सिविल विधि की विधिक प्रणाली
सिविल विधि की विधिक प्रणाली (Civil law (Legal system)) विश्व के अधिकांश भागों में प्रचलित ऐसी विधिक प्रणाली है जिसका प्रादुर्भाव यूरोप की मुख्य भूमि में हुआ। यह विधिक प्रणाली रोमन विधितन्त्र के भीतर विकसित हुई और उसके मूल सिद्धांतों को समाहित करते हुए इसे संहिताबद्ध किया गया। सिविल विधि की विधिक प्रणाली को लोक विधि(common law) की विधिक प्रणाली से अलग माना जाता है, जिसका विकास इंग्लैंड में न्यायाधीशों द्वारा निर्मित असंहिताबद्ध विधि से हुआ है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, सिविल विधि की विधिक प्रणाली उन विधिक विचारों और प्रणालियों का समूह है जिनकी व्युत्पत्ति मूलतः कॉर्पस ज्यूरिस सिविलिस(Corpus Juris Civilis; सिविल विधि का संकलन, जो बाइज़ेंटाइन सम्राट जस्टिनियन प्रथम के आदेश से 529 से 534 तक जारी किया गया था) से हुई थी परन्तु इस पर नेपोलियन कोड, जर्मनी की विधि, कैनॉनिकल विधि(चर्च विधि), सामंती और स्थानीय प्रथाओं के साथ-साथ प्राकृतिक विधि जैसे सिद्धान्तों का भी प्रभाव रहा है। अवधारणात्मक रूप से सिविल विधि की विधिक प्रणाली में विधि के अमूर्त रूप से आगे बढ़ते हुए विधि के सामान्य सिद्धांतों की रचना की गई है और इसमें सारवान नियमों (substantive rules) को प्रक्रियात्मक नियमों (procedural rules) से पृथक कर दिया गया है। इस प्रणाली में सांविधिक कानून (statutory law) को न्यायाधीशों के निर्णयों द्वारा निर्मित विधि पर प्राथमिकता दी जाती है।
अधिनियम और विधि संहिता में महत्वपूर्ण अंतर होता है। सिविल विधि की विधिक प्रणालियों की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता उनकी विधि संहिताएँ हैं, जिनमें संक्षिप्त और सूत्रात्मक वाक्य होते हैं, जो व्यापक रूप से लागू होते हैं किन्तु इनमें तथ्यात्मक विशिष्ट उदाहरण देने से सामान्यतः बचा जाता है। सिविल विधि संहिता के संक्षिप्त प्रावधानों का दायरा व्यापक होता है और यह सामान्य अधिनियमों से भिन्न होती है, जो प्रायः बहुत लंबे और सुविस्तृत होते हैं।
सिविल विधि का उद्भव और विशेषताएँ
संपादित करेंसिविल विधि को नव-रोमन विधि, रोमानो-जर्मनिक विधि या महाद्वीपीय विधि के नाम से भी जाना जाता है। सिविल विधि के लिए अंग्रेज़ी में प्रयुक्त शब्द ‘Civil law’ रोमन साम्राज्य के उत्तरार्द्ध में प्रयुक्त लैटिन शब्द ‘jus civile’ या नागरिक विधि का अनुवाद है। यह शब्द विजित लोगों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के लिए प्रयुक्त शब्द jus gentium के विपरीत था। हालांकि सिविल विधि व्यवसायी परंपरागत रूप से अपनी विधि प्रणाली को व्यापक अर्थों में jus commune(जस कम्यून) कहते हैं। सिविल विधि की विधिक प्रणाली विश्व की सबसे व्यापक विधिक प्रणाली है, जो लगभग 150 देशों में विभिन्न रूपों में लागू है।
