सामा-चकेवा लोकनाट्य बिहार में प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक किया जाता है।

इस लोकनाट्य में कुमारी कन्याओं के द्वारा अभिनय प्रस्तुत किया जाता है। अभिनय में 'सामा' अर्थात श्यामा तथा चकेवा की भूमिका निभायी जाती है। सामूहिक रूप से गाए जाने वाले गीतों में प्रश्नों एवं उत्तरों के माध्यम से विषयवस्तु प्रस्तुत की जाती है।

यह झारखंड की राजधानी रांची में भाई बहन के प्रेम और विश्वास का पर्व सामा चकेवा को लेकर चहलकदमी तेज हो चुकी है। झारखंड मिथिला मंच (जानकी प्रकोष्ठ) की महासचिव निशा झा मिथिलानी ने बताया कि इसकी शुरुआत छठ के पारण के दिन से हो जाती है। सभी अपने अपने घर में इस दिन से सामा चकेवा बनाना शुरु कर देती हैं। जो भी इस दिन बना नहीं पाती हैं वो देवउठान एकादशी के दिन बनाती हैं। जिसमें सामा, चकेवा, वृंदावन, चुगला, सतभैया, पेटी, पेटार आदि मिट्टी से बनाया जाता है। उस दिन से नियमित रात्रि के समय आंगन में बैठ कर खूब खेलती हैं, नियमित गीत गाती हैं। जिसमें भगवती गीत, ब्राम्हण गीत और अंत में बेटी विदाई का समदाउन गाती हैं। यह सिलसिला कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक चलता है। उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा का विसर्जन किया जाता है। जिसमें महिला के संग संग घर के पुरुष वर्ग भी शामिल रहते हैं।[1]

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