भारत का सातवाँ केंद्रीय वेतन आयोग

(सातवाँ वेतन आयोग से अनुप्रेषित)

वेतन आयोग ने वेतन-भत्तों तथा पेंशन में 23.55 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की थी। इससे सरकारी खजाने पर 1.02 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का करीब 0.7 प्रतिशत का बोझ पड़ेगा। समिति ने मूल वेतन में 14.27 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की है जो 70 साल में सबसे कम है। इससे पहले, छठे वेतन आयोग ने 20 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की थी जिसे सरकार ने 2008 में क्रियान्वयन के समय दोगुना कर दिया था। कुल 23.55 प्रतिशत वृद्धि में भत्तों में बढ़ोतरी भी शामिल है।

आयोग की रिपोर्ट में शुरुआती वेतन मौजूदा 7,000 रुपये से बढ़ाकर 18,000 (काॅ.शिवगोपाल म्रिश्रा ने धोका दिया) मासिक करने जबकि अधिकतम वेतन जो मंत्रिमंडल सचिव का है, मौजूदा 90,000 रुपये से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये करने की सिफारिश की गई है। सूत्रों ने कहा कि सचिवों की समिति अधिक वेतन की सिफारिश कर सकती है। इसमें न्यूनतम शुरूआती वेतन 23,500 रुपये तथा अधिकतम वेतन 3.25 लाख रुपये हो सकता है। अधिकारियों ने कहा कि इस साल के बजट में इसके लिये 70,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। लवासा ने कहा कि सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट एक जनवरी से प्रभावी होगी।सातवाँ[1] वेतन आयोग 2014 में गठित किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति और सैन्‍य बल न्‍यायाधिकरण के सेवानिवृत्त अध्‍यक्ष न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार माथुर की अध्‍यक्षता में 7वें के‍न्‍द्रीय वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दी।[2] केंद्रीय वेतन आयोग केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतनमान, सेवा निवृत्ति के लाभ और अन्‍य सेवा शर्तों संबंधी मुद्दों पर विचार करने के लिए समय-समय पर गठित किया जाता है।[3] एनएफआईआर ने भत्तों की रिपोर्ट की आलोचना की. कई कर्मचारियों ने कहा कि उन्होने कर्मचारियों की पीठ में छुरा घोंपा है. सरकार ने करोड़ों रूपये उनकी मदद से एरियर के बचा लिये. नईदिल्ली। भत्तों की रिपोर्ट पर आक्रोशित केन्द्रीय कर्मचारियों के गुस्से का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा जब इनकी तारीफ उस शख्श ने कर दी जिसके ऊपर उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा था। एआईआरफ के महामंत्री शिवगोपाल ने भले ही कुछ मुद्धों पर सरकार की तारीफ की हो लेकिन इससे कर्मचारियों के अंदर यह बात बैठ गई कि वह सरकार की हां में हां मिला रहे। कई कर्मचारियों ने रेलवार्ता से कहा कि उन्होने कर्मचारियों की पीठ में छुरा घोंपा है और उनका सरकार के साथ गुप्त समझौता था इसी कारण सरकार ने करोड़ों रूपये उनकी मदद से एरियर के बचा लिये। वहीं दूसरी ओर एनएफआईआर ने इस रिपोर्ट की आलोचना की है। भत्तों पर केन्द्र सरकार के कर्मचारियों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऊपर से शिवगोपाल मिश्रा ने रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार की तारीफ कर स्वंय अपने लोगों की नाराजगी मोल ले ली है। इसका नजारा पिछने दिनों उन्हे उस वक्त देखने को मिला जब वह मण्डलीय परिषद की बैठक में भाग लेने झांसी आये। उनका स्वागत करने के लिये मेंस यूनियन द्वारा भरसक प्रयास करने के बावजूद ऊंगलियों पर गिनने लायक यूनियन पदाधिकारी स्टेशन पर पंहुचें। कर्मचारियों ने तो पूरी तरह से उनसे दूरी बनाये रखी। दरअसल शिवगोपाल मिश्रा ने एक से तीन लेवल के कर्मचारियों को 10-20-30 प्रतिशत आवास भत्ता देने पर सरकार की तारीफ की साथ ही अन्य ग्रुप सी के कर्मचारियों को भी इसी अनुपात में भत्ता देने की मांग की। लेकिन चालाकी दिखाने के चक्कर में वह यहीं गलती कर गये। सरकार ने किसी लेवल नहीं बल्कि आवास भत्ते की एक न्यून्यतम दरें तय कीं थीं, इसमें किसी लेवल का उल्लेख नहीं किया था। सरकार ने साफ कहा था कि कर्मचारियों को 1800-3600 और 5400 से कम आवास भत्ता नहीं मिलेगा। अब जिस 10-20-30 की वह बात कर रहे हैं क्या वह बता सकते हैं कि अन्य क्लासीफाईड शहर में लेवल 6 के कर्मचारी को कितना आवास भत्ता मिलेगा? हम आपको बता दें कि इस मुद्धे पर शिवगोपाल मिश्रा का दावा पूरी तरह से तथ्यों से परे हैं। लेवल 6 में मिनीमम वेतन 35400 है। इस पर आठ प्रतिशत आवास भत्ते की दर से कुल 2832 रूपये कर्मचारी को मिलने चाहिये लेकिन सरकार ने इसके लिये न्यून्यतम दर तय की है उसके अनुसार इस लेवल के कर्मचारी को 3600 रूपये आवास भत्ता मिलेगा। दरअसल उन्होने एक बार फिर कर्मचारियों को गुमराह करने की कोशिश की लेकिन इस बार उनकी चालाकी आसानी से पकड़ में आ गई। कई कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ जमकर भड़ास निकाली और ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग किया कि वह इन्हे पढ़ भी नहीं सकते हैं। कर्मचारियों का गुस्सा उनके लिये काफी मंहगा पढऩे वाला है,यह अब निश्चित हो गया है।