सिविल विधि की विधिक प्रणालियों में विधि के प्राथमिक स्रोत के रूप में एक विधि संहिता होती है, जिसमें विषय वस्तु के अनुसार पूर्व-निर्दिष्ट क्रम में व्यवस्थित परस्पर संबंधित प्रावधानों का एक संग्रह होता है। इन संहिताओं में विधि के सिद्धांतों, हक़ों व अधिकारों और आधारभूत विधिक तंत्र की कार्य प्रणाली का वर्णन होता है। संहिताकरण का उद्देश्य नागरिकों को उनसे सम्बन्धित विधि का लिखित संग्रह उपलब्ध कराना है, जिसके अनुसार न्यायाधीश कार्य करते हैं। यद्यपि विधिक संहिता अन्य क़ानूनों की तुलना में अपेक्षाकृत लम्बी होती है तथापि वह विधायिका द्वारा अधिनियमित होती है। विधिक संहिता में विधि संग्रह या निर्णय विधि की सूची नहीं होती है वरन् इसमें सामान्य सिद्धान्तों को विधि के नियमों का रूप दिया जाता है। विश्व की अन्य प्रमुख विधिक प्रणालियाँ हैं- लोक विधि, इस्लामी क़ानून, हलाखा (यहूदियों के धार्मिक कानूनों का संकलन) और चर्च विधि।
सिद्धान्तत:,लोक विधि की विधिक प्रणालियों के विपरीत, सिविल विधि की विधिक प्रणालियों में निर्णय विधि को बाद के मामलों में अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। सिविल विधि की विधिक प्रणाली में न्यायालय सामान्यतः अन्य न्यायिक निर्णयों के संदर्भ के बिना(यहां तक कि उच्चतर न्यायालयों के निर्णयों के संदर्भ के बिना भी), प्रत्येक मामले का निर्णय उसके गुण दोष के आधार पर विधिक प्रावधानों के अनुसार करते हैं। परन्तु व्यवहार में पिछले न्यायिक निर्णयों को नज़ीर के रूप में प्रस्तुत करने और तदनुसार निर्णय करने की प्रवृत्ति सिविल विधि न्यायशास्त्र के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है और यह प्रवृत्ति कई देशों के सर्वोच्च न्यायालयों में भी देखी जा रही है। जहाँ फ़्रेंच भाषी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय किसी व्याख्या या तार्किक विश्लेषण से रहित, छोटे और संक्षिप्त होते हैं, वहीं जर्मन भाषी यूरोप के सर्वोच्च न्यायालयों में विधिक तर्कों पर आधारित विस्तृत निर्णय लिखने की प्रवृत्ति है। एक विशेष कानूनी सिद्धांत या नियम को लागू करने वाले पिछले निर्णयों(जो स्वयं में कोई नज़ीर नहीं हैं) की एक लंबी श्रृंखला से ज्यूरिस्प्रुडेन्स कॉन्स्टेंट (Jurisprudence constante) बन जाता है। ज्यूरिस्प्रुडेन्स कॉन्स्टेंट एक फ़्रेंच शब्द है जो “स्थिर न्यायशास्त्र" या "निरंतर न्यायशास्त्र" के विधिक सिद्धान्त के लिए प्रयुक्त होता है। इसके अनुसार एक विशेष कानूनी सिद्धांत या नियम को लागू करने वाले पिछले निर्णयों की एक लंबी श्रृंखला प्रेरणादायी तो हो सकती है किन्तु यह बाद में आने वाले इसी तरह के मामलों को नियंत्रित नहीं करती है। सिविल विधि प्रणाली वाले न्यायालय पिछले निर्णयों पर बहुत कम आश्रित रहते हैं परन्तु इस विधि प्रणाली वाले देशों में पिछले निर्णयों की रिपोर्टिंग करने की प्रवृत्ति बहुत अधिक है।
उपश्रेणियाँ
संपादित करेंसिविल विधि प्रणाली वाले क्षेत्रों को निम्नलिखित उपश्रेणियों में रखा जा सकता है:
- वे क्षेत्र, जहां रोमन विधि किसी न किसी रूप में अभी भी जीवित है किन्तु वहाँ सिविल विधि संहिता बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। उदाहरणार्थ- अंडोरा और सैन मैरिनो।
- असंहिताबद्ध विधि की मिश्रित प्रणाली वाले क्षेत्र, जहाँ सिविल विधि एक अकादमिक स्रोत के रूप में तो कार्य करती है किन्तु वहाँ लोक विधि भी प्रभावशाली है। उदाहरणार्थ: स्कॉटलैंड और रोमन-डच विधि वाले देश (दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, श्रीलंका और गुयाना)।
- संहिताबद्ध विधि की मिश्रित प्रणाली वाले क्षेत्र, जहाँ सिविल विधि की पृष्ठभूमि तो है किन्तु सार्वजनिक विधि पर लोक विधि का बहुत प्रभाव है। उदाहरणार्थ: प्युर्तो रिको, फिलीपींस, क्यूबेक और लुइसियाना।
- स्कैंडिनेवियन कानूनी प्रणाली, जो सिविल विधि और स्कैंडिनेवियन प्रथागत विधि का मिश्रण है और आंशिक रूप से संहिताबद्ध है। इसी तरह, चैनल आइलैंड्स (जर्सी, ग्वेर्नसे, एल्डर्नी, सर्क) की विधि नॉर्मन प्रथागत विधि और फ्रांसीसी सिविल विधि का मिश्रण है।
- वे क्षेत्र, जहाँ अनेक व्यापक विधि संहिताएँ हैं। उदाहरणार्थ: फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस और स्पेन।
प्रमुख सिविल विधि संहिताएँ
संपादित करेंसिविल विधि संहिता का एक प्रमुख उदाहरण नेपोलियन कोड(1804) है, जिसका नाम फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन के नाम पर रखा गया है। नेपोलियन कोड के तीन घटक है:
- व्यक्तियों की विधि,
- संपत्ति विधि और
- वाणिज्यिक विधि।
एक अन्य प्रमुख सिविल विधि संहिता जर्मन सिविल विधि संहिता (Bürgerliches Gesetzbuch या BGB) है, जो 1900 में जर्मन साम्राज्य में लागू हुई थी। इस संहिता का जापान, दक्षिण कोरिया और स्विटजरलैंड (1907) जैसे देशों की सिविल विधि संहिताओं पर अत्यधिक प्रभाव है।
इतिहास
संपादित करेंसिविल विधि प्रणाली के प्रमुख प्रेरणा स्रोत शास्त्रीय रोमन कानून(लगभग 1-250 ईस्वी) और विशेष रूप से जस्टिनियन कानून (छठी शताब्दी ईस्वी) हैं। तत्पश्चात् मध्य युग के उत्तरार्द्ध में चर्च विधि की छाया में इसका विस्तार और विकास हुआ। जस्टिनियन कोड के सिद्धांतों ने संविदाओं, प्रक्रिया के नियमों, पारिवारिक विधि, वसीयत और एक दृढ़ राजतंत्रात्मक संवैधानिक व्यवस्था के लिए एक परिष्कृत मॉडल प्रस्तुत किया। रोमन विधि को अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके से अपनाया गया। कुछ देशों में विधायिकाओं द्वारा इसे पूरी तरह लागू कर दिया गया अर्थात् वहाँ यह यथार्थमूलक विधि (Positive law) बन गया। अन्य देशों में इसका विस्तार प्रभावशाली विधि विशेषज्ञों और विद्वानों के माध्यम से हुआ।
15वीं शताब्दी में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य में अपने अन्त तक वहाँ रोमन विधि अबाध रूप से प्रवृत्त रही। मध्य-युग के अंत में पश्चिमी यूरोपीय शक्तियों के आक्रमणों तथा आधिपत्य के कारण पश्चिम में रोमन विधि का व्यापक रूप से विस्तार हुआ।
