सुभाष चन्द्र बोस के राजनैतिक विचार
भारत की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में सुभाष चन्द्र बोस का विचार था कि भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता मिले और शीघ्रातिशीघ्र मिले। इसके विपरीत कांग्रेस कमेटी के अधिकांश सदस्यों का विचार था कि भारत को पहले डोमिनियन का दर्जा मिले और फिर स्वतन्त्रता कई चरणों में मिले। [1]
यद्यपि सुभाषचन्द्र बोस और मोहनदास करमचन्द गांधी के विचार अलग-अलग थे, गांधीजी ने सन 1942 में सुभाषबाबू को 'राष्ट्रभक्तों का राष्ट्रभक्त' कहा था। इसी प्रकार सुभाषबाबू भी गांधीजी के प्रशंसक थे और उन्हें 'बापू' कहकर बुलाते थे। हालांकि दोनों भारत को स्वतन्त्र देखना चाहते थे किन्तु स्वतन्त्रता की प्राप्ति किस मार्ग पर चलकर हो, इस बात पर 1939 तक दोनों बिल्कुल अलग-अलग राय रखते थे। सुभाषा बाबू ने साफ कह दिया था कि यदि हमे स्वतन्त्रता चाहिए तो हमे खून बहाना पड़ेगा, जो गांधी के अहिंसा के सिद्धान्त से मेल नहीं खाता था। इसी प्रकार गांधीजी औद्योगीकरण के विरुद्ध थे जबकि सुभाष बाबू भारत के मजबूत एवं आत्मनिर्भर बनने की दिशा में औद्योगीकरण को ही एकमात्र रास्ता मानते थे।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Subhas Chandra Bose Archived 2015-09-24 at the वेबैक मशीन". Sify. Retrieved 25 November 2014