डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं निदान केन्द्र
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (नवम्बर 2011) स्रोत खोजें: "डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं निदान केन्द्र" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
दिओक्षित राइबो नैयुक्लिक अम्ल ने सामान्य परम्परा को जो कि डीएनए है के आकार में जीवन की एक जैसी शैली को स्पष्टतया रेखांकित किया है जिसके आधार पर एक व्यक्ति दूसरे की तुलना में 99.9 एक जैसा है। उत्तर जीनोमिक परिदृश्य में प्राप्त हुई सूचना से ज्ञात होता है कि सामाजिक हेरफेर के अलावा स्वस्थ्य रखरखाव में भी अत्यधिक अनुप्रयोग किए गए हैं। तुलनात्मक जीनोमिक्स तकनीकों का प्रयोग विभिन्न जीवों के बीच संबधता के मुद्दों को हल करने के लिए ही नही बल्कि और उलझे हुए मुद्दे जैसे कि मानव जाति स्तर को अन्य जीवों से ऊपर रखने के विषय पर भी प्रयोग किया जा रहा है। ह्यूमन जीनोम श्रृंखला सूचना उपचार के तरीकों को भी बदल सकती है। हम दूरदर्शिता औषध क्षेत्र को उभरते हुए देख रहे हैं जिसमें कि बीमारी जाने से पहले ही उसके उपचार की योजना बनाई जा सकती है। किसी बीमारी के प्रति झुकाव, जो कि हमारे शरीर में मौजूद जीन के कारण होता है, एक केन्द्र बिंदु हासिल कर लेती है और उपयुक्त प्रोफाइलेक्टिक तरीकों के विकास में प्रमुख भूमिका निभा सकती है। परम्परागत जीनोमिक औषधियों के मुकाबले, जहाँ पूरी जनसंख्या के लिए एक ही औषध को बाजार में उतारा जाता है, एक व्यक्ति के जेनेटिक चित्रण या जीन के आधार पर एक विशिष्ट जनसंख्या के लिए टेलर मेड औषधियों के अवधारणा उभर कर सामने आएगी। इसके अलावा, औषध खोज एवं आण्विक औषधी के लिए जीनोम श्रृंखला प्रयोग से संबंधित अनेक अन्य अनुप्रयोग भी मौजूद हैं। सूक्ष्म जीनोम कार्यक्रमों ने आण्विक नैदानिक, इपीडेमियोलॉजी एवं टीका विकास के माध्यम से सुरक्षित औषध एवं संक्रामक बीमारी प्रबंधन पर हमारी सोच को विस्तृत किया है।
हैदराबाद आधारित डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं नैदानिक केन्द्र के पास अधिदेश है जो कि आधुनिक जीवविज्ञान के लाभों को समाज की सहायता के लिए प्रयोग करता है, वह स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है। यह संस्थान जैवप्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का एक स्वायतत केन्द्र है और आधुनिक जीवविज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में अनुसंधान करने एवं सेवाएं प्रदान करने में लगा हुआ है। सीडीएफडी की मुख्य सेवाओं में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, नैदानिकी, जीनोम विश्लेषण एवं जैवसूचनाप्रणाली शामिल हैं। आधुनिक जीवविज्ञान के आधारभूत अनुसंधान के अग्रणी क्षेत्रों में विशेषकर उत्तर जीनोम माहौल, इस संस्था का अभिन्न अंग है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि डीएनए फिंगरप्रिंटिंग सेवा से दोषसिध्द दर में भारी वृध्दि हुई है, इस सेवा के उपयोग की माँग बढती ही जाएगी। समाज में अपराध दर की बढाेत्तरी के साथ डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के लिए आग्रहों में स्वभावत: बढाेत्तरी की संभावनाएँ है। उदाहरण के तौर पर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के प्रतिमाह कुछ की मामलों से शुरू होकर, सीडीएफडी