सामूहिक सौदाकारी

collective barganing

नियोक्ता व श्रमिको के बीच किसी समस्या के लिए किए गए वार्तालाप (बातचीत) की प्रिक्रिया को सामूहिक सौदाकारी (collective bargaining) कहते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा नियोक्ता व श्रमिक अच्छे कर्मचारी संबंधों के निर्माण के लिए समझौता करते हैं। जब किसी औद्योगिक संस्थान के कर्मचारियों और प्रबन्धक वर्ग के बीच किसी विवाद, समस्या का समाधान निकालना आवश्यक हो, उस स्थिति में सामूहिक सौदाकारी की आवश्यकता होती है ताकि औद्योगिक शान्ति स्थापित हो।

सामूहिक सौदेबाजी की विषय वस्तु के अन्तर्गत वेतन/मजदूरी की दर या मात्रा का निर्धारण, वेतन सहित अवकाश तथा बीमारी अवकाश, पदोन्नति के आधार, जबरी छुट्टी तथा छंटनी की दशाएं निर्धारित करना, दुर्घटना पर क्षतिपूर्ति, शिकायत निवारण तथा कार्य दशाओं से सम्बन्धित अन्य विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है।

सौदेकारी की प्रक्रिया को कुल छः चरणों में व्यक्त किया जा सकता है - (१) प्रारम्भिक चरण, (२) वार्ताकारों का चयन, (३) सौदेबाजी की व्यूह रचना, (४) सौदेबाजी की युक्तियाँ, (५) अनुबंध, (६) अनुबंध का क्रियान्वयन।

सामूहिक समझौते के सिद्वान्तों में प्रबन्धक वर्ग को श्रम संघों के प्रति सम्मान, श्रम नीति का अनुसरण एवं पुनरावलोकन एवं समस्या निवारण के प्रयास करने चाहिए। जबकि श्रम संघ को सहयोग की भावना, सदस्यों के मनोबल को बढाना, परिवेदनाओं (षिकायतों) को आगे बढने से रोकना तथा हड़ताल को अन्तिम अस्त्र के रुप में प्रयोग करना चाहिए।

भारत में सामूहिक सौदेकारी का प्रारम्भ 1947 से पहले से है। स्वतन्त्रता के बाद सरकारी हस्तक्षेप के कारण सामूहिक सौदेबाजी का विकास हुआ है। अनेक वैधानिक कानून व प्रावधान भी बनाये गये हैं। विभिन्न सरकारी योजनाएं भी इस व्यवस्था के विकास में सहायक सिद्व हुई। भारत में श्रम संघों की अधिकता है। साथ ही अधिकांश श्रम संघ राजनैतिक दलों से संबंधित है। एक श्रमसंघ के समझौते का दूसरे श्रम संघ विरोध करते हैं। समझौते में प्रायः विलम्ब होता है। नियोक्ता की मनोवृति प्रायः पक्षपातपूर्ण तथा उदासीन होती है। समझौते की अवहेलना करना भी इसकी असफलता का एक कारण है। सामूहिक समझौते को प्रभावी बनाने हेतु श्रम संघों को सुदृढ़ बनाना चाहिए। विवाद से संबंधित दोनों पक्षों को अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर पारस्परिक सहयोग एवं मित्रवत व्यवहार करना चाहिए।

तानाषाही प्रवृति के स्थान पर प्रजातान्त्रिक कार्यविधि अपनानी चाहिए। सामूहिक समझौते का आधार सरकारी नीतियां होनी चाहिए।

सामूहिक सौदाकारी की परिभाषासंपादित करें

विभिन्न संगठनों, विशेषज्ञों व विद्वानों ने सामूहिक सौदेबाजी को विभिन्न ढंगो से परिभाषित किया है, कुछ प्रमुख परिभाषाएँ नीचे दी गयीं हैं।

निर्माताओं का राष्ट्रीय संघ के अनुसार - "सामूहिक सौदेकारी की प्रक्रिया एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा प्रबन्ध एवं श्रमिक एक दूसरे की समस्याओं एवं दृष्टिकोण को सामने ला सकते है तथा सेवा सम्बन्धों की रूप रेखा का विकास करते हैं। दोनों पक्ष परस्पर सहयोग, प्रतिष्ठा तथा लाभ की दृष्टि से काम करते हैं।"

एडविन फिलापों - "’सामूहिक सौदेवाजी से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत श्रम संगठनो के प्रतिनिधि तथा व्यावसायिक संगठन के प्रतिनिधि मिलते हैं तथा एक समझौता या अनुबन्ध करने का प्रयास करते है जो कर्मचारियों एवं सेवायोजक संघ के सम्बन्धों की प्रकृति का निर्धारण करता है।"

सामूहिक सौदेकारी के विषयसंपादित करें

प्रारम्भिक काल में सामूहिक सौदेकारी का प्रयोग मजदूरी कार्य के घंटे एवं रोजगार से सम्बन्धित शर्तों से सम्बन्धित था किन्तु आजकल सामान्यतः सवेतन अवकाश, छुटिटयां, अधिक समय कार्य के लिये वेतन, जबरी छुट्टी का नियमन, सवेतन बीमारी अवकाश, उत्पादन प्रमाव, पेंशन, वरिष्ठता, पदोन्नतियों, स्थानान्तरण तथा अन्य मुददे सामूहिक सौदेबाजी में सम्मिलित किये जाते हैं। इसमें आनुवंशिक लाभ, बीमारी व मातृत्व लाभ आदि मुददे भी सम्मिलित किए जाते है। सामूहिक सौदेबाजी अव संस्थागत हो चुकी है। द्वितीय विश्वयुद्व के उपरान्त सामूहिक सौदेबाजी काफी विकसित हो चुकी है।

सामूहिक सौदेबाजी सम्बन्धी प्रमुख विषयसंपादित करें

समझौता तथा इसका प्रशासन
  • प्रबन्धकीय अधिकार एवं दायित्व
  • संघीय सुरक्षा एवं स्थिति
  • इकरार को लागू करना
  • शिकायत प्रक्रिया
  • मध्यस्थता तथा पंच फैसला ।
काम की सुरक्षा, पदोन्नति तथा छंटनी
  • वरीयता का प्रावधान
  • भाड़ा तथा छंटनी प्रक्रिया
  • प्रषिक्षण एवं पुनः परीक्षण
  • विच्छेद भुगतान
  • ओवर-टाइम कार्य का आवंटन
मजदूरी का निर्धारण
  • मूल मजदूरी की दरें एवं मजदूरी की संरचना
  • प्रेरणा व्यवस्था
  • ओवर टाइम काम के लिए मजदूरी की दर
  • दो शिफ्टों में अन्तराल
  • जीवन-निर्वाह सम्बन्धी समायोजन
सीमावर्ती लाभ
  • पेंशन योजना
  • स्वास्थ्य एवं बीमा योजना
  • अस्वस्थ होने पर छुटटी
  • छुटिटयां एवं अवकाश
  • लाभ में भागीदारी
कम्पनी की क्रियायें
  • काम के नियम
  • अनुशासन प्रक्रिया
  • उत्पादन दर एवं मानक
  • सुरक्षा एवं स्वास्थ्य
  • अवकाश की अवधि
  • तकनीकी परिवर्तन