सुंदर लाल (वकील)
राय बहादुर सर सुंदर लाल (21 मई 1857 - 13 फ़रवरी 1918) भारत के न्यायविद तथा शिक्षाशास्त्री थे। इनका जन्म नैनीताल के निकट जसपुर में हुआ था।
सुंदर लाल | |
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सर सुंदर लाल का चित्र | |
पद बहाल 1 अप्रैल 1916 – 1918 | |
पूर्वा धिकारी | पद सृजित |
उत्तरा धिकारी | सर पी॰एस॰ शिवस्वामी अय्यर |
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति
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पद बहाल 1912–1916 | |
इलाहाबाद उच्च-न्यायालय में अधिवक्ता
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जन्म | 21 मई 1857 जसपुर, उत्तर-पश्चिमी प्रांत, कंपनी राज (अब उत्तराखंड, भारत में) |
मृत्यु | 13 फ़रवरी 1918 इलाहाबाद, आगरा और अवध का संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब उत्तर-प्रदेश, भारत में) | (उम्र 60 वर्ष)
शैक्षिक सम्बद्धता | म्योर सेंट्रल कॉलेज |
व्यवसाय | न्यायविद अकादमिक प्रशासक |
1876 में, उन्होंने इलाहाबाद में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, जिसके तत्कालीन प्रधानाचार्य ऑगस्टस स्पिलर हैरिसन थे। स्नातक करने के दौरान ही पंडित सुंदर लाल ने 1880 में उच्च न्यायालय की वकील की परीक्षा उत्तीर्ण की और 21 दिसंबर 1880 को वकील के रूप में नामांकित हुए। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत की। 1896 में उच्च न्यायालय ने उन्हें अधिवक्ता के पद और हैसियत तक उठा दिया।
उन्हें राय बहादुर की उपाधि 1905 में प्रदान की गई। वे 1907 में सी॰आई॰ई॰ (भारतीय साम्राज्य की व्यवस्था के साथी) (CIE, Companions of the Order of the Indian Empire) नियुक्त किए गए।[1] 1909 में उन्होंने कुछ महीनों के लिए लखनऊ में न्यायिक आयुक्त के न्यायालय की बेंच पर एक सीट स्वीकार किया और 1914 में संक्षिप्त अवधि के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
हिन्दी शब्दसागर के निर्माण के निर्माण के लिए 1000 रूपए की सहयोग राशि सबसे पहले सर सुन्दरलाल ने ही प्रदान की थी। प्रथम संस्करण की भूमिका[2] में इसका उल्लेख करते हुए लिखा गया है —
शब्दसंग्रह के लिये, उपसमिति ने जो पुस्तकें बतलाई थीं, उनमें से शब्दसंग्रह का कार्य भी आरंभ हो गया और धन के लिये अपील भी हुई, जिससे पहले ही वर्ष 2332 के वचन मिले, जिसमें से 1902 नगद भी सभा को प्राप्त हो गए। इसमें से सबसे पहले 1000 स्वर्गीय माननीय सर सुंदरलाल सी०आई०ई० ने भेजे थे। सत्य तो यह है कि यदि प्रार्थना करते ही उक्त महानुभाव तुरंत 1000 न भेज देते तो सभा का कभी इतना उत्साह न बढ़ता और बहुत संभव था कि कोश का काम और कुछ समय के लिये टल जाता। परंतु सर सुंदरलाल से 1000 पाते ही सभा का उत्साह बहुत अधिक बढ़ गया और उसने और भई तत्परता से कार्य करना आरंभ किया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "The London Gazette". THE GAZETTE (27981): 1. 1 January 1907.
- ↑ "प्रथम संस्करण की भूमिका". मूल से 11 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 मार्च 2020.