अब इस तरह के प्रतिमाह होने वाले मामलों की जाँच प्रतिदिन करता है। सीडीएफडी ने भारतीय जनसंख्या के लिए दी गई जाँच की उपयुक्तता को ध्यान में रखते हुए संपूर्ण डाटाबेस के विकास के लिए योजना सहित सभी कार्य मामलों को हाल ही में स्वायत चालु एवं कम्प्यूटरीकृत कर दिया है। समाज के लाभ के लिए सीडीएफडी ने इस प्रौद्योगिकी को बढावा देने के लिए राज्यकेन्द्र न्यायिकविज्ञान प्रयोगशालाओं के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं और इनके साथ घनिष्ठ संबंध बनाकर कार्य शुरू कर दिया है। सही गुणवत्ता नियंत्रण एवं गुणवत्ता आश्वासन को सुनिश्चित करने के लिए सीडीएफडी ने कारगर कदम उठाए हैं जिनमें राष्ट्रीय स्तर की संवैधानिक निकाय की स्थापना करना शामिल है। यह बीज प्रमाणन, जेनेटिक रूपांतरित खाद्यों (जी एम नड़्स) एवं जंगली जीवन और पशु पहचानिता क्षेत्रों में विभिन्न नई डीएनए आधारित सेवाओं के विकास ओर आपदा प्रबंधन ईकाई की स्थापना करने में भी प्रतिबध्द है।
नैदानिकी क्षेत्र में सीडीएफडी ने अपनी सेवाओं की सीमा को बढा दिया हे जिसमें साइटोजेनेटिक, जैव रसायन एवं आण्विक नैदानिकी शामिल है। शीघ्र हस्तक्षेप एवं उपचार के माध्यम से जेनेटिक बीमारियों के विकास को रोकने के उद्देश्य से सीडीएफडी की नैदानिक प्रयोगशाला एक नवजात स्क्रीनिंग कार्यक्रम चलाती है। इस स्क्रीनिंग कार्यक्रम की शुरूआत अक्तूबर, 1999 में प्रसव पूर्व जाँच और मेटाबोलिक विकारों की लक्षण पूर्व जाँच के लिए उच्च गुणवता चिकित्सा जाँच प्रदान करने के लिए हुई थी। इस कार्यक्रम के तहत जिसे कि डॉ॰ रेड्डी फांउडेशन मानव एवं सामाजिक विकास फाउंडेशन द्वारा आंशिक निधि प्राप्त है। हैदराबाद शहर में हर नवजात की जाँच करने के लिए हमने चार प्रमुख अस्पतालों को चुना है। 5000 से अधिक नवजातों की जाँच की स्क्रीनिंग से यह पता चला है कि लैंगिक हाइपोथाइरोडिज्म आम बात है (650 में से एक) और जिसका यदि उपचार नहीं किया गया तो यह गंभीर मानसिक गिरावट का रूप धारण कर सकता है। हमारे देश में संक्रामक बीमारियों के बोझ को देखते हुए सीडीएफडी अब सूक्ष्म कीटाणुओं, विशेषकर टी.बी, की पहचान एवं नैदानिकी की तरफ ध्यान केंद्रित कर रहा है।
ह्यूमन जीनोम की पूर्ण श्रृंखला एवं अन्य स्रोतों से सूचना लेने जैसे माइक्रोऐरे से अभिव्यव त आंकड़ों ने अनुसंधकों के लिए अत्यधिक सूचना प्रदान की है। जीवविज्ञान एवं कम्प्यूटर विज्ञान का मिश्रण जिसे जैवसूचनाप्रणाली के नाम से जाना जाता है, को उपयोगी सूचना उपलब्ध कराने एवं बड़ी संख्या में आंकड़ों को उपलब्ध कराने की दिशा में एक नया प्रयास है। इस केन्द्र की जैवसूचनाप्रणाली सुविधा को भारत के शीर्षस्थ केन्द्रों में से एक माना जाता है जो कि यूरोपीयन मॉलिम्यूलर बायोलॉजी नेटवर्क (ईएमबी नेट) द्वारा दी गई मान्यता से स्पष्ट है। सी डी एफ डी को यूरोपियन मॉलिक्यूलर बायोलोजी नेटवर्क के लिए भारतीय नोड मनोनीत किया गया है और यूरोप से बाहर चीन के अलावा केवल यही एक नोड है। इस केन्द्र के पास जीनोम विश्लेषण के लिए बड़ी संख्या में सापऊटवेयर तथा डाटाबेस है जो केन्द्र की वेबसाइट पर ब्राऊसेबल डाटाबेसों के साथ भी उपलब्ध है। इसमें डाटाबेस ऑफ स्ट्रक्चरल मॉटिपऊस इन प्रोटींस (डी एस एम पी) के नाम से पहचाने जाने वाले देशी रूप से विकसित डाटाबेस शामिल है। परीक्षक को डी एस एम पी में समाहित ऑंकड़ों के विश्लेषण से परीक्षणाधीन प्रोटीन की संभावित संरचना और क्रिया के बारे में ठोस अनुमान लगाने में सहायता मिलेगी। अत: यह कोई आश्चय्र नहीं है कि सीडीएफडी वेबसाइट को करीबन हरेक मिनट में देखा जाता है।
