नारीवादी आंदोलन को लेखन के माध्यम से मजबूती देने वालों में फ़्रांसिसी लेखिका सिमोन द बोउवा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. उन्होंने अस्तित्ववाद के प्रणेता माने जाने वाले लेखक ज्यां पॉल सार्त्र के साथ मिलकर काम किया था. जिसका असर उनके लेखन पर भी दिखता है. इसीलिए वे स्त्रियों के अस्तित्व की बातों से भी बड़ी जिंदादिली से जूझ सकीं. वे स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के प्रति हमेशा चिंतित रहीं और उन्हें और उनकी स्थितियों को अपने लेखन का केंद्र बनाया. लैंगिक विभेद को वे हमेशा अस्वीकार करती रहीं.

उन्होंने 1947 में एक पुस्तक पर काम करना शुरू किया जो, जब 1949 में पूरी होकर आयी तो पूरे विश्व में तहलका मच गया. इस पुस्तक का नाम था- 'the second sex'. इस पुस्तक को नारी आंदोलन की गीता कहा गया.

इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद 'स्त्री उपेक्षिता' नाम से 1990 में प्रभा खेतान के द्वारा किया गया.