सिफालोस्पोरिन (sg.उच्चारित/ˌsɛfəlɵˈspɔrɨn/) β-lactam प्रतिजैविकों का एक वर्ग है, जो मूल रूप से एक्रिमोनियम से हुआ है, जिसे पहले "सिफालोस्पोरियम" के नाम से जाना जाता था।[1]

सेफ्लोस्पोरिन के मूल संरचना

सेफामाइसिन्स के साथ वे β-lactam प्रतिजैविकों के एक उपसमूह का निर्माण करते हैं, जिन्हें सेफेम्स कहा जाता है।

सिफालोस्पोरिन यौगिकों को सर्वप्रथम 1948 में सार्डिनिया में इतालवी वैज्ञानिक गियुसेप ब्रोत्ज़ु के द्वारा एक नाली से सेफैलोस्पोरियम एक्रीमोनियम के समूह से पृथक किया गया.[2] उन्होंने देखा कि इन समूहों ने पदार्थों का निर्माण हुआ, जो मियादी बुखार (टाइफॉयड) के कारण बीटा-लैटामेज युक्त साल्मोनेला टाइफी के विरुद्ध प्रभावकारी थे। ऑक्सफ़ोर्ड विश्विद्यालय के सर विलियम डून स्कूल ऑफ पैथोलोजी में गाइ न्यूटन एवं एडवर्ड अब्राहम ने सिफालोस्पोरिन सी को अलग किया। सिफालोस्पोरिन न्यूक्लियस, 7-एमीनोसेफैलोस्पोरैनिक अम्ल (7-ए सी ए), सिफालोस्पोरिन सी से व्युत्पन्न हुआ था और वे पेनिसिलिन न्यूक्लियस 6-एमिनोपेनिसिलैनिक अम्ल के अनुरूप सिद्ध हुए, लेकिन यह नैदानिक उपयोग के लिए पर्याप्त रूप से शक्तिशाली नहीं था। 7-एसीए, रोगक्षमता में सुधार के परिणामस्वरूप उपयोगी प्रतिजैविक कारकों का विकास हुआ, एवं प्रथम कारक सेफैलोथिन (सेफ़ैलोटिन) को एली लिली एवं कंपनी के द्वारा 1964 में शुरू किया गया था

क्रिया प्रणाली

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सिफालोस्पोरिन जीवाणुनाशक होते हैं और उनमें अन्य बीटा-लैक्टम प्रतिजैविकों (जैसे कि पेनिसिलिन) के समान क्रिया विधि होती है लेकिन वे पेनिसिलिनेज़ के प्रति कम संवेदनशील होते हैं। सिफालोस्पोरिन जीवाणु संबंधी कोशिका दीवार के पेप्टिडोग्लाईकैन परत के संश्लेषण को बाधित करते हैं। पेप्टिडोग्लाईकैन परत कोशिका दीवार की संरचनात्मक अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है। पेप्टिडोग्लाईकैन के संश्लेषण में एक पेप्टाइड श्रृंखला से दूसरे पेप्टाइड श्रृंखला में एमीनो अम्ल का स्थानांतरण संबंधी अंतिम चरण पेनिसिलिन-बंधनकारी प्रोटीन (पी बी पी) नामक ट्रान्सपेप्टिडेज़ के द्वारा सरल बना दिया जाता है। पेप्टिडो ग्लाईकैन के साथ परस्पर संयोजन (क्रॉसलिंक) करने के लिए म्यूरोपेप्टाइड्स के अंत में पीबीपी डी-अला-डी-अला (D-Ala-D-Ala) के साथ बंधन बनाते हैं। बीटा लैक्टम प्रतिजैविक इस साइट की नकल करते हैं और पूरी तरह से पेप्टिडोग्लाइकैन के पीबीपी क्रॉसलिंकिंग को रोकते हैं।

नैदानिक उपयोग

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इस विशेष रूप वाले प्रतिजैविक के प्रति अतिसंवेदनशील जीवाणु के द्वारा उत्पन्न संक्रमणों के रोगरोधक चिकित्सा एवं उपचार के लिए सिफालोस्पोरिन बताए जाते हैं। प्रथम पीढ़ी के सफैलोस्पोरिन मुख्य रूप से ग्राम-पॉजिटिव (अभिरंजन की ग्राम-विधि में जैन्शियम वॉयलेट से अभिरंजित हो जाने वाले) जीवाणु के विरुद्ध सक्रिय होते हैं, एवं क्रमागत पीढ़ियों ने ग्राम-निगेटिव (अभिरंजन की ग्राम-विधि में अभिरंजक से रहित अथवा एल्कोहॉल से रंगहीन हो जाने वाले) जीवाणु के विरुद्ध सक्रियता में वृद्धि की है (हालांकि अक्सर अभिरंजन की ग्राम-विधि में जैन्शियम वॉयलेट से अभिरंजित हो जाने वाले जीवाणु के विरुद्ध कम होती हुई सक्रियता के साथ).

प्रतिकूल प्रभाव

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सिफालोस्पोरिन से जुड़ी हुई औषधियों की सामान्य प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं (एडीआर)(मरीजों के≥% 1) में शामिल हैं: दस्त, मिचली, फुन्सी, विद्युत्-अपघट्य संबंधी गड़बड़ी और/या इंजेक्शन वाले स्थान पर दर्द और सूजन. कभी-कभी होने वाले एडीआर (मरीजों का 0.1-1%) में शामिल हैं: उल्टी, सिरदर्द, चक्कर आना, कैन्डिडा एल्बीकैन्स नामक कवक द्वारा मुख और योनि संबंधी संक्रमण (कैन्डिडिएसिस), कूट-कला से संबंधित बृहदान्त्रशोथ, अतिसंक्रमण, रक्त में इओसिनोफिलों की अधिकता और/या बुखार.

पेनिसिलिन और/या कार्बापेनेम्स के प्रति ऐलर्जी संबंधी अतिसंवेदनशीलता से प्रभावित मरीजों के आम तौर से उद्धृत आंकड़ों में सिफालोस्पोरिन के साथ भी परस्पर-सक्रियता थी जो मूल सिफालोस्पोरिन[3] पर अच्छी तरह विचार करने वाले 1975 के एक अध्ययन से उत्पन्न हुआ, एवं परवर्ती "सुरक्षा प्रथम" नीति का तात्पर्य था कि इसे व्यापक रूप से उद्धृत किया गया एवं इसे समूह के सभी सदस्यों के लिए लागू होना माना गया.[4] इसलिए यह आम तौर पर कहा गया कि वे आमतौर पर पेनिसिलिन, कार्बापेनेम्स या सिफालोस्पोरिन के प्रति गंभीर, शीघ्र एलर्जी संबंधी प्रतिक्रियाओं (शीतपित्त, तीव्रग्राहिता, वृक्क के अन्तरालीय ऊतक का शोथ, आदि) के इतिहास वाले मरीजों में अपरामर्श्य होते हैं।[5] हालांकि, इसे यह सुझाव देते हुए हाल के जानपदिक-रोगविज्ञान संबंधी कार्य की सहायता से देखा जाना चाहिए कि, बहुत से द्वितीय-पीढ़ी (या बाद की) वाले सिफालोस्पोरिन के लिए, पेनिसिलिन के साथ परस्पर-अभिक्रियशीलता की दर बहुत कम होती है, जिसमें परीक्षण किए गए अध्ययनों में अभिक्रियाशीलता का कोई महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा हुआ जोखिम नहीं होता है।[4][6] ब्रिटिश राष्ट्रीय सूत्र-समुदाय ने पहले परस्पर-अभिक्रियाशीलता 10% की व्यापक चेतावनी जारी की, लेकिन, सितंबर 2008 संस्करण के समय से, उपयुक्त विकल्पों की अनुपस्थिति में यह सुझाव देता है कि मुख से लिया जाने वाला सेफ़िक्सिम या सेफ़ुरॉक्सिम तथा इंजेक्शन द्वारा दिया जाने योग्य सेफ़ोटैक्सिओम, सेफ़्टाज़ाइडिन, एवं सेफ़्ट्रिऐक्सोन का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सेफ़ैक्लोर, सेफ़ैड्रोसिल, सेफ़ैलेक्सिन, एवं सेफ़्राडिन से परहेज करनी चाहिए.[7]

कई सफैलोस्पोरिन रक्त में प्रोथ्रॉम्बिन की कमी एवं ईथेनॉल के साथ डाइसल्फिरैम-सदृश अभिक्रिया से संबंधित हैं।[8][9] इनमें लैटामॉक्सेफ़, सेफ़मेनॉक्सिम, मोक्सैलैक्टम, सेफ़ोपेराज़ोन, सेफ़ामैन्डोल, सेफ़मिटाज़ोल, एवं सेफ़ोटेटैन शामिल हैं। यह, इन सिफालोस्पोरिन की एन-मिथाईल्थायोटेट्राज़ोल रोगक्षमता के कारण माना जाता है, जो विटामिक के इपॉक्साइड रिडक्टेस नामक एंज़ाइम (जो संभवत: रक्त में प्रोथ्रॉम्बिन की कमी उत्पन्न करता है) एवं ऐल्डिहाईड डिहाइड्रोजिनेस (ऐल्कोहल के प्रति असहिष्णुता उत्पन्न करने वाला) को बाधित करता है।[10]

वर्गीकरण

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विभिन्न गुण हासिल करने के लिए सिफालोस्पोरिन नाभिक में संशोधन किया जा सकता है। कभी-कभी सिफालोस्पोरिन को उनके सूक्षजीव अवरोधी गुणों के द्वारा "पीढ़ियों" में वर्गीकृत किया जाता है। प्रथम सिफालोस्पोरिन को प्रथम पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के रूप में नामित किया गया, जबकि, बाद में, अधिक लंबे विस्तृत-श्रेणी वाले सिफालोस्पोरिन को द्वितीय-पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के रूप में वर्गीकृत किया गया. सिफालोस्पोरिन की प्रत्येक नई पीढ़ी में पिछली पीढ़ी की तुलना में महत्वपूर्ण रूप से बहुत अधिक ग्राम-निगेटिव सूक्ष्मजीवरोधी गुण होते हैं। वे अधिकांश स्थितियों में ग्राम-पॉजिटिव सूक्षम जीवों के विरुद्ध घटती हुई क्रियाशीलता के साथ होते हैं। हालांकि, चौथी पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन में सही व्यापक-विस्तृत श्रेणी वाली क्रियाशीलता होती है।

"पीढ़ियों" में सिफालोस्पोरिन का वर्गीकरण आम तौर पर व्यवहार में लाया जाता है, यद्यपि सिफालोस्पोरिन का सही वर्गीकरण अक्सर गलत होता है। उदाहरण के लिए, सिफालोस्पोरिन की चौथी पीढ़ी को अभी तक जापान में मान्यता प्राप्त नहीं है। जापान में, सेफ़ैक्लोर प्रथम-पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के रूप में वर्गीकृत है, यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका में यह दूसरी पीढ़ी का है; एवं सेफ़बुपेराज़ोन, सेफ़्मिनॉक्स, एवं सेफ़ोटेटैन दूसरी पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के रूप में वर्गीकृत हैं। सेफ़मिटाज़ोल एवं सेफ़ॉक्सिटिन तीसरी पीढ़ी के सेफेम्स के रूप में वर्गीकृत हैं। फ़्लोमॉक्सेफ़, लैटामॉक्सेफ़ नए वर्ग में हैं जिन्हें ऑक्सासेफेम्स कहा जाता है।

अंग्रेजी बोलने वाले देशों में अधिकांश प्रथम-पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन का मूल रूप से "सेफ-" हिज्जे (वर्तनी) किया जाता था। यह संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में पसंदीदा वर्तनी (हिज्जे) बना हुआ है, जबकि यूरोपीय देशों ने अंतर्राष्ट्रीय गैरमालिकाना नामों को अपनाया है, जो सामान्य रूप से "सेफ़-" हैं। पहली पीढ़ी के अधिक नए सिफालोस्पोरिन एवं परवर्ती पीढ़ी के सभी सिफालोस्पोरिन का हिज्जे "सेफ़-" किया जाता है।

कुछ लोगों का कहना है कि यद्यपि सिफालोस्पोरिन को पांच या छह पीढ़ियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, इस संगठन की उपयोगिता की सीमित नैदानिक प्रासंगिकता है।[11]

पहली पीढ़ी

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शास्त्रीय सेफ्लोस्पोरिन की संरचना

हालांकि प्रथम पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन सामान्य-विस्तृत श्रेणी वाले अभिकर्ता हैं, जिनके साथ जीवाणु की क्रियाशीलता की विस्तृत श्रेणी होती है जिसमें पेनिसिलिनेज उत्पादक, मिथाईसालिन के प्रति अतिसंवेदनशील स्टैफाईलोकोक्की एवं स्ट्रेप्टोकोक्की शामिल होते हैं, ऐसे संक्रमणों के लिए वे पसंद की दवा नहीं हैं। उनमें कुछ इशेरिकिया कोली, क्लेब्सिएला न्यूमोनिया, एवं प्रोटियस मिरैबिलिस, लेकिन उनमें बैक्टीरॉयड्स फ़्रैजिलिस, एन्टेरोकॉक्की, मिथाईसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफाईलोकोक्की, स्यूडोमोनस, एसिनेटोबैक्टर, एंटेरोबैक्टर, इंडोल-ग्राही प्रोटियस, या सेरैशिया के विरुद्ध कोई क्रियाशीलता नहीं होती है।

  • सेफ़ैसेट्राइल (सेफासेट्राइल)
  • सेफ़ैड्रॉक्सिल (सेफैड्रॉक्सिल; ड्युरिसेफ़)
  • सेफ़ैलेक्सिन (सेफैलेक्सिन; केफ़्लेक्स)
  • सेफ़ैलोग्लाइसिन (सेफैलोग्लाइसिन)
  • सेफ़ैलोनियम (सेफैलोनियम)
  • सेफ़ैलोरिडाइन (सेफैलोरिडाइन)
  • सेफ़ैलोटिन (सेफैलोथिन; केफ़्लिन)
  • सेफ़ैपाइरिन (सेफैपाइरिन; सेफ़ैड्रिल)
  • सफ़ैट्राइज़िन
  • सफ़ैऐफ़्लर
  • सेफ़ैज़ीडोन
  • सेफ़ैज़ोलिन (सेफैज़ोलिन; ऐन्सेफ़; केफ़्ज़ॉल)
  • सेफ़्रैडिन (सेफ्रैडिन; वेलोसेफ़)
  • सेफ़्रॉक्साडिन
  • सेफ़्टेज़ोल

दूसरी पीढ़ी

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दूसरी पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन में बहुत अधिक ग्राम-निगेटिव विस्तृत-श्रेणी होती है ग्राम-पॉजिटिव कोक्की के विरुद्ध कुछ क्रियाशीलता को बनाए रखता है। वे बीटा-लैक्टामेस के प्रति भी अधिक प्रतिरोधी होते हैं।

  • सेफ़ैक्लोर (सेक्लोर, डिस्टैक्लोर, केफ़्लोर, रैनिक्लोर)
  • सेफ़ोनिसिड (मोनोसिड)
  • सेफ़प्रोज़िल (सेफ़प्रॉक्सिल; सेफ़ज़िल)
  • सेफ़ुरॉक्सिम (ज़िन्नत, ज़िनासेफ़, सेफ़टिन, बायोफ़्युरॉक्सिम[12])
  • सेफ़ुज़ोनम

वातजीवीरोधी क्रियाशीलता के साथ द्वितीय पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन

  • सेफ़मिटैज़ोल
  • सेफ़ोटेटैन
  • सेफ़ॉक्साइटिन

निम्नलिखित सेफर्म को भी कभी-कभी द्वितीय पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के साथ समूहीकृत किया जाता है:

  • कार्बैसेफेम: लोरैकार्बेफ़ (लोरैबिड)
  • सेफैमाइसिन: सेफ़ब्युपेरैज़ोन, सेफ़मिटैज़ोल (ज़ेफ़ैज़ोन), सेफ़मिनॉक्स, सेफ़ोटेटैन (सेफ़ोटैन), सेफ़ॉक्साइटिन (मेफ़ॉक्सिन)

तीसरी पीढ़ी

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तीसरी पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन में क्रियाशीलता संबंधी एक व्यापक विस्तृत-श्रेणी एवं ग्राम-निगेटिव सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध अधिक बढ़ी हुई क्रियाशीलता होती है। इस समूह के कुछ सदस्यों (विशेष रूप से वे जो मौखिक सूत्रण में उपलब्ध रहते हैं और वे जिनमें गतिशील ग्राम-निगेटिव वातापेक्षी दण्डाणु संबंधी क्रियाशीलता होती है) में ग्राम-पॉजिटिव सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध घटी क्रियाशीलता होती है। वे विशेष रूप से अस्पताल से होने वाले संक्रमणों के उपचार में उपयोगी हो सकते हैं, हालांकि प्रसारित-विस्तृत श्रेणी वाले बीटा-लैक्टामेस के बढ़ते हुए स्तर प्रतिजैविकों के इस वर्ग की नैदानिक उपयोगिता को कम कर रहे हैं। वे सीएनएस (CNS) में प्रवेश करने में भी सक्षम होते हैं, जिसके द्वारा वे उन्हें न्यूमोकोक्की, मेनिंगोकोक्की द्वारा उत्पन्न किए गए मस्तिष्कावरणशोथ, एच. इंफ्लुएंज़ा, एवं अतिसंवेदनशील ई.कोली, क्लेब्सिएला, एवं पेनिसिलिन-प्रतिरोधी एन. गोनॉरिया (सूजाक) के विरुद्ध उपयोगी बनाते हैं। 2007 से, तीसरी पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन (सेफ़्ट्राइऐक्सोन या सेफ़िक्सिम) संयुक्त राज्य अमेरिका में सूजाक के लिए एक मात्र परामर्श योग्य उपचार रहे हैं।[13]

  • सेफ़कैपीन
  • सेफ़डैलोक्सिम
  • सेफ़डिनिर (ऑम्निसेफ़, केफ़निर)
  • सेफ़डिटोरेन
  • सेफ़ेटैमेट
  • सेफ़िक्सिम (सुप्रैक्स)
  • सेफ़मेनॉक्सिन
  • सेफ़ोडिज़िम
  • सेफ़ोटैक्सिम (क्लैफ़ोरैन)
  • सेफ़ोवेसिन (कॉन्वेनिया)
  • सेफ़पिमिज़ोल
  • सेफ़पोडॉक्सिम (वैंटिन, पीईसीईएफ)
  • सेफ़टेरैम
  • सेफ़टीब्यूटेन
  • सेफ़टियोफ़र
  • सेफ़टियोलीन
  • सेफ़टीज़ॉक्सिम (सेफ़िओज़ॉक्स)
  • सेफ़ट्राइऐक्सोन (रोसेफिन)

गतिशील ग्राम-निगेटिव वातापेक्षी दण्डाणु संबंधी क्रियाशीलता वाले तृतीय पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन

  • सेफ़ोपेराज़ोन (सेफ़ोबिड)
  • सेफ़्टाज़िडिम (फ़ोर्टम, फ़ोर्टाज़)

निम्नलिखित सेफेम को भी कभी-कभी तृतीय-पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के साथ समूहीकृत किया जाता है:

  • ऑक्सैसेफेम्स: लैटामॉक्सेफ़ (मॉक्सैलैक्टम)

चतुर्थ पीढ़ी

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चतुर्थ पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन ग्राम-पॉजिटिव सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध प्रथम-पीढ़ी सिफालोस्पोरिन के समान क्रियाशीलता वाले प्रसारित विस्तृत-श्रेणी के एजेंट होते हैं। उनमें तृतीय-पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन की अपेक्षा बीटा-लैक्टामेस के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोध होता है। कई रक्त-मस्तिष्क के अवरोधों को पार कर जाते हैं एवं मस्तिष्कावरणशोथ में प्रभावकारी होते हैं। उनका गतिशील ग्राम-निगेटिव वातापेक्षी दण्डाणु संबंधी एरूजिनोसा के विरुद्ध भी इस्तेमाल किया जाता है।

  • सेफ़क्लिडाइन
  • सेफ़ेपाइम (मैक्सीपाइम)
  • सेफ़लूप्रेनैम
  • सेफ़ोसेलिस
  • सेफ़ोज़ोप्रैन
  • सेफ़पिरॉम (सेफ़रॉम)
  • सेफ़क्विनोम

निम्नलिखित सेफेम को भी कभी-कभी चतुर्थ-पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के साथ समूहीकृत किया जाता है:

  • ऑक्सैसेफेम्स: फ़्लोमॉक्सेफ़

पांचवीं पीढ़ी

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  • सेफ़टोबाइप्रोल को "पांचवीं पीढ़ी" सिफालोस्पोरिन[14][15] के रूप में वर्णित किया गया है, हालांकि इस शब्दावली के लिए स्वीकृति सार्वभौमिक नहीं है। सेफ़टोबाइप्रोल (और घुलनशील चयापचय प्रक्रिया द्वारा सक्रिय होने वाली निष्क्रिय औषधि मेडोकैरिल) एफडीए के शीघ्रपथ पर हैं। सेफ़टोबाइप्रोल में शक्तिशाली गतिशील ग्राम-निगेटिव वातापेक्षी दण्डाणु रोधी विशेषताएं होती हैं एवं वह प्रतिरोध के विकास के प्रति कम संवेदनशील मालूम पड़ता है .
  • सेफ़टारोलिन को भी पांचवीं पीढ़ी के सिफालोस्पोरिन के रूप में वर्णित किया गया है।[16]

अभी तक वर्गीकृत किए जाने वाले

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इन सेफेम के नामकरण के संबंध में बहुत अधिक तरक्की हुई है, लेकिन उन्हें किसी खास पीढ़ी में नहीं रखा गया है।

  • सेफ़लोरैम
  • सेफ़ैपैरोल
  • सेफ़कैनेल
  • सेफ़ेड्रोलर
  • सेफ़ेमपाइडोन
  • सेफ़ेट्राइज़ोल
  • सेफ़िवाइट्रिल
  • सेफ़मैटिलेन
  • सेफ़मिपीडियम
  • सेफ़ोक्सैज़ोल
  • सेफ़्रोटिल
  • सेफ़सुमाइड
  • सेफ़टारोलिन
  • सेफ़टाइऑक्साइड
  • सेफ़्युरैसेटिम

