सीढ़ी या सोपान एक यांत्रिक औजार है जो धरातल से उपर चढ़ने या नीचे उतरने के काम आती है। इसमें उर्ध्वाधर या झुके हुए बहुत से 'चरण' (rungs or steps) होते हैं। सीढ़ी मुख्यत: दो प्रकार की होती है -

  • लकड़ी, लोहा, एलुमिनियम आदि की अचर (रिजिड) सीढ़ी, तथा
  • रस्सी की सीढ़ी जो किसी आश्रय से लटकाई जाती है।
एक सामान्य सीढ़ी
सीढ़ी

सीढ़ी या सोपान किसी भवन के भिन्न-भिन्न ऊपरी तलों पर पहुँचने के लिए श्रेणीबद्ध पैड़ियाँ होती हैं। लकड़ी, बाँस आदि की सुवाह्य सीढ़ियाँ आवश्यकतानुसार कहीं भी लगाई जा सकती हैं। इनमें प्राय: ढाल में रखी हुई दो बल्लियाँ या बाँस होते हैं, जो सुविधाजनक अंतर पर डंडों द्वारा जुड़े रहते हैं। डंडों पर ही पैर रखकर ऊपर चढ़ते हैं। सहारे के लिए हाथ से भी डंडा ही पकड़ा जाता है किंतु यदि ये स्थायी होती है तो कभी-कभी इनमें एक ओर या दोनों ओर हाथ पट्टी भी लगा दी जाती है।

आवास गृह में यदि ऊपरी तल में कुछ कमरे नितांत एकांतिक हों तो सोपान कक्ष प्रवेश के निकट, किंतु गोपनीयता के लिए कुछ आड़ में, होना चाहिए। सार्वजनिक भवन में इनकी स्थिति प्रवेश द्वार से दिखाई देना चाहिए। सोपान कक्ष यथासंभव भवन के बीच में रखने से प्रत्येक तल पर मुख्य कक्षों के द्वार इसके समीप रहते हैं। स्थान की बचत के लिए, संवातन और निर्माण की सरलता के लिए सोपान प्राय: किसी दीवार के साथ लगा दिए जाते हैं। सोपान कक्ष भली भाँति प्रकाशित और सुसंवातित होना चाहिए।

सोपानों के प्रकार

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सोपान लकड़ी, पत्थर, कंकरीट (सादी अथवा प्रबलित), सामान्य इस्पात, अथवा ढले लोहे के घुमावदार या सीधे बने होते हैं। स्थानीय आवश्यकता, निर्माण सामग्री तथा कारीगरी की कुशलता के अनुसार ये भिन्न होते हैं। सबसे सरस सीधी सीढ़ी में सभी पैड़ियाँ एक ही दिशा में जाती हैं। इसमें केवल एक ही पंक्ति या विशेष स्थितियों में दो पंक्तियाँ होती हैं। यह लंबे सँकरे सोपान कक्ष के लिए उपयुक्त होती है। यदि अगली पंक्ति पिछली पंक्ति की उलटी दिशा में उठती हो और ऊपरी पंक्ति की पैड़ियों के बाहरी सिरे निचली पंक्ति की पैड़ियों के बाहरी सिलों के ठीक ऊपर हों तो वह लहरिया सोपान होगा। कूपक सीढ़ी वह है जिसमें पीछे वाली तथा आगे वाली सोपान पंक्तियों के बीच एक चौकोर कूप या खुला स्थान होता है। इस सोपान कक्ष की चौड़ाई सोपान की चौड़ाई के दूने तथा कूप की चौड़ाई के योग के बराबर होगी। यह सोपान का अत्यंत सुविधाजनक रूप है। निरंतर सोपान वह है जिसमें पिछली और अगली पंक्तियों के बीच कूप में मोड़ दे दिया जाता है और मोड़ में घुमावदार पैड़ियाँ होती हैं जो वक्रता के केंद्र से अपसृत होती हैं। गोल सोपान प्राय: पत्थर, प्रबलित सीमेंट कंक्रीट, अथवा लोहे के होते हैं और वृत्ताकार सोपानकक्ष में बनाए जाते हैं। सभी पैड़ियाँ घुमावदार होती हैं, जो केंद्र में स्थित किसी खंभे पर आलंबित हो सकती हैं, या बीच में एक गोल कूप हो सकता है। यदि सभी पैड़ियाँ केंद्रीय खंभे से अपसृत होती हैं तो वह कुंडल सोपान या सर्किल सोपान कहलाता है। लोहे के और कभी-कभी प्र. सी. कं. के भी कुंडल सोपान आवश्यकतानुसार कक्ष के भीतर नहीं भी घिरे हो सकते। ये बहुत कम स्थान घेरते हैं, अत: पिछले प्रवेश द्वार के लिए बहुत उपयुक्त होते हैं।

