सारसुधानिधि उन्नीसवीं सदी के अत्यन्त ओजस्वी पत्रों में से एक था। सदानन्द मिश्र इसके सम्पादक थे। राष्ट्र में स्वराज्य की वापसी एवं समाज का पुनर्जागरण ही ‘सारसुधानिधि' का मूल स्वर था। यह पत्र 13 अप्रैल, 1879 से प्रकाशित होना शुरू हुआ। सदानन्द मिश्र की यह संपादकीय टिप्पणी पत्र के उद्देश्य को बताने के लिए पर्याप्त जान पड़ती है-

" ‘‘भारत के दुर्भाग्य को अपना दुर्भाग्य और भारत के सौभाग्य को अपना सौभाग्य समझो। नही तो भारत का दुर्भाग्य कदापि दूर नहीं होगा। (सारसुधानिधि, वर्ष 2, अंक 25)

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