7वें केन्‍द्रीय वेतन आयोग के सदस्‍य निम्‍नलिखित हैं-[2]

  1. श्री न्‍यायामूर्ति अशोक कुमार माथुर (सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत्‍त न्यायामूर्ति और सैन्‍य बल न्‍यायाधिकरण के सेवानिवृत्‍त अध्‍यक्ष) - अध्‍यक्ष
  2. श्री विवेक राय (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस सचिव) – सदस्‍य (पूर्णकालिक)
  3. डॉ॰ राथिन रॉय (निदेशक एनआईपीएफपी) – सदस्‍य (अंशकालिक)
  4. श्रीमती मीना अग्रवाल (वित्‍त मंत्रालय में व्‍यय विभाग के ओएसडी) – सचिव

केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने 28 फ़रवरी 2014 को सातवें केन्‍द्रीय वेतन आयोग की रूपरेखा को मंजूरी दी। इस संबंध में वेतन, भत्‍तों और अन्‍य सुविधाओं को ध्‍यान में रखकर रूपरेखा तैयार की गई। इसमें औद्योगिक और अनौद्योगिक केन्‍द्रीय सरकार के कर्मचारी, अखिल भारतीय सेवाओं के कर्मी, केंद्रशासित प्रदेशों के कर्मी, भारतीय लेखा एवं परीक्षण विभाग के अधिकारी एवं कर्मी, रिजर्व बैंक को छोड़कर संसद अधिनियम के तहत गठित नियामक संस्‍थाओं के सदस्‍यों तथा उच्‍चतम न्‍यायालय के अधिकारियों एवं कर्मियों को शामिल किया गया है।[3]

वेतन आयोग भत्‍तों, सुविधाओं एवं लाभों, नकदी या गैर-नकदी राशि के संबंध में सिद्धांतों की जांच एवं समीक्षा करेगा। इसके तहत सुरक्षा बलों के सेवानिवृत्‍त कर्मियों को मिलने वाले लाभों की समीक्षा भी की जाएगी।