भारत ने मजूबती दर्शाई है और सूचना प्रौद्योगिकी में विश्व स्तर पर अगुवाई की है। जैवसूचनाप्रणाली में नए कार्यक्रमों की शुरूआत करते हुए सीडीएफडी सूचना प्रौद्योगिकी को जैवप्रौद्योगिकी के साथ मिश्रित करने का प्रयास कर रहा है। इसमें निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों एवं सूचना प्रौद्योगिकी के बीच सहयोग स्थापित करना शामिल है। मलेरिया, टीबी एवं गैर संक्रामक एजेंट्स द्वारा फैलने वाली बीमारियों से सन्दर्भित एसएनपी (सिंगल न्यूकिलोटाइड पोलीमोरफिज्म) की उत्पत्ति करने के लिए सीडीएफडी एक राष्ट्रीय प्रयास शुरू करने की योजना बना रहा।
आगे रहने के लिए जीवविज्ञान के आधुनिक क्षेत्रों में नए अनुसंधान समूहों को जोड़ते हुए सीडीएफडी आधारभूत अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। (विस्तृत जानकारी के लिए कृपया हमारे वेबसाइट को देखें) आधुनिक जीवविज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों जैसे कि बैक्टेरियल जेनेटिक्स, आण्विक रोग उत्पत्ति, कैंसर जीवविज्ञान एवं मेटास्टेसिस, कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक जीनोमिक्स, प्रतिरक्षा विज्ञान, जीन चित्रण एवं कोशिका अंत आगंतुक पैरासाइट संबंध, कोशिका संकेत इत्यादि विभिनन नई गतिविधियों को शुरू किया गया है।
कैंडिडेट मलेरिया टीका एंटीजन सीडीएफडीएनआईआई स्थित डॉ॰ हसनैन प्रयोगशाला एवं सीडीसी, अटलांटा, यूएसए स्थित डॉ॰ अल्ताफ ए लाल प्रयोगशाला पर संयुक्त रूप से विकसित किया गया है और अब यह उत्पादर स्तर पर है। चिकित्सीय परीक्षणों में इस कैंडीडेट टीकें की जाँच करने के लिए बड़ी मात्रा में चिकित्सीय स्तर के सामान की आवश्यकता पड़ेगी। चिकित्सीय परीक्षण, जो कि अभी शुरू किए जाने हैं को बड़ी मात्रा में सामान उपलब्ध कराने के लिए प्रयासों को बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा निधि प्रदान की जा रही है। चिकित्सीय स्तर सामान का उत्पादन करने के लिए हैदराबाद स्थित एक कंपनी भी सहमत हो गई है।
टीबी के चिकित्सीय आइसोलेट्स जिनको की सीडीएफडी पर सही कर लिया गया है के संपूर्ण जीनोम फिंगरप्रिंटिंग पर आधारित माइकोबैक्टीरियम टीबी जीनोटाइप्स का एक राष्ट्रीय महामारी विज्ञान डाटाबेस की स्थापना करने के लिए सीडीएफडी अस्पतालों, टीबी केन्द्रों एवं देश में और देश के बाहर स्थित टीबी अनुसंधान संस्थानों के साथ नेटवकिर्गं कर रहा है। फिलहाल इस समय हमारे पास करीब 1000 आइसोलेट्स टाइप्ड है और यूरोप, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैंड्स इत्यादि देशों सहित विश्व भर के मानक आइसोलेट्स के साथ तुलनात्मकता है। इस प्रयास के तहत दूसरा रोगाणु मानव जेनेटिक रोगाणु हेलिकोबैक्टर पायलोरी है। आण्विक रोगाणु (अल्सर) औषध अवरोधकता एवं उप चिकित्सीय क्षेत्रों से सन्दर्भित एच.पायलोरी के भारतीय प्रभेदों की टाइपिंग नैपिंग एवं श्रृंखला बनाने में अत्यधिक प्रगति हासिल कर ली गई है।
