सिद्ध चिकित्सा भारत के तमिलनाडु की एक पारम्परिक चिकित्सा पद्धति है। भारत में इसके अतिरिक्त आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धतियाँ भी प्रचलित हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तर भारत में यह पद्धति ९ नाथों एवं ८४ सिद्धों द्वारा विकसित की गयी जबकि दक्षिण भारत में १८ सिद्धों (जिन्हें 'सिद्धर' कहते हैं) द्वारा विकसित की गयी। इन सिद्धों को यह ज्ञान शिव और पार्वती से प्राप्त हुआ। यह चिकित्सा पद्धति भारत की ही नहीं, विश्व की सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा-पद्धति मानी जा सकती है।

आयुर्वेदिक उपचार

परिचय संपादित करें

सिद्ध काफी हद तक आयुर्वेद के समान है। इस पद्धति में रसायन का आयुर्विज्ञान तथा आल्‍केमी (रसायन विश्‍व) के सहायक विज्ञान के रूप में काफी विकास हुआ है। इसे औषध-निर्माण तथा मूल धातुओं के सोने में अंतरण में सहायक पाया गया। इसमें पौधों और खनिजों की काफी अधिक जानकारी थी और वे विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं की जानकारी रखते थे।

सिद्ध प्रणाली के सिद्धांत और शिक्षा मौलिक और व्‍यावहारिक दोनों हैं। यह आयुर्वेद के समान ही है इसकी विशेषता आंतरिक रसायन है। इस प्रणाली के अनुसार मानव शरीर ब्रह्माण्‍ड की प्रतिकृति है (यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे) और इसी प्रकार से भोजन और औषधि भी, चाहे उनका उद्भव कहीं से भी हुआ हो। यह प्रणाली जीवन में उद्धार की परिकल्‍पना से जुड़ी हुई है। इस प्रणाली के प्रवर्तकों का मानना है कि औ‍षधि और मनन-चिंतन के द्वारा इस अवस्‍था को प्राप्‍त करना संभव है।

सिद्ध प्रणाली आकस्मिक मामलों को छोड़ कर सभी प्रकार के रोगों का इलाज करने में सक्षम है। सामान्‍य तौर पर यह प्रणाली त्‍वचा संबंधी सभी समस्‍याओं का उपचार करने में सक्षम हैं; विशेष कर सोरियासिस, यौन संचारित संक्रमण, मूत्र के रास्‍ते में संक्रमण, यकृत की बीमारी और गैस्‍ट्रो आंत के रास्‍ते के रोग, सामान्‍य डेबिलिटी, पोस्‍टपार्टम एनेमिया, डायरिया और गठिया (आथ्रॉइटिस) और एलर्जी विकार के अतिरिक्‍त सामान्‍य बुखार आदि।

निदान संपादित करें

निदान के लिये आठ चीजों का परीक्षण किया जाता है-

  1. ना (जिह्वा)
  2. वर्णम् (रंग)
  3. कुरल् (ध्वनि)
  4. कण् (आंखें)
  5. तॊडल् (स्पर्श)
  6. मलम् (मल)
  7. नीर (मूत्र)
  8. नाडि (नाड़ी)

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें