लोक वित्त

अर्थव्यवस्था के भीतर सरकार की भूमिका का अध्ययन
(सार्वजनिक वित्त से अनुप्रेषित)

अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका का अध्ययन लोक वित्त (Public finance) कहलाता है। यह अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो सरकार के आय (revenue) तथा व्यय का आकलन करती है। अर्थात सार्वजनिक वित्त सरकार के आय व व्यय का विस्तृत अध्ययन है। इसके द्वारा राज्य द्वारा अर्जित आय तथा सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा किए गए व्यय का लेखा जोखा प्रस्तुत किया जाता है। सरकार के आय व व्यय को सीमान्त समन्वय के द्वारा नियमित किया जाता है ताकि अधिकतम जनहित प्राप्त किया जा सके।यह वांछित प्रभाव प्राप्त करने और अवांछित प्रभावों से बचने के लिये इनमें आवश्यक घट-बढ करने का सुझाव भी देती है।आधुनिक लोकतांत्रिक समाजो में लोकवित्त अर्थात आय और व्यय से जुड़े प्रावधान लोगों के जीवन स्तर और देश की विकास प्रक्रिया पर सीधा प्रभाव डालता है।

सार्वजनिक वित्त से अभिप्राय किसी देश की सरकार के वित्तीय साधनों अर्थात् आय और व्यय से है। अन्य शब्दों में, सरकार की आय तथा व्यय सम्बन्धी समस्याओं के अध्ययन को सार्वजनिक वित्त कहते है। फिन्डले शिराज़ के अनुसार, "सार्वजनिक वित्त सरकारी अधिकारियों द्वारा एकत्रित की जाने वाली आय तथा उसके व्यय में निहित सिद्धान्तों का अध्ययन है।" डाल्टन के अनुसार,"सार्वजनिक वित्त ऐसा विषय है जो सार्वजनिक अधिकारियों के आपसी सहयोग से किए गए आय व व्यय का अध्ययन करता है।" इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक वित्त केन्द्रीय, राज्य या स्थानीय सरकारों के वित्त सम्बन्धी विषयों का अध्ययन है।

सार्वजनिक वित्त के क्षेत्र

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  1. सार्वजनिक राजस्व: सार्वजनिक वित्त के विषय क्षेत्र में हम धन को एकत्रित करने तथा विविध गतिविधियों में इसके वितरण का अध्ययन करते हैं। सार्वजनिक राजस्व का सम्बन्ध आय प्राप्ति के साधनों कराधान के सिद्धान्तों तथा उनकी समस्याओं से है। अन्य शब्दों में, करों से प्राप्त होने वाली सब प्रकार की आय तथा सार्वजनिक जमा से होने वाली प्राप्तियों को सार्वजनिक राजस्व में सम्मिलित किया जाता है।
  2. सार्वजनिक व्यय: इस भाग में हम सार्वजनिक व्यय से संबंधित सिद्धान्तों व समस्याओं का अध्ययन करते हैं। इसमें हम विभिन्न आधारों पर सार्वजनिक व्यय के वर्गीकरण का भी अध्ययन करते हैं। इसमें हम सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय पर अपनाई गई नीतियों का आलोचनात्मक सर्वेक्षण करते हैं तथासुधार हेतु उपाय सुझाते हैं।
  3. सार्वजनिक ऋण: सार्वजनिक वित्त के इस अनुभाग में हम ऋण करने की समस्या का अध्ययन करते हैं। हम देखते हैं कि ऋण किस कारण लिया जा रहा है? ऋण का स्रोत क्या है? उसे एकत्रित करने का क्या तरीका है? उस पर क्या ब्याज है? तथा उसका भुगतान करने का क्या ढंग है? इसलिए यह ऋण एकत्रित करने तथा उसके भुगतान करने की समस्या से संबंधित है।
  4. वित्तीय प्रशासन: वित्तीय या राजस्व प्रशासन के अंतर्गत हम उस सरकार से संबंधित होते हैं जो राज्य के विविध कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं। वित्तीय प्रशासन से जुड़ा महत्वपूर्ण विषय यही है कि बजट कैसे लागू किया जाए? इसके अतिरिक्त बजट तैयार करने की पूरी प्रक्रिया बजट प्रस्तुत करना, पास करना, लागू करना तथा उसका मूल्यांकन करना इत्यादि विषय शामिल है।
  5. आर्थिक स्थिति: इसमें सरकार द्वारा देश में आर्थिक स्थिरता लाए जाने के लिए किए गए उपाय तथा अन्य उपायों व विभिन्न आर्थिक नीतियों का वर्णन किया जाता है।