सोपानों की आयोजना एवं अभिकल्पन

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उपलब्ध स्थान और तलों के बीच की ऊँचाई मालूम करने के बाद यह निश्चित करना चाहिए कि सोपान का प्रकार क्या होगा और द्वारों, मोखों, गलियारों तथा खिड़कियों की स्थिति का ध्यान रखते हुए प्रथम तथा अंतिम अड्डे किन स्थानों के आस पास रखे जा सकते हैं। अड्डे की सुविधाजनक ऊँचाई 5 इंच से 8 इंच तक समझी जाती है। तलों के बीच की ऊँचाई में अड्डे की ऊँचाई का भाग देने से अड्डों की संख्या निकलेगी। पदतल गिनती में अड्डों से एक कम होंगे। ये चौड़ाई में 9 इंच से 13 इंच तक होने चाहिए।

सोपान की चौड़ाई 2 फुट 9 इंच से कम न होनी चाहिए और ऊपर कम-से-कम 7 फुट का सिर बचाव देना चाहिए। एक पंक्ति में 12 पैड़ियों से अधिक न होनी चाहिए। 15 से अधिक होने पर चढ़ने में थकान आती है और उतरने में कुछ कठिनाई होती है। किसी पंक्ति में तीन से कम पैड़ियाँ भी नहीं होना चाहिए। घुमावदार पैड़ियाँ न हों तो अच्छा किंतु यदि अनिवार्य ही हो तो पंक्ति में नीचे की ओर रखनी चाहिए। चौकियों की चौड़ाई सोनान की चौड़ाई से कम नहीं होना चाहिए।

तकनीकी पद

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"पदतल" पैड़ी का क्षैतिज भाग है और "अड्डा" उसका उदग्र भाग। "उठान" दो क्रमिक पैड़ियों के ऊपरी पृष्ठों के बीच का उदग्र अंतर है और चाल दो क्रमिक अड्डों के मुखों के बीच का क्षैतिज अंतर। "सादा पैड़ी" तैलचित्र में आयताकार होती है और "घुमावदार पैड़ी" सोपान की दिशा बदलने के लिए बनाई जाती है, तथा तैलचित्र में प्राय: तिकोनी होती है। कई घुमावदार पैड़ियों के बीच वाली पैड़ी जिसकी आकृति पतंग जैसी होती है, "पतंगी पैड़ी" कहलाती है। किसी पंक्ति की निम्नतम पैड़ी कभी-कभी बाहरी सिरे पर कुंडल कर दी जाती है, यह "कुंडल पैड़ी" कहलाती है। "चौकी" पैड़ियों की किसी श्रेणी के ऊपर का चपटा मंच है। यदि यह सोपान कक्ष के आर-पार हो तो "पूरी चौकी" और यदि आधे में ही हो तो "आधी चौकी" कहलाती है। दो चौकियों के मध्य पैड़ियों की एक श्रेणी सोपान पंक्ति कही जाती है। पदतल की बाहर निकली हुई कोर, जो प्राय: गोल होती है, "नोक" कहलाती है और नोकों को मिलाने वाली सोपान की ढाल के समांतर कल्पित रेखा "ढाल रेखा" होती है। सोपान पंक्ति और चौकी के अथवा एक सोपान पंक्ति और दूसरी के संगम पर बना हुआ खंभा "थंबा" कहलाता है। पैड़ियों के बाहरी सिरे पर गिरने से बचने के लिए ढाई तीन फुट ऊँची ठोस या झिझरदार रोक "रेलिंग" कहलाती है और उसके ऊपर हाथ रखने के लिए लकड़ी, लोहे, पत्थर या रेलिंग के पदार्थ की ही बनी हुई चिकनी पट्टी "हाथपट्टी" कहलाती है। आज कल ऊँचे गगनचुंबी भवनों में सीढ़ी के स्थान पर लिफ्ट लगा रहता है।

बाहरी कड़ियाँ

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