निकोलस लिओनार्द सादी कारनो (१७९६ - १८३२) फ्रांसीसी भौतिकीविद् एवं सैन्य इंजीनियर थे। इन्होने १८२४ में लिखित अपनी पुस्तक 'आग की गतिकारी शक्ति एवं उसका उपयोग करने वाले इंजनों पर चिन्तन' (Réflexions sur la puissance motrice du feu et sur les machines propres à développer cette puissance) में सबसे पहले एक सफल ऊष्मा इंजन का सिद्धान्त दिया। अब इस इंजन को 'कार्नो चक्र' (Carnot cycle) के नाम से जाना जाता है। इस पुस्तक में उन्होने ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम की भी आधारशिला रख दी थी। इन्ही कारणों से उन्हें 'ऊष्मागतिकी का जनक' कहा जाता है। 'कार्नो दक्षता', कार्नो प्रमेय, कार्नो ऊष्मा इंजन आदि उनकी ही देन हैं।

सादी कार्नो

कारनो का जन्म पेरिस में हुआ था। १८१२ ई. में ये बहुशिल्प शिक्षणालय में भरती हुए पर अध्ययन छोड़कर इन्होंने अभियंता (Engineer) का पद गहण किया। १८१९ ई. में ये सेना की एक परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और इन्हें लेफ़्टिनेंट का पद मिला। बाद में इन्होंने गणित, रसायन, इतिहास, प्रौद्योगिकी, शासकीय अर्थव्यवस्था इत्यादि विषयों का अध्ययन किया। संगीत, ललितकला, व्यायाम विषयक खेलकूद, तैराकी, शस्त्र विद्या आदि में भी इनका अच्छा अभ्यास था। १८२७ ई. में ये कप्तान हुए और १८२८ ई. में ही नौकरी छोड़ दी।

ये मौलिक एवं गंभीर विचारक थे। केवल एक ही पुस्तक ये प्रकाशित कर पाए जिसमें इनके वैज्ञानिक अनुसंधानों की थोड़ी सी चर्चा है। इनके लेखों की पांडुलिपि सुरक्षित रखी थी जिससे पता लगा कि वे उष्मा की वास्तविक प्रकृति समझते थे। इसमें उन प्रयोगों का भी वर्णन मिलता है जिनमें बाद में जूल तथा अन्य वैज्ञानिकों ने उष्मा का यांत्रिक तुल्यांक निकाला। उष्मागतिकी के मौलिक सिद्धांत के अनुसार उत्क्रमणीय इंजन (Reversible Engine) की दक्षता उन तापों पर निर्भर करती है जिनके बीच वह कार्य करता है। यह सिद्धांत कारनो की ही देन है अत: 'कारनो सिद्धांत' के नाम से प्रसिद्ध है।

१८३२ में आये हैजा की महामारी में उनकी मृत्यु हो गयी।

बाहरी कड़ियाँ

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  • ओ'कॉनर, जॉन; रॉबर्टसन, एडमण्ड, "सादी कार्नो", मैक्ट्यूटर हिस्ट्री ऑफ़ मैथेमैटिक्स, युनिवर्सिटी ऑफ़ सैंट एण्ड्रूज़.
  • Reflections on the Motive Power of Heat, English translation by R.H. Thurston
  • Reflections on the Motive Power of Heat, English translation by R.H. Thurston (at Internet Archive)
  • "Sadi Carnot and the Second Law of Thermodynamics", J. Srinivasan, Resonance, November 2001, 42 (PDF file)