सार्वजनिक वित्त की प्रकृति

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सार्वजनिक वित्त की प्रकृति से अभिप्राय इस बात की विवेचना से है कि सार्वजनिक वित्त विज्ञान है अथवा कला है या दोनों ही है। सार्वजनिक वित्त की प्रकृति के विषय में यह भी प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह केवल वास्तविक विज्ञान है या आदर्शात्मक विज्ञान भी।

सार्वजनिक वित्त एक वास्तविक विज्ञान है

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विज्ञान किसी विषय का क्रमागत अध्ययन है जिसमें तथ्यों के कारण तथा परिणाम का अध्ययन किया जाता है। सार्वजनिक वित्त में सरकार के आय तथा व्यय सम्बन्धी विषय का क्रमागत अध्ययन किया जाता है। इसमें सरकार की आय तथा व्यय सम्बन्धी तथ्यों में पाये जाने वाले कारण तथा परिणाम के सम्बन्ध का भी अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए,सार्वजनिक वित्त के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यदि कर ऊंची दर पर लगाये जायेंगे तो उनका उत्पादन तथा उपभोग पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।इस प्रकार सार्वजनिक वित्त एक वास्तविक विज्ञान है।

अब प्रश्न यह है कि सार्वजनिक वित्त वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्शात्मक विज्ञान भी है। वास्तविक विज्ञान का सम्बन्ध ‘क्या है’ से है जबकि आदर्शात्मक विज्ञान का सम्बन्ध ‘क्या होना चाहिए’ से है। सार्वजनिक वित्त वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्शात्मक विज्ञान भी है क्योंकि सार्वजनिक वित्त के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि कर कितनी मात्रा में लगाये जाने चाहिए। सार्वजनिक व्यय कौन सी मदों पर अधिक तथा कौन सी मदों पर कम किया जाना चाहिए। इस प्रकार सार्वजनिक वित्त एक आदर्शात्मक विज्ञान भी है।

अन्य शब्दों में इसका अर्थ यह है कि सार्वजनिक वित्त द्वारा केवल कार्यों की व्याख्या ही नहीं की गई है, बल्कि यह अच्छे है या बुरे हैं, यह मूल्यांकन भी किया जाता है। सार्वजनिक वित्त का यह कल्याणकारी पहलू ही इसको आदर्शात्मक विज्ञान बनाता है। इसलिए सार्वजनिक वित्त ‘क्या होना चाहिए’ से भी संबंधित हैं। इसलिए इसका प्रयोग राजस्व क्रियाओं के रूप में व्यापार चक्र में उतार चढ़ाव रोकने बेरोजगारी रोकने तथा छिपी बेरोजगारी कम करने आय व धन का समान वितरण सुनिश्चित करने, आर्थिक स्थिरता व वृद्धि तथा क्षेत्रीय समस्याएं घटाने में किया जाता है।

सार्वजनिक वित्त एक कला है

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कला निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ज्ञान का प्रयोग है। सार्वजनिक वित्त, राजस्व नीति द्वारा सरकार की आय तथा व्यय सम्बन्धी ज्ञान का प्रयोग पूर्ण रोजगार, आर्थिक समानता, आर्थिक विकास, कीमत स्थिरता आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किया जाता है। उदाहरण के लिए, आर्थिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर प्रगतिशील दर पर लगाये जाते है।कर लगाने की क्रिया निश्चित रुप से एक कला है और बजट बनाना भी स्वयं एक कला है। इस प्रकार सार्वजनिक वित्त का अध्ययन कई व्यावहारिक समस्याओं के अध्ययन में सहायक सिद्ध होता है। अतः सार्वजनिक वित्त एक कला भी है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक वित्त विज्ञान और कला दोनों ही है। यह एक वास्तविक विज्ञान भी है तथा आदर्शात्मक विज्ञान भी है।

सार्वजनिक वित्त का महत्व

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सार्वजनिक वित्त, विकसित एवं विकासशील देशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सरकार अनेक गतिविधियां संपन्न करती है, इसलिए वर्तमान समय में, सार्वजनिक वित्त ने बहुत महत्व अर्जित कर लिया है।

सार्वजनिक व्यय

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