सुश्रुत

शल्यचिकित्सा के जनक

सुश्रुत [1] प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। वे आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुतसंहिता के प्रणेता हैं। इनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। आज से लगभग 2800 साल पहले प्लास्टिक सर्जरी की थी।[2]

सुश्रुत
जन्म ८०० ई.पू.
भारत
राष्ट्रीयता भारत
पेशा चिकित्सा
प्रसिद्धि का कारण आयुर्वेद, शल्य क्रिया
पूर्वाधिकारी धन्वंतरी
उत्तराधिकारी चरक
धर्म हिन्दू धर्म

शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह [3] और 'सुश्रुत संहिता' [4] के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है।

सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है। 'विश्वामित्र' से कौन से विश्वामित्र अभिप्रेत हैं, यह स्पष्ट नहीं। सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था। काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है[5]। सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे। सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी आता है। अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है; वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता; इससे अनुमान होता है कि सुश्रुत संहिता के सिवाय दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी।

सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं। यह सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते हैं (शालिहोत्रेण गर्गेण सुश्रुतेन च भाषितम् - सिद्धोपदेशसंग्रह)। सुश्रुत के उत्तरतंत्र को दूसरे का बनाया मानकर कुछ लोग प्रथम भाग को सुश्रुत के नाम से कहते हैं; जो विचारणीय है। वास्तव में सुश्रुत संहिता एक ही व्यक्ति की रचना है।

सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे। इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं। सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी। सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोडऩे में विशेषज्ञता प्राप्त थी। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे। मद्य संज्ञाहरण का कार्य करता था। इसलिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी। सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे। उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया। प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे। मानव शारीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे। सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया। इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी।

  1. Monier-Williams, Monier (1899). A Sanskrit-English Dictionary. Oxford: Clarendon Press. पृ॰ 1237. मूल से 18 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  2. "Modi was half-right: World's first plastic surgeon may well have been Indian (but he wasn't Shiva)". मूल से 27 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 मई 2019.
  3. Singhal, G. D. (1972). Diagnostic considerations in ancient Indian surgery: (based on Nidāna-Sthāna of Suśruta Saṁhitā). Varanasi: Singhal Publications.
  4. Bhishagratna, Kunjalal (1907). An English Translation of the Sushruta Samhita, based on Original Sanskrit Text. Calcutta. पपृ॰ ii(introduction). मूल से 8 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 नवंबर 2017.
  5. Hoernle, A. F. Rudolf (1907). Studies in the Medicine of Ancient India: Osteology or the Bones of the Human Body. Oxford: Clarendon Press. पृ॰ 8. मूल से 31 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 नवंबर 2017.

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