भारत को अंग्रेजों से आज़ादी दिलाने में वीर सीताराम कँवर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सीताराम एक आदिवासी योद्धा थे. इन्होने समाज को नई दिशा प्रदान की थी. 1857 की क्रांति में शहीद वीर सीताराम कंवर ने निमाड़ क्षेत्र में विद्रोह कर अंग्रेज शासन के छक्के छुड़ा दिए थे .

वीर सीताराम कंवर
जन्म निमाड क्षेत्र मे खरगोन जिले के डांग गाँव, मध्यप्रदेश, भारत
मौत 9 अक्टूबर सन 1858
मध्यप्रदेश, भारत
प्रसिद्धि का कारण भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी

जीवन परिचय संपादित करें

सीताराम कंवर का जन्म भारत में मध्यप्रदेश के खारगोन जिले के डंग नामक गांव में बडवानी रीयासात परिवार में हुआ था [1][2][3] सीताराम कंवर गोंडवाना साम्राज्य जबलपूर मे शंकर शाह रघुनाथ शाह के गुप्तचर सेना के प्रमुख थे

1857 का विद्रोह संपादित करें

सन 1857 की क्रांति के समय बड़वानी रियासत के समय पहले दो स्वतंत्रता सेनानी श्री खाज्य नायक और श्री भीमा नायक सक्रीय रहे. इन दोनों ने अंगेजी शासन में दखलन्दाजी की. इन दोनों के दमन के बाद बड़वानी रियासत में सीताराम ने विद्रोह किया. इन्होने अपनी सक्रीयता दिखाई और होल्कल और अंग्रेजी प्रशासन को परेसान कर डाला. कंवर आदिवासी समुदाय के कई व्यक्तियों को होल्कर दरवार को मंडलोई नियुक्त कर दिया और उन्हें जमीदारी के अधिकार दिए. जिसमें राजस्व बसूल करने और सुरक्षा के लिए सैनिक नियुक्त करने का भी अधिकार था. इससे आदिवासी कँवर समुदाय की योग्यता और सक्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है. सितम्बर सन 1857 में नर्मदा नदी के दक्षिण में होल्कर रियासत और बरबानी रियासत में गंभीर विद्रोह शुरू हो गया. इस इलाके में सीताराम कंवर ने होल्कर के सिपाहियों को अपनी ओर शामिल करके विद्रोह कर दिया था. इसके साथ ही भील और भिलाला आदिवासी के लोगों को भी शामिल कर लिया था. इनके दल में एक मुख्य व्यक्ति रघुनाथ सिंह मंडलोई भी थे थे. सतपुड़ा के लोगों को विद्रोह करने के लिए इन्होने उन्हें प्रेरित किया. इस तरह से सीताराम जी अलग – अलग जगह पर विद्रोह कर रहे थे और अंग्रेजी शासन के लिए सिरदर्द बन गए थे.

       सितंबर 1858 में नर्मदा नदी के दक्षिण में होलकर रियासत के इलाके में और बढ़वानी रियासत में गंभीर विद्रोह शुरू हो गया। इस विद्रोह का नेतृत्व सीताराम कंवर ने किया। उसने होलकर सवारों. सिपाहियों को अपनी ओर मिला लिया और अंग्रेजो के विरुद्ध भीषण विद्रोह कर दिया। उसने घोषित कर दिया कि यह सब कुछ पेशवा के लिए कर रहा है। इनके नेतृत्व में विद्रोहियों ने बालसमंद चैकी को लूट लिया और जामुनी चैकी को लूटकर जला दिया। 1857 की लड़ाई देश का कोना-कोना लड़ रहा था। मध्यप्रदेश की निमाड़ क्षेत्र के जनजाति समुदाय के वीर सीताराम एक महान योद्धा थे, उनके संस्कार में अन्याय को सहना नहीं था। 


विद्रोह का परिणाम संपादित करें

27 सितम्बर सन 1858 में एक पत्र में गवर्नर जनरल के एजेंट ने मेजर कीटिंग को लिखा कि वैसे तो राजाओं और जागीरदारों से कहा जा सकता है कि विद्रोहियों का शक्ति से दमन करें लेकिन हमारी भारतीय सेना को उक्साया गया है. जिससे अब भारतीय जवानों पर विश्वास भी नहीं किया जा सकता. अब हमारे लिए आवश्यक हो गया है कि शक्ति से आगे बढे और भारतीय सिपाहियों की कमान खुद संभालें. इस कार्य के लिए गवर्नर जनरल के एजेंट ने मेजर कीटिंग के पास फरज अलि को इंदौर भेजा.