पहली बार पवित्र रोम साम्राज्य में आंशिक रूप से इस विधि का विस्तार हुआ क्योंकि इसे शाही कानून माना जाता था। यह विधि यूरोप में फैल गई क्योंकि वहाँ प्रशिक्षित वकील थे। इस विधि ने स्कॉट्स कानून को आधार प्रदान किया। इंग्लैंड में यह विधि ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में अकादमिक रूप से पढ़ाई जाती थी।
यूरोप में रोमन विधि की दो धाराओं में से कोई भी धारा स्थानीय विधि पर पूर्णतया हावी नहीं हो पाई। विधि का द्वितीयक स्रोत होने के कारण इसका आश्रय केवल तभी लिया जाता था जब स्थानीय विधि और रीति-रिवाजों में कोई प्रावधान नहीं मिलता था। कालान्तर में, स्थानीय कानून की व्याख्या और मूल्यांकन मुख्य रूप से रोमन कानून के आधार पर किए जाने लगे।
अन्ततोगत्वा सिविल विधि से सम्बन्धित ग्लॉसटरों (11वीं और 12वीं शताब्दी में इटली, फ्रांस और जर्मनी के विधि विद्यालयों के विद्वान) और टीकाकारों के प्रयास से विधि के एक आम संकलन व लेखन, एक आम विधिक भाषा और विधि शिक्षण की एक सामान्य पद्धति का विकास हुआ, जिन्हें संयुक्त रूप से जस कम्यून या यूरोप की आम विधि कहा जाता है। इसने चर्च विधि, रोमन विधि और कुछ हद तक सामंती कानून को समेकित कर दिया ।
संहिताकरण
संपादित करेंरोमन विधि से उद्भूत सिविल विधि की एक महत्वपूर्ण विशेषता रोमन विधि को समावेशित करते हुए विधि का संहिताकरण करना है। पहली ज्ञात विधि संहिता 18वीं शताब्दी ईसा पूर्व की हम्मुराबी विधि संहिता है। इसमें और बाद की विधि संहिताओं में मुख्यतः दीवानी और आपराधिक अपकृत्यों और उनके दण्ड की सूची होती थी। आधुनिक अर्थ में सिविल विधि का संहिताकरण पहली बार जस्टिनियन कोड में हुआ है।
छठी और सातवीं शताब्दी में जर्मनी के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों और उनके अधीन रोमन प्रजा से संबन्धित विधि को सुस्पष्ट करने और लोक-अधिकार के अनुसार उन कानूनों को विनियमित करने हेतु जर्मनिक कोड(Germanic Codes) बनाए गए। सामंती विधि व्यवस्था के अन्तर्गत नॉर्मन साम्राज्य(Très ancien coutumier, 1200-1245) में और अन्य स्थानों पर भी मैनरियल(manorial) और क्षेत्रीय प्रथाओं, अदालती फ़ैसलों और विधिक सिद्धांतों को लिपिबद्ध करने हेतु अनेक निजी कस्ट्यूमलों(custumals; कस्ट्यूमल किसी जागीर या शहर के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रीति-रिवाजों से सम्बन्धित एक मध्ययुगीन अंग्रेज़ी दस्तावेज होता है) को संकलित किया गया। मैनरियल न्यायालयों में पीठासीन अविशेषज्ञ न्यायाधीशों के रूप में कार्यरत लॉर्ड्स द्वारा अदालती प्रक्रिया का ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से कस्ट्यूमलों के लिए आयोग बैठाए गए। कस्ट्यूमलों का प्रयोग शीघ्र ही आम हो गया। इस रास्ते पर चलते हुए कुछ शासकों ने अपने देशों के लिए विधि का निर्माण करने के उद्देश्य से कस्ट्यूमलों का संकलन करने का प्रयास किया और अपने राज्यों का एकीकरण किया जैसे 1454 में फ्रांस के चार्ल्स VII ने क्राउन कानून के आधिकारिक कस्ट्यूमल का निर्माण किया था।
