सुखवाद (Hedonism) नीतिशास्त्र के अंतर्गत नैतिक अपेक्षाओं की अभिपुष्टि करने वाला सिद्धांत है। सुखवाद के अनुसार अच्छाई वह है जो आनन्द प्रदान करती है या दुःख-पीड़ा से छुटकारा दिलाती है तथा बुराई वह है जो दुःख-पीड़ा को जन्म देती है। सैद्धांतिक तौर पर सुखवाद नीतिशास्त्र में प्रकृतिवाद का एक रूपांतर है। उसका आधार इस विचार में निहित है कि आनन्द मनुष्य का मुख्य निर्णायक गुण है, जो उसके स्वभाव में निहित है और उसके समस्त कार्यकलाप को निर्धारित करता है। सिद्धांत के रूप में सुखवाद की उत्पत्ति प्राचीन काल में ही हो गयी थी। यूनान में सुखवादी अरिस्टिप्पस के नीतिशास्त्र के अनुयायी रहे। सुखवाद एपीक्यूरस की शिक्षा में अपने चरम शिखर पर पहुँचा। सुखवाद के विचारों को मिल तथा बेंथम के उपयोगितावाद में केंद्रीय स्थान प्राप्त है।[1]

‘हिडोनिज्म‘ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द हिडोन ;ीēकवदēद्ध से हुई है जिसका अर्थ है ‘प्रसन्नता, सुख या आनंद‘। हिडोनिज्म मानव जीवन से सम्बंधित विभिन्न सिद्धांतों को संदर्भित करता है जैसे-हमारे लिए क्या अच्छा है, हमें कैसे व्यवहार करना चाहिए और हमें जिस तरह से व्यवहार करना चाहिए, उसके लिए क्या प्रेरित करता है।

हिडोनिज्म व्यक्ति की जीवनशैली, कार्यों या विचारों में आनंद को प्राथमिकता देता है। इस शब्द में दर्शन, कला और मनोविज्ञान के कई सिद्धांत या प्रक्रियाएँ सम्मिलित हो सकती हैं, जिसमें संवेदी आनंद और अधिक बौद्धिक या व्यक्तिगत खोज दोनों शामिल हैं, लेकिन इसे दूसरों के प्रति अल्पकालिक संतुष्टि हेतु रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल किया जा सकता है।

  1. दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-७२५, ISBN: ५-0१000९0७-२