   इसके अलावा होल्कर राजा ने स्वतंत्रता सेनानियों का दमन करने के लिए दिलशेर खान को सिपाही, हाथी और तोपें भेजी. इस बीच गाँव वाले भयभीत हो गए थे और अपने – अपने घरों को खाली कर दिया था. वंड नामक स्थान पर अंगेजों का सामना विद्रोही सीताराम से हुआ. यहाँ पहले से ही बहुत बढ़ी अंग्रेजी सेना उपस्थित थी. इस मौके का फायदा उठाते हुए अंग्रेजो ने हमला बोल दिया. दोनों तरफ से अस्त्र – शस्त्र चलना शुरू हो गए. अंत में स्वतंत्रता संग्रामियों को हार का सामना करना पड़ा. विद्रोहियों को नुकसान उठाना पड़ा और उनमें से कई लोग जंगल को ओर भाग गए.
    अक्टूबर, 1858 को अंग्रेजो ने अत्याचार और नरसंहार किया अंग्रेजों के अत्याचारों का शिकार बना डंग ग्राम जहाँ क्रन्तिकारी सीताराम कंवर जन्मे। उनके नेतृत्व में ही वनवासियों की टुकड़ी ने अंग्रेज फ़ौज से मुकाबला किया वीर सीताराम ने टुकडी तैयार की तथा योजना बनाई, प्रशिक्षण दिया। अंग्रेज पूरी कपट नीति के साथ तैयार थे।सीताराम को पकड़ने के लिए सरकार ने 500 रुपए के इनाम की घोषणा की थी। अकबरपुर में भी सीताराम ने विद्रोह खड़ा कर दिया था जिसका दमन करने के लिए मेजर कीटिंग ने फरजंद अली को भेजा। अंततः विद्रोह का दमन करने के लिए कीटिंग स्वयं गया और अंग्रेजी सेना के साथ विद्रोहियों की बीजागढ़ किले के पास मुठभेड हुई। अपने अटूट आत्मविश्वास के साथ सीताराम कंवर वीरता से लड़ते रहे।अंग्रेजों द्वारा किये गए षड़यंत्र में वीर सीताराम कंवर फंस गए तथा उन्हें बंदी बना लिया गया उनका बलिदान होते ही वीर कंवर के साथियों को भी बंदी बना लिया, जिनकी संख्या 78 थी। उन सभी को तोप के मुंह पर बांध मृत्यु के घाट उतार दिया गया।
     इस संग्राम में लगभग 20 स्वतंत्रता संग्रामी शहीद हुए. इनमें वीर सीताराम और हवाला शामिल थे. वीर सीताराम का सर कैंप में लाया गया जिससे उनके शहादत की पहचान हुई. यह विद्रोह सिताराम जी ने कोई धन – दौलत या राज –पाट पाने के लिए नहीं किया था बल्कि अपने लोगों की स्वतंत्रता पाने के लिए किया था. उन्होंने अपने आप को अंग्रेजों के सामने झुकने नहीं दिया. ऐसे वीर क्रांतिकारी योद्धा सीताराम जी की शहादत को हम आज भी याद करते हैं.

सन्दर्भ संपादित करें

  1. : True Story of an Indian Revolutionary, 2005, Rupa & Co. Mumbai
  2. "Sitaram Kanwar | Biography & Facts". Encyclopedia Britannica (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-07-20.[मृत कड़ियाँ]
  3. https://amritmahotsav.nic.in/unsung-heroes-detail.htm?}}