सुनीता नारायण

भारतीय पर्यावरणविद्

सुनीता नारायण (जन्म १९६१--) भारत की प्रसिद्ध पर्यावरणविद है। वे हरित राजनीति और अक्षय विकास की महान समर्थक हैं। कु॰ सुनीता नारायणन सन १९८२ से भारत स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र से जुडी रहीं हैं। इस समय वे इस केन्द्र की निदेशक हैं। वे पर्यावरण संचार समाज (Society for Environmental Communication) की निदेशक भी हैं। वे डाउन टू अर्थ नामक एक अंग्रेजी पाक्षिक पत्रिका भी प्रकाशित करती हैं जो पर्यावरण पर केन्द्रित पत्रिका है।

सुनीता नारायण

सुनीता नारायण
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा पर्यावरण प्रेमी
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

सन २००५ में भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से अलंकृत किया। प्रकृति से प्यार करने वाली सुनीता नारायण को इंग्लैण्ड की पत्रिका ने दुनिया भर में मौजूद सर्वश्रेष्ठ 100 बुद्धिजीवियों की श्रेणी में शामिल किया है। (अगस्त २०१०)

हरित विकास की समर्थक संपादित करें

पर्यावरणविद और राजनीतिक कार्यकर्ता सुनीता नारायण समाज की हरित विकास की समर्थक हैं। वे मानती हैं कि वातावरण में फैलती अशुद्धता प्रकृति और वातावरण की होती दुर्दशा से सब से ज्यादा नुक्सान महिलाओं, बच्चों और गरीबों को होता है। उन का यह भी मानना है कि वातावरण की सुरक्षा के लिये जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी महिलाएं ज्यादा सफलतापूर्वक उठा सकती हैं। उन की इस कथनी का उदहारण वे खुद हैं। दशकों से वे पर्यावरण और समाज की मूलभूत समस्याओं के लिये जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। वर्ष 2001 में उन्हें इसी संस्थान का निदेशन बना दिया गया था। उन्होंने समाज के उत्थान के लिये पानी से जुडी समस्याओं, प्रकृति और वातावरण से जुड़े मुद्दों आदि पर काम किया है।

1990 के शुरूआती दिनों में उन्होंने कई वैश्विक पर्यावरण मुद्दों पर गहन शोध और वकालत करना शुरू कर दिया। वर्ष 1985 से ही वे कई पत्रपत्रिकाओं में लिख कर जागरूकता फैलाने के काम में लगी रहीं।

उन के बेहतरीन कार्यों के प्रतिफल में वर्ष 2005 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पदमश्री से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उन्हें स्टाकहोम वाटर प्राइज और वर्ष 2004 में मीडिया फाउंडेशन चमेली देवी अवार्ड प्रदान किया गया। अपने कार्यों से मिले इन अवार्डों से संतुष्ट होकर उन्होंने इस ओर काम करना छोड़ा नहीं, न ही उन्होंने इस ओर कोई सुस्ती बरी। उन की जागरूकता अभियान का दायरा प्रतिवर्ष बढ़ता ही रहा है। वे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के अलावा नक्सलवाद, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बाघ व पेड़ संरक्षण और अन्य सामाजिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने लगी हैं। इस के लिये उन्होंने प्रिंट मीडिया का सहारा लिया है। देश के ज्यादातर पढ़े जाने वाले अखबारों में उन के कालम थोड़े-थोड़े अंतराल पर आते रहते हैं। उन का मानना है कि जागरूकता फैलाने के लिये किसी सशक्त माध्यम का इस्तेमाल होना चाहिए। जो आम लोगों तक आप की बात पहुंचा सके।

इतनी ख़ास होने पर भी जब आप सुनीता को सामने से देखेंगे तो उन्हें सादे विचार और व्यवहार के साथ शालीन कपड़ों और चेहरे पर तेज आभा के साथ पाएंगे। उन का व्यक्तित्व न केवन उन के लगभग 100 कर्मचारियों वाले संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट के लोगों के लिये प्रेरणास्त्रोत है बल्कि युवा पीढी और महिलाओं के लिए उन का सम्पूर्ण अस्तित्व प्रेरणादायक है।

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