17वीं और 18वीं शताब्दी में प्राकृतिक कानून और शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ संहिताकरण की अवधारणा का विकास हुआ। उस युग के राजनीतिक आदर्श थे- लोकतंत्र, संपत्ति की सुरक्षा और कानून का शासन । इन आदर्शों की प्राप्ति के लिए विधि की निश्चितता और एक समान विधि की आवश्यकता थी। इसलिए, रोमन विधि और प्रथागत व स्थानीय विधि के मिश्रण से विधि के संहिताकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ । इसके अलावा, किसी राज्य में प्रवर्तनीय लिखित विधि राष्ट्र-राज्य की धारणा का आवश्यक अंग है। विधि के संहिताकरण के पक्ष-विपक्ष में प्रतिक्रियाएँ भी व्यक्त की गईं। संहिताकरण के समर्थक इसे कानून की निश्चितता, एकता और व्यवस्थित अभिलेखन में सहायक मानते थे जबकि इसके विरोधियों का दावा था कि संहिताकरण से विधि का विकास अवरुद्ध हो जाएगा।
तमाम प्रतिरोधों के बावजूद, महाद्वीपीय यूरोपीय निजी विधि के संहिताकरण का कार्य आगे बढ़ता रहा। डेनमार्क (1687), स्वीडन (1734), प्रशिया (1794), फ्रांस (1804), और ऑस्ट्रिया (1811) में विधि का संहिताकरण पूर्ण कर लिया गया । नेपोलियन द्वारा विजित क्षेत्रों में फ्रांसीसी कोड अपना लिए गए, जिन्हें बाद में संशोधनों के साथ पोलैंड(डची ऑफ वारसॉ/कांग्रेस पोलैंड; कोडेक्स सिविलनी 1806/1825), लुइसियाना(1807), वॉड के कैंटन(स्विट्जरलैंड; 1819), नीदरलैंड्स (1838), सर्बिया(1844), इटली व रोमानिया(1865), पुर्तगाल(1867) और स्पेन(1888) ने भी अपना लिया। जर्मनी(1900) और स्विटज़रलैंड(1912) द्वारा अपनी विधि का संहिताकरण स्वयं किया गया। इन देशों की संहिताओं को इनके उपनिवेशों में भी अपना लिया गया। स्विस संस्करण ब्राजील(1916) और तुर्की (1926) में अपनाया लिया गया ।
सिद्धांततः, सिविल विधि प्रणाली में विभिन्न विधियों को संहिताबद्ध करने के बजाय बड़े सुधारों के साथ या नए सिरे से सुसंगत और व्यापक विधि का निर्माण करना चाहिए। इस संबंध में, सिविल विधि संहिताओं और रिस्टेटमेन्ट ऑफ़ लॉ(Restatements of the Law; अमेरिकी न्यायशास्त्र से संबन्धित न्यायाधीशों और वकीलों को लोक विधि के सामान्य सिद्धांतों से परिचित कराने हेतु विधिक विषयों पर ग्रंथों का एक संग्रह), समान वाणिज्यिक संहिता (जो यूरोप से प्रेरित है), और संयुक्त राज्य अमेरिका की आदर्श दण्ड संहिता में काफ़ी समानता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, राज्यों ने न्यूयॉर्क के 1850 के फील्ड कोड(यूरोपीय और लुइसियाना कोड से प्रेरित) के साथ संहिताकरण का कार्य शुरू किया। इसके अन्य उदाहरण कैलिफोर्निया के कोड(1872), संघीय संशोधित क़ानून(1874) और वर्तमान संयुक्त राज्य कोड(1926) हैं, जिनमें सिविल विधि संहिता के समान विधि का व्यवस्थित प्रतिपादन न करके विधि का संकलन किया गया है।