सुन्दरलाल बहुगुणा

भारतीय कार्यकर्ता

सुन्दरलाल बहुगुणा (9 जनवरी सन 1927 - 21 मई 2021) भारत के एक महान पर्यावरण-चिन्तक एवं चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होने हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में वनों के संरक्षण के लिए संघर्ष किया। उनकी पत्नी भी उनके अन्दोलन से जुड़ी हुईं थीं। १९७० के दशक में पहले वे चिपको आन्दोलन से जुड़े रहे और १९८० के दशक से २००४ तक के दशक में टिहरी बाँध के निर्माण के विरुद्ध आन्दोलन से। वे भारत के आरम्भिक पर्यावरण प्रेमियों में से एक हैं।

सुन्दरलाल बहुगुणा
220
जन्म 09 जनवरी 1927
मरोडा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड[1]
मृत्यु 21 मई 2021(2021-05-21) (उम्र 94)[2]
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश, उत्तराखण्ड[2]
व्यवसाय
जीवनसाथी विमला बहुगुणा
बच्चे 3

जीवन परिचयसंपादित करें

 
सामर शिमोगा के एलब्बी एवं एसबीएस कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ सुन्दरलाल बहुगुणा और उनकी पत्नी

चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को उत्तराखंड के 'मरोडा' नामक स्थान पर हुआ। अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मन्दिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।[3]

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

बहुगुणा के 'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है-

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।

सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेण्ड ऑफ़ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाले ये महापुरुष पर्यावरण गाँधी कहलाते थे। 21 मई 2021 को ९४ वर्ष की आयु में ऋषिकेश मे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में उनका निधन हो गया।

पुरुस्कारसंपादित करें

1984 राष्ट्रीय एकता पुरुस्कार,

1985 वृक्ष मानव पुरुस्कार

1981 पद्मश्री पुरुस्कार

1983 जमुनालाल बजाज पुरूस्कार

2009 पद्म विभूषण

संदर्भसंपादित करें

  1. Bahuguna Archived 2012-02-14 at the Wayback Machine betterworldheroes.com.
  2. "Environmentalist Sundarlal Bahuguna dies of Covid at AIIMS-Rishikesh". The Times of India. 21 May 2021. अभिगमन तिथि 21 May 2021.
  3. "Sunderlal Bahuguna (सुन्दरलाल बहुगुणा) Died of Covid at AIIMS Rishikesh". S A NEWS (अंग्रेज़ी में). 2021-05-22. अभिगमन तिथि 2021-05-22.

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

बाहरी कड़ियाँसंपादित करें