सुंईया मेला, राजस्थान के बाड़मेर जिले के चौहटन कस्बे में पौष कृष्ण पक्ष अमावस्या की सोमवती अमावस्या को मुहूर्त पर लगता है। इसे "मारवाड़ का अर्द्धकुंभ" कहा जाता है। सुंईया महादेव एक "मरु कुंभ" भी है। इस दो दिवसीय मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु भारत के दूर-दूर प्रदेशों से यहां आते हैं।अनुमान के तौर पर करीब 10 लाख श्रद्धालु इस मेले में आते हैं और महास्नान का लाभ लेते हैं।

सुंईया मेले का धर्मशास्त्रों के अनुसार माहात्म्य है क्योंकि यह विशेष योग पर ही भरा जाता है। पौष माह, सोमवार, अमावस्या, मूल नक्षत्र व व्यातिपात योग इन पांचों योग का एक ही समय मिलने पर सुंईया मेले का आयोजन होता है।

ऐसे में इस तरह के योग सन् 1944, 1946, 1949, 1956, 1970, 1974, 1977, 1990, 1997, 2005, २०१७ को बना, और सुंईया मेला भरा गया। [1]

मान्यता है कि यह पांडवों की तपोभूमि है। इस तपोभूमि के दर्शन करने एवं पवित्र स्नान से लाखों पाप धुल जाते हैं, ऐसी मान्यता है।