सिटी पैलेस परिसर बहुत ही खूबसूरत है और इसके साथ-साथ बालकॉनी बनाने की योजना है। गेट के पीछे एक बडा मैदान है। इसी मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। सुबह के समय जब सूर्य की पहली किरण सिटी पैलेस परिसर के मुख्य द्वार पडती है तो इसकी छटा देखने लायक होती है। हाल के दिनों में इसकी स्थिति दयनीय है। इस पूरी इमारत में सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, मुख्य रूप से जिलाधीश और अलवर पुलिस के सुपरिटेण्डेन्ट का। इसका निर्माण 1793 में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर संग्राहलय भी है। संग्राहलय दर्शन के लिए शुल्क देना पडता है। यह तीन हॉल्स में विभक्त है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखें हुए है, इस हॉल का मुख्य आकर्षण महाराज जयसिंह की साईकिल है। यहां हर वस्तु बडे सुन्दर तरीके से सजाई गई है। दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगजेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री को प्रदर्शित किया गया है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। यहां पर ऐसी म्यान रखी है जिसमे दो तलवारें एक साथ रखी जा सकती है यह पर्यटकों के लिए विशेष दर्शनीय है। संग्राहलय घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, शुक्रवार को अवकाश

सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक बडा जलाशय है। इसे सागर के नाम से जाना जाता है। यह बहुत ही खूबसूरत है और इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के मुहाने तक सीढियां बनी हुई है। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। जलाशय में कबूतरों को दाना खिलाना यहां की परंपरा रही है। जलाशय के साथ मंदिरो की एक श्रृंखला भी है। इसके दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बनाया गया संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।