साकी
मयखाने (मधुशाला) में शराब पिलाने का काम करने वाले/वाली को साकी कहते हैं। कई ग़जलों और नज्मों में इसका जिक्र किया गया है , मसलन जगजीत जी द्वारा गायी गयी ग़जल "ढल गया आफताब ऐ साकी" में और "जवाँ है रात साकिया शराब ला शराब ला " || कवि हरिवंशराय बच्चन की "मधुशाला" में "साकी" शब्द का जिक्र कई बार देखने को मिलता है । कई शायरों ने "साकी" को, स्त्री रूप में कल्पना करके उसकी सुन्दरता को मय (शराब) के साथ अपनी रचनाओं में जगह दी है | मसलन एक नज्म है," आँख को ज़ाम समझ बैठा था , अन्जाने में.., साकिया होश कहाँ था तेरे दीवाने में..!!"
साकी | |
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चित्र:Hector Hugh Munro aka Saki, by E O Hoppe, 1913.jpg ई ओ हूपपे द्वारा हेक्टर ह्यूग मुनरो (1 9 13) |
उदाहरण
संपादित करें- साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला
- साकी शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर, या वो जगह बतादे जहाँ पर ख़ुदा न हो।
- ढल गया आफताब(सूर्य) ऐ "साकी" , ला पिला दे शराब ऐ "साकी"
या सुराही लगा मेरे मुँह से , या उलट दे नकाब ऐ "साकी"
मूल
संपादित करें- साकी मूलतः उर्दू का शब्द है।
अन्य अर्थ
संपादित करेंसराकली
संबंधित शब्द
संपादित करेंहिंदी में
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