, जिससे मानहानि होती हो-आईपीसी की धारा 499
  • फर्ज़ी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉड्‌र्स का इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 463
  • फर्ज़ी वेबसाइट्‌स या साइबर फ्रॉड-आईपीसी की धारा 420
  • चोरी-छुपे किसी के ईमेल पर नज़र रखना-आईपीसी की धारा 463
  • वेब जैकिंग-आईपीसी की धारा 383
  • ईमेल का गलत इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 500
  • दवाओं को ऑनलाइन बेचना-एनडीपीएस एक्ट
  • हथियारों की ऑनलाइन ख़रीद-बिक्री-आर्म्स एक्ट

66-एफ : साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान

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साइबर आतंकवाद के मामलों में दंड विधान के लिए सूचना तकनीक कानून, 2000 में धारा 66-एफ को जगह दी गई है।

  • (१) यदि कोई-
(अ) भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को भंग करने या इसके निवासियों को आतंकित करने के लिए-
(क). किसी अधिकृत व्यक्ति को कंप्यूटर के इस्तेमाल से रोकता है या रोकने का कारण बनता है।
(ख) बिना अधिकार के या अपने अधिकार का अतिक्रमण कर जबरन किसी कंप्यूटर के इस्तेमाल की कोशिश करता है।
(ग) कंप्यूटर में वायरस जैसी कोई ऐसी चीज डालता है या डालने की कोशिश करता है, जिससे लोगों की जान को खतरा पैदा होने की आशंका हो या संपत्ति के नुक़सान का ख़तरा हो या जीवन के लिए आवश्यक सेवाओं में जानबूझ कर खलल डालने की कोशिश करता हो या धारा 70 के तहत संवेदनशील जानकारियों पर बुरा असर पड़ने की आशंका हो या-
(आ) अनाधिकार या अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए जानबूझ कर किसी कंप्यूटर से ऐसी सूचनाएं हासिल करने में कामयाब होता है, जो देश की सुरक्षा या अन्य देशों के साथ उसके संबंधों के नज़रिए से संवेदनशील हैं या कोई भी गोपनीय सूचना इस इरादे के साथ हासिल करता है, जिससे भारत की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं संप्रभुता, अन्य देशों के साथ इसके संबंध, सार्वजनिक जीवन या नैतिकता पर बुरा असर पड़ता हो या ऐसा होने की आशंका हो, देश की अदालतों की अवमानना अथवा मानहानि होती हो या ऐसा होने की आशंका हो, किसी अपराध को बढ़ावा मिलता हो या इसकी आशंका हो, किसी विदेशी राष्ट्र अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा किसी अन्य को ऐसी सूचना से फायदा पहुंचता हो, तो उसे साइबर आतंकवाद का आरोपी माना जा सकता है।
  • (२) यदि कोई व्यक्ति साइबर आतंकवाद फैलाता है या ऐसा करने की किसी साजिश में शामिल होता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है।

2005 में प्रकाशित एडवांस्ड लॉ लेक्सिकॉन के तीसरे संस्करण में साइबरस्पेस शब्द को भी इसी तर्ज पर परिभाषित किया गया है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में फ्लोटिंग शब्द पर खासा जोर दिया गया है, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से से इस तक पहुंच बनाई जा सकती है। लेखक ने आगे इसमें साइबर थेफ्ट (साइबर चोरी) शब्द को ऑनलाइन कंप्यूटर सेवाओं के इस्तेमाल के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया है। इस शब्दकोश में साइबर क़ानून की इस तरह व्याख्या की है, क़ानून का वह क्षेत्र, जो कंप्यूटर और इंटरनेट से संबंधित है और उसके दायरे में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्‌स, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचनाओं तक निर्बाध पहुंच आदि आते हैं।

सूचना तकनीक क़ानून में कुछ और चीजों को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं, कंप्यूटर से तात्पर्य किसी भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल या तेज़ गति से डाटा का आदान-प्रदान करने वाले किसी भी ऐसे यंत्र से है, जो विभिन्न तकनीकों की मदद से गणितीय, तार्किक या संग्रहणीय कार्य करने में सक्षम है। इसमें किसी कंप्यूटर तंत्र से जुड़ा या संबंधित हर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर शामिल है।

सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की धारा 1 (2) के अनुसार, उल्लिखित अपवादों को छोड़कर इस क़ानून के प्रावधान पूरे देश में प्रभावी हैं। साथ ही उपरोक्त उल्लिखित प्रावधानों के अंतर्गत देश की सीमा से बाहर किए गए किसी अपराध की हालत में भी उक्त प्रावधान प्रभावी होंगे।

  1. अनिमेष, शर्मा. "साइबर सुरक्षा मुद्दे, वर्तमान भारतीय साइबर कानून और उठाए जाने वाले कदम". navbharattimes.indiatimes.com. नवभारत टाइम्स. अभिगमन तिथि 24 अप्रैल 2022.