वेतन आयोग सरकारी सेवा के प्रति योग्‍य लोगों को आकृषित करने के लिए वेतन ढांचा भी तैयार करेगा। इसके अंर्तगत कुशलता, उत्‍तरदायित्‍व और कार्य के प्रति जिम्‍मेदारी बढ़ाने के उपायों पर भी विचार करेगा, ताकि लोकप्रशासन प्रणाली दुरूस्‍त हो सके। इसके तहत आधुनिक प्रशासन तथा तेजी से बदलते राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रौद्योगिकी बदलावों की जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिए उपाय भी किए जाऐंगे।

मौजूदा बोनस योजना पर भी ध्‍यान दिया जायेगा और उसे कार्य-प्रदर्शन तथा उत्‍पादकता से जोड़ने पर बल दिया जायेगा। उत्‍पादकता और कार्य-प्रदर्शन की उत्‍कृष्‍टता के लिए प्रेरक योजना के बारे में वित्‍तीय मानदंड और शर्तें भी तैयार की जाऐंगी।

सरकारी कर्मियों को इस समय जो विभिन्‍न भत्ते प्रदान किए जा रहे हैं, उनकी समीक्षा की जाएगी और इस तरह का वेतन ढांचा तैयार किया जाएगा जिसमें इन्‍हें तर्कसंगत बनाने के उपायों पर विचार होगा। इसके अलावा पेंशन और अवकाश प्राप्‍त करने पर मिलने वाले लाभों के ढांचे पर भी विचार किया जायेगा। इसके तहत इन सिफारिशों के लागू होने के पहले की किसी तिथि पर जो कर्मचारी अवकाश प्राप्‍त करेगा, उसे भी इसके अंतर्गत शामिल किया गया है। इस संबंध में उल्‍लेखनीय है कि 1 जनवरी 2004 को या उसके बाद नियुक्‍त होने वाले केंद्रीय सरकारी कर्मचारियो को नई पेंशन नीति के दायरे में रखा गया है। इनको मिलने वाले लाभों को उपरोक्‍त सिद्धांतों के तहत विचार के लिए तय किया गया है।

आयोग अपने गठन की तिथि से 18 महीने के अंदर अपनी सिफारिशें प्रदान करेगा।[3]

  1. वेतन आयोग ने वेतन-भत्तों तथा पेंशन में में 23.55 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की थी। इससे सरकारी खजाने पर 1.02 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का करीब 0.7 प्रतिशत का बोझ पड़ेगा। समिति ने मूल वेतन में 14.27 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की है जो 70 साल में सबसे कम है। इससे पहले, छठे वेतन आयोग ने 20 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की थी जिसे सरकार ने 2008 में क्रियान्वयन के समय दोगुना कर दिया था। कुल 23.55 प्रतिशत वृद्धि में भत्तों में बढ़ोतरी भी शामिल है। आयोग की रिपोर्ट में शुरुआती वेतन मौजूदा 7,000 रुपये से बढ़ाकर 18,000 रुपये मासिक करने जबकि अधिकतम वेतन जो मंत्रिमंडल सचिव का है, मौजूदा 90,000 रुपये से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये करने की सिफारिश की गई है। सूत्रों ने कहा कि सचिवों की समिति अधिक वेतन की सिफारिश कर सकती है। इसमें न्यूनतम शुरूआती वेतन 23,500 रुपये तथा अधिकतम वेतन 3.25 लाख रुपये हो सकता है। अधिकारियों ने कहा कि इस साल के बजट में इसके लिये 70,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। लवासा ने कहा कि सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट एक जनवरी से प्रभावी होगी।
  2. "न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार माथुर की अध्‍यक्षता में 7वां केन्‍द्रीय वेतन आयोग गठित". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 4 फ़रवरी 2014. मूल से 8 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2014.
  3. "सातवां केन्‍द्रीय वेतन आयोग". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 28 फ़रवरी 2014. मूल से 8 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2014.