सामञ्ञफल-सुत्त
सामंञफल सुत्त (संस्कृत समकक्ष अर्थ- श्रामण्यफल-सूत्र) दीघनिकाय के 34 सुत्तों (सूत्रों) में से दूसरा है। इसका शाब्दिक अर्थ है- श्रमण का जीवन जीने का फल।
विषयवस्तु
संपादित करेंइस सुत्त में बिंबिसार के पुत्र व उत्तराधिकारी अजातशत्रु द्वारा विभिन्न श्रमणों से पूछे गये एक प्रश्न विशेष के उनके अनुसार दिये गये उत्तर हैं। वह प्रश्न था- "क्या समण का जीवन जीने से कोई ऐसा फल होता है, जो अभी और यहीं दिखाई दे (अर्थात् पारलौकिक कल्पनाओं पर आधारित न हो)?" यह प्रश्न उसने निम्नलिखित छः समणों से पूछा, जो सभी विभिन्न मतों को मानने वाले थे-
- पूरण कस्सप
- मक्खली गोसाल
- अजित केसकम्बली
- पकुध कच्चायन
- निगण्ठ नातपुत्त
- संजय बेलट्ठपुत्त
इनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने मत के अनुसार उत्तर दिया, जिनसे अजातशत्रु सर्वथा असंतुष्ट रहा। अन्त में उसने यह प्रश्न गौतम बुद्ध से पूछा जिनके उत्तर से उसे सन्तुष्टि हुई।