इन्हें भी देखें

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  • बीटा लाक्टाम एंटीबायोटिक
  1. cephalosporin at Dorland's Medical Dictionary
  2. पोडोलस्की, एम. लॉरेंस (1998) क्योर्स आउट ऑफ़ केओस: हाउ अनएक्स्पेटेड डिस्कवारिज़ लेड टू ब्रेकथ्रू इन मेडिसिन एंड हेल्थ, हारवूड एकडेमिक प्रकाशन
  3. Dash CH (1975). "Penicillin allergy and the cephalosporins". J. Antimicrob. Chemother. 1 (3 Suppl): 107–18. PMID 1201975.
  4. Pegler S, Healy B (2007). "In patients allergic to penicillin, consider second and third generation cephalosporins for life threatening infections". BMJ. 335 (7627): 991. PMID 17991982. डीओआइ:10.1136/bmj.39372.829676.47. पी॰एम॰सी॰ 2072043. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  5. रोस्सी एस, संपादक. ऑस्ट्रेलियाई मेडिसिंस हैण्डबुक 2006. एडिलेड: ऑस्ट्रेलियाई मेडिसिंस हैण्डबुक; 2006.
  6. Pichichero ME (2006). "Cephalosporins can be prescribed safely for penicillin-allergic patients" (PDF). The Journal of family practice. 55 (2): 106–12. PMID 16451776. मूल (PDF) से 24 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2010.
  7. "5.1.2 Cephalosporins and other beta-lactams". British National Formulary (56 संस्करण). London: BMJ Publishing Group Ltd and Royal Pharmaceutical Society Publishing. 2008. पपृ॰ 295. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-85369-778-7. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  8. Kitson TM (1987). "The effect of cephalosporin antibiotics on alcohol metabolism: a review". Alcohol. 4 (3): 143–8. PMID 3593530. डीओआइ:10.1016/0741-8329(87)90035-8.
  9. Shearer MJ, Bechtold H, Andrassy K; एवं अन्य (1988). "Mechanism of cephalosporin-induced hypoprothrombinemia: relation to cephalosporin side chain, vitamin K metabolism, and vitamin K status". Journal of clinical pharmacology. 28 (1): 88–95. PMID 3350995. Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  10. Stork CM (2006). "Antibiotics, antifungals, and antivirals". प्रकाशित Nelson LH, Flomenbaum N, Goldfrank LR, Hoffman RL, Howland MD, Lewin NA (संपा॰). Goldfrank's toxicologic emergencies. New York: McGraw-Hill. पृ॰ 847. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-07-143763-0. अभिगमन तिथि 2009-07-03.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: editors list (link)
  11. "Case Based Pediatrics Chapter". मूल से 30 मई 2010 को पुरालेखित.
  12. Jędrzejczyk, Tadeusz. "Internetowa Encyklopedia Leków". leki.med.pl. मूल से 7 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-03-03.
  13. Barclay, Laurie (अप्रैल 16, 2007). "CDC issues new treatment recommendations for gonorrhea". Medscape. मूल से 21 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-07-01.
  14. Widmer AF (2008). "Ceftobiprole: a new option for treatment of skin and soft-tissue infections due to methicillin-resistant Staphylococcus aureus". Clin. Infect. Dis. 46 (5): 656–8. PMID 18225983. डीओआइ:10.1086/526528. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  15. Kosinski MA, Joseph WS (2007). "Update on the treatment of diabetic foot infections". Clin Podiatr Med Surg. 24 (3): 383–96, vii. PMID 17613382. डीओआइ:10.1016/j.cpm.2007.03.009. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  16. Kollef MH (2009). "New antimicrobial agents for methicillin-resistant Staphylococcus aureus". Crit Care Resusc. 11 (4): 282–6. PMID 20001879. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)

आगे पढ़ें

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  • CXA-101 कलिक्सा थेराप्युटिक्स पर अंतर्गत विकास, "एक उपन्यास सेफलोसपोरीन ऐंटीबायोटिक" पर वर्णित.
    Staff (2009). "Clinical Trials Update (Infection section)". Genetic Engineering & Biotechnology News. 29 (8): 59.

बाहरी कड़ियाँ

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