सूचकाक्षर
बोलने तथा लिखने में सुविधा और समय तथा श्रम की बचत करने के उद्देश्य से कभी-कभी किसी बड़े अथवा क्लिष्ट शब्द के स्थान पर उस शब्द के किसी ऐसे सरल, सुबोध एवं संक्षिप्त रूप का प्रयोग किया जाता है जिससे श्रोताओं और पाठकों को पूरे शब्द (या मूल शब्द) का बोध सरलता से हो जाए। शब्दों के ऐसे संक्षिप्त रूप को सूचकाक्षर या संक्षेपाक्षर(याने ऐब्रिविएशन, Abbreviationing) कहते हैं।
बड़े अथवा क्लिष्ट शब्दों को संक्षिप्त या सरल बनाने की इस क्रिया में प्राय: मूल शब्द के प्रथम दो, तीन या अधिक अक्षर और यदि मूल शब्द (नाम) कई शब्दों के मेल से बना हो तो उन शब्दों के प्रथम अक्षर लेकर उन्हें अलग-अलग अक्षरों या एक स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार बनाए गए सूचकाक्षरों का प्रयोग कभी-कभी इतना अधिक होने लगता है कि मूल शब्द का प्रयोग प्राय: बिल्कुल ही बंद हो जाता है और सूचकाक्षर लिखित भाषा का अंग बनकर उस मूल शब्द का रूप ले लेता है। इसका एक सरल उदाहरण "यूनेस्को" है जो वस्तुत: "यूनाइटेड नेशंस एज्युकेशनल, साइंटिफिक ऐंड कल्चरल आर्गेनिजेशन" इस लंबे नाम में प्रयुक्त पाँच मुख्य शब्दों के प्रथम अक्षरों के मेल से बना है। इसी प्रकार अंग्रेजी में एक बहुप्रचलित शब्द "मिस्टर" (Mister) है, जिसे शायद ही कभी पूरे रूप में लिखा जाता हो। जब कभी किसी भी प्रसंग में उक्त शब्द लिखना होता है तो पूरा शब्द न लिखकर केवल उसके सूचकाक्षर Mr. से ही काम चला लिया जाता है। इसी शब्द का स्त्रीलिंग रूप "मिसेज़" या "मिस्ट्रेस" भी कभी अपने पूरे रूप में न लिखा जाकर केवल सूचकाक्षर Mrs. के रूप में ही लिखा जाता है।
इतिहास
संपादित करेंप्राणि मात्र का स्वभाव है कि वह कठिन एवं अधिक समय वाले कार्य की अपेक्षा सरल और कम समय वाले कार्य को अधिक पसंद करता है। सूचकाक्षर भी मनुष्य की इसी सहज स्वाभाविक प्रकृति की देन कहे जा सकते हैं। विद्वानों तथा भाषा विशेषज्ञों का मत है कि सूचकाक्षरों की प्रथा आदि काल से चली आ रही है। सूरकाक्षरों के प्राचीन उदाहरण प्राचीन काल के सिक्कों और शिलालेखों में आसानी से देखे जा सकते हैं जबकि सिक्कों तथा शिलालेखों पर स्थान की कमी तथा शिलालेखों पर लिखने के श्रम को बचाने के लिए भी शब्दों के संक्षिप्त रूपों या सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक काल में भी विविध देशों के सिक्कों पर सूचकाक्षर देखे जाते हैं।
प्राचीन लेखशास्त्र (Palaeography) में भी सूचकाक्षरों के अनेक उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन लेखशास्त्र में शब्दों को संक्षिप्त रूप में लिखने या मूल शब्दों के स्थान पर सूचकाक्षरों का प्रयोग करने के दो मुख्य कारण बतलाए जाते हैं -
(1) एक ही प्रसंग (या लेख) में अनेक बार प्रयुक्त होने वाले बड़े या क्लिष्ट शब्द या शब्दों को पूरे रूप में बार-बार लिखने का श्रम बचाने की इच्छा। ऐसी स्थिति में मूल शब्द या शब्दों के स्थान पर सूचकाक्षरों का प्रयोग तभी किया जाता था जब उनका अर्थ उसी प्रकार आसानी से समझ में आ जाए जिस प्रकार मूल शब्द लिखे जाने पर,