मानव रोगाणु के रूप में उनका महत्व होने की वजह से उनके जीवविज्ञान एवं उत्पत्ति और भारतीय परिपेक्ष में औषध खोज और टीका विकास के लिए जीनोम श्रृंखला सूचना के महत्व के कारण सीडीएफडी ने विस्तृत आधार पर श्रृंखला आंकड़े और समकालिक महत्व के इन दो रोगाणु के बारे में जीनोटाइप सूचना तैयार करने के लिए अपनी अनुसंधान गतिविधियों को बढावा दिया है। सिलिको मॉडलिंग अध्ययनों में स्वचालित डीएनए श्रृंखला और 2 जीवों के लिए माइक्रोऐरे आधारित तकनीकों की पहले से ही योजना बना ली गई है।
मानव एवं सूक्ष्म श्रृंखला परियोजनाओं से उत्पादित आंकड़े के प्रभावी प्रयोग की दिशा में कम्प्यूटेशन जीनोमिक्स के क्षेत्र में सीडीएफडी पर ज्ञान आधारित टूल्स को विकसित किया जा रहा है। हमें विश्वास है कि यह औषध लक्ष्यों और औषध खोज से संबंधित सभी आम समयवर्धक एवं अन्य तरीकों में क्रांति लाएगा और एक नई दिशा प्रदान करेगा।
एल वी प्रसाद नेत्र संस्थान एवं हैदराबाद नेत्र अनुसंधान फाउंडेशन के साथ मिलकर कार्य करते हुए सीडीएफडी प्राथमिक लैंगिक ग्लाउकोमा के आण्विक आधार का अध्ययन कर रहा है जिसका यदि उपचार नहीं किया गया तो किशोरों में अंधापन पैदा कर सकता है। इस प्रक्रिया में आण्विक स्तर पर जाँच करने के लिए हम सस्ती नैदानिक पध्दति तैयार कर रहे हैं जिसका शीघ्र नैदानिकी और उपचार में फैलने की जाँच और जेनेटिक सलाह और इस भयंकर नेत्र रोग की जनसंख्या स्क्रीनिंग में प्रभाव दिखाई पड़ेगा।
रेशम कीट जीनोम को मैप करने एवं इसकी श्रृंखला बनाने में विश्वस्तरीय प्रयास में सीडीएफडी एक बौध्दिक भागीदार है और भौतिक मैप जो कि इस दिशा में जीनोम श्रृंखला तैयार करने में पहला कदम है, की उत्पत्ति के लिए आण्विक मार्कर्स (माइक्रोसेटेलाइट मार्कर्स) प्रदार कर रहा है। मानव संसाधन विकास एवं प्रशिक्षण एक अन्य क्षेत्र है जिसमें सीडीएफडी पुरी तरह कार्यरत है। इसकी यह कोशिश है कि शुरूआती वर्षों में ही किशोरों को जीवविज्ञान के क्षेत्र में आगे बढने के लिए आकर्षित करे और न्न डीएनए प्ले सेंटर न्न के रूप में इसे आकार दिया जा रहा है जहाँ वी या वी1 कक्षा के विद्यार्थी सीडीएफडी के वैज्ञानिक समुदाय के समय समय बिता सकते हैं ताकि उन्हें प्रथम दृष्टिया अनुभव हासिल हो सके जो कि विज्ञान एक खोजी मस्तिष्क के सामने चुनौती के रूप में प्रस्तुत करता है। औषधइंजीनियरिंग विद्यार्थियों एवं अन्य जो स्नातकोत्तर और बी एस सी डिग्री पाठयक्रमों में पढ रहे हैं से इन्हें आकर्षित करने वाले युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम में इनकी अत्यधिक दिलचस्पी देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर इस वर्ष सीडीएफडी को भारत भर से ग्रीष्म स्कॉलर कार्यक्रम के लिए 800 आवेदन प्राप्त हुए थे जिसमें से संस्था केवल कुछ ही दर्जनों को प्रशिक्षण दे सका। सूचना प्रौद्योगिकी आधारित मानवशक्ति का विकास करने के लिए सीडीएफडी ने स्नातकों के लिए आधुनिक जीवविज्ञान में बायो-कम्प्यूटिंग सीखने एवं सॉपऊटवेयर टूल्स आधारित ज्ञान प्रदान करने के लिए सीडीएफडी ने एक जैवसूचनाप्रणाली इंटर्नशीप कार्यक्रम भी शुरू किया है।
नई शहस्त्राब्दि के शुरूआत में सीडीएफडी एक जटिल स्थिति पर खड़ा है। गुणवत्ता सेवाओं की धुन और प्रतियोगी अनुसंधान विश्वस्तरीय के साथ संस्थान आधारभूत अनुसंधान के क्षेत्र में जहाँ आधुनिक जीवविज्ञान का प्रयोग स्वास्थ्य की गुणवत्ता को सुधारने के लिए और मानव सेवा के लिए होगा, एक विश्वस्तरीय उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आएगा।