(2) लिखने का स्थान बचाने की इच्छा अर्थात् सीमित स्थान में अधिक से अधिक लिखने की इच्छा।
यदि कोई लेखक किसी वैज्ञानिक या प्राविधिक विषय की पुस्तक या लेख में किसी क्लिष्ट या बड़े शब्द के लिए किसी सरल सूचकाक्षर का प्रयोग करता है तो प्राय: देखा जाता है कि उसके द्वारा प्रयुक्त सूचकाक्षर उसी विषयक्षेत्र से संबंधित अन्य लेखक तथा विद्वान् भी शीघ्र ही अपना लेते हैं। कानूनी दस्तावेजों, सार्वजनिक और निजी कागजों तथा दिन-प्रतिदिन के उपयोग में आने वाले अन्य अनेक प्रकार के कागजों में भी प्राय: देखा जाता है कि बार-बार प्रयोग में आने वाले बड़े तथा क्लिष्ट शब्दों के सूचकाक्षर प्रचलन में आ जाते हैं। ये सूचकाक्षर पहले तो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा केवल अपने निजी उपयोग के लिए ही निर्मित किए जाते हैं, पर बाद में इन्हें सुविधाजनक जानकर धीरे-धीरे अन्य लोग भी इनका प्रयोग करने लगते हैं।
सूचकाक्षरों का सरलतम रूप वह है जिसमें किसी शब्द के लिए एक (प्राय: प्रथम) अक्षर या अधिक से अधिक दो या तीन अक्षरों का प्रयोग होता है। प्राचीन यूनान के सिक्कों में शहरों के पूरे नाम के स्थान पर उनके नाम के केवल प्रथम दो या तीन अक्षर ही मिलते हैं। इसी प्रकार प्राचीन शिलालेखों में शहरों के नाम के साथ-साथ कुछ अन्य बड़े और क्लिष्ट शब्दों के सूचकाक्षर भी मिलते हैं। प्राचीन रोम में सरकारी ओहदे, पदवी या उपाधियों का आशय केवल उनके प्रथमाक्षर से ही समझ लिया जाता था।
सूचकाक्षर जब कुछ समय तक निरंतर प्रयोग में आते रहते हैं तब कुछ काल के बाद वे लिखित भाषा के ही अंग बन जाते हैं। प्राचीन यूनानी साहित्य में ऐसे अनेक सूचकाक्षर मिलते हैं जो आधुनिक यूनानी भाषा में भी ठीक उसी रूप और अर्थ में प्रचलित हैं जिस रूप और अर्थ में वे आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व प्रचलित थे। वर्तमान काल में भी हम दैनिक जीवन की बोलचाल की तथा लिखित भाषा में ऐसे बहुत से सूचकाक्षरों का प्रयोग करते हैं तो अब भाषा के ही अंग बन चुके हैं और जिनका पूरा रूप बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है। इस प्रकार के सूचकाक्षर शायद ही कभी मूल शब्द के रूप में लिखे या बोले जाते हैं। नाटो, सीटो, सेंटो, गेस्टापो, सी.आई.डी., वी.पी. (पी.) आदि कुछ ऐसे ही सूचकाक्षर हैं।
प्राचीन मिस्र से संबंधित जो सामग्री प्राप्य है तथा जो काहिरा के म्यूजियम तथा ब्रिटिश म्यूजियम, (लंदन) में सुरक्षित हैं, उसे देखने से पता चलता है कि प्राचीन यूनानी और लैटिन भाषाओं में भी सूचकाक्षरों का प्रयोग होता था। प्राचीन यूनानी भाषा में सूचकाक्षर बनाने की विधि बहुत सरल थी। या तो मूल शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे दो आड़ी लकीरें खींचकर सूचकाक्षर बनाए जाते थे या मूल शब्द के जितने अंश को छोड़ना होता था उसका प्रथम अक्षर मूल शब्द के प्रारंभिक अंश से कुछ ऊपर लिखकर सूचकाक्षर का बोध कराया जाता था। कभी-कभी इस प्रकार दो अक्षर भी प्रारंभिक अंश से कुछ ऊपर लिखे जाते थे।
अरस्तू लिखित एथेंस के संविधान संबंधी जो हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्य हैं तथा जो पहली शताब्दी (100 ई.) के लिपिकों द्वारा लिखे माने जाते हैं, उनमें भी सूचकाक्षरों का प्रयोग मिलता है। इन ग्रंथों में कारकचिन्ह (preposition) तथा कुछ अन्य शब्दों के सूचकाक्षर निर्माण की एक नियमित विधि देखने को मिलती है।
ब्रिटिश म्यूजियम (लंदन) में "इलियड" की छठी शताब्दी की जो प्रतियाँ सुरक्षित हैं, उनमें भी सूचकाक्षरों का प्रयोग मिलता है। इन प्रतियों में जिन शब्दों के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग किया गया है, उनके प्रथम अक्षर के आगे अंग्रेजी के च् के समान चिह्न बना हुआ है जिससे यह पता चलता है कि ये शब्द संक्षिप्त रूप में लिखे गए हैं। बाइबिल में भी संतों के नामों के लिए प्राय: सूचकाक्षरों का प्रयोग किया गया है।
लैटिन भाषा में सूचकाक्षर के रूप में बड़े शब्दों के प्रथम अक्षर लिखने की प्रथा बहुतायत से मिलती है। इस विधि से प्राय: संज्ञा (व्यक्तिवाचक शब्द), नाम, पदवी, उपाधि, तथा उच्च प्रतिष्ठित लेखकों (classic writers) की कृतियों आने वाले सामान्य शब्दों को भी संक्षिप्त किया गया है। इस प्रथा के अनुसार मूल शब्द (या नाम) का प्रथम अक्षर लिखने के बाद उसके आगे एक बिंदु रखकर सूचकाक्षर का बोध कराया जाता था। लेकिन इस विथि का प्रयोग केवल एक निश्चित सीमा तक ही किया जा सकता है क्योंकि एक ही अक्षर से प्रारंभ होने वाले अनेक शब्द होते हैं। सूचकाक्षर ऐसा होना चाहिए कि उससे किसी निश्चित प्रसंग में किसी निश्चित शब्द के अतिरिक्त अन्य किसी शब्द का भ्रम न हो। शायद इस कारण लैटिन भाषा में सूचकाक्षरों के लिए मूल शब्द के प्रथम अक्षर के साथ-साथ उसके आगे कुछ विशेष संकेतचिह्न का प्रयोग भी मिलता है।
मुद्रण कला का आविष्कार होने के पूर्व लेखन कार्य में सूचकाक्षरों का प्रयोग अधिक होने लगा था। यहाँ तक कि कभी-कभी एक ही वाक्य में 4-5 सूचकाक्षरों का प्रयोग भी एक ही साथ होता था जिससे अक्सर बड़ा भ्रम हो जाता था।
आधुनिक युग में सूचकाक्षरों के प्रयोग में जिस गति से वृद्धि हुई है उसे देखते हुए यह युग अन्य बातों के साथ ही साथ सूचकाक्षरों का युग भी कहा जा सकता है। सूचकाक्षरों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि अंग्रेजी भाषा में इनके कई छोटे बड़े संग्रह तक प्रकाशित हो चुके हैं।
जैसा पहले बतलाया जा चुका है, अधिकांश सूचकाक्षर किसी खास उद्देश्य या क्षेत्र के लिए ही निर्मित किए जाते हैं। जब यह खास उद्देश्य पूरा हो चुकता है या उस क्षेत्र का कार्य समाप्त हो जाता है तो वे सूचकाक्षर भी क्रमश: लुप्त होते जाते हैं। अंतत: एक समय ऐसा भी आता है जब उनका अस्तित्व भी नहीं रह जाता। गत महायुद्ध काल में यूरोप तथा अमरीका के अनेक सरकारी विभागों तथा सैनिक कार्यों के लिए विविध सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाने लगा था। युद्धकाल के बाद जब ये सरकारी कार्यालय और विभाग अनावश्यक हो जाने के कारण बंद कर दिए गए या उन विभागों का कार्य समाप्त हो गया तो उनके लिए प्रयुक्त किए जाने वाले सूचकाक्षरों की भी कोई उपयोगिता नहीं रह गई। फलत: उस समय के अधिकांश सूचकाक्षर आज अज्ञात हो गए हैं।
अंग्रेजी भाषा में सूचकाक्षरों का प्रयोग 14वीं सदी से ही होने लगा था। 14वीं सदी में प्रचलित प्रसिद्ध सूचकाक्षर के उदाहरण के रूप में हम "कैम" (Cajm) शब्द को ले सकते हैं जो कार्मेलाइट्स (Carmelites), आगस्टिनियन्स (Augustinians), जेकोबियन्स (Jacobins) और माइनारिटीज़ (Minorities) के लिए प्रयोग किया जाता था, तथा जो इन्हीं शब्दों के प्रथम अक्षरों को मिलाकर बना है। 17वीं सदी में इंग्लैंड के इतिहास में "केबाल" (Cabal) नामक पार्लियामेंट प्रसिद्ध है। यह नाम उस समय की सरकार के पाँच मंत्रियों क्लिफोर्ड (Cliford), आर्लिंगटन (Arlington), बर्किंघम (Buckingham), ऐशली (Ashley) और लाडरडेल (Lauderadale) के प्रथम अक्षरों को मिलाकर बनाया गया था। 1930 के बाद अमरीका में इस प्रकार के नाम (सूचकाक्षर) बनाने की प्रथा तेजी से फैली। इसका परिणाम यह हुआ कि ज्ञान-विज्ञान के प्राय: सभी आधुनिक विषयों में तो सूचकाक्षर प्रचलित हो ही गए, अमरीकी सरकार के प्राय: प्रत्येक कार्यालय, विभाग, उपविभाग तक के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाने लगा। और तो और, अब तक यह प्रथा इतनी अधिक फैल चुकी है कि अमरीका की प्राय: प्रत्येक छोटी बड़ी कंपनी, विश्वविद्यालय, कालेज, संस्था, प्रतिष्ठान आदि पूरे नाम की अपेक्षा सूचकाक्षर के नाम से ही अधिक अच्छी तरह ज्ञात हैं। इस संबंध में यह भी एक मनोरंजक तथ्य ही कहा जाना चाहिए कि जिस देश को आधुनिक युग में सूचकाक्षरों की वृद्धि करने का अधिकांश श्रेय है, उसका नाम भी अंग्रेजी में पूरा न लिखा जाकर सूचकाक्षर (U.S.A.) के रूप में ही लिखा जाता है। इसी प्रकार उसकी राजधानी न्यूयार्क के लिए भी प्राय: NY लिखा जाता है। अमरीका में लोग 'कालेज ऑव दी सिटी ऑव न्यूयार्क' को सी.सी.एन.वाई. (C.C.N.Y.) कहना अधिक सुविधाजनक समझते हैं। भारत में भी अब शिक्षित समुदाय में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय पूरे नाम की अपेक्षा बी.एच.यू. (B.H.U.) के नाम से अधिक अच्छी तरह जाना जाता है।
अमरीका और यूरोप के देशों में तो अब यह एक प्रथा सी बन गई है कि किसी भी कंपनी, संस्था, एजेंसी आदि प्रतिष्ठान या प्रकाशन आदि का नामकरण करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसके नाम में प्रयुक्त शब्दों के अक्षरों से कोई सरल, सुविधाजनक सूचकाक्षर बनाया जा सके। "एस्कप" (Ascap = अमरीकन सोसायटी ऑव कंपोजर्स, आथर्स एंड पब्लिशर्स / American Society of Composers, Authors and Publishers), "लूलोप" (Lulop = लंदन यूनियन लिस्ट ऑव पीरियोडिकल्स / London Union List of Periodicals) आदि इसी प्रकार से सूचकाक्षरों के उदाहरण हैं।
अलग-अलग विषयों के सूचकाक्षर भी अलग-अलग प्रकार के हैं। पाश्चात्य संगीत को जब लिपिबद्ध करना होता है तो उसके लिए कुछ विशिष्ट सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाता है। चिकित्साजगत् में प्रचलित "टी.बी." शब्द से तो अब सामान्य जनपरिचित हैं। यह वास्तव में सूचकाक्षर ही है। गणित शास्त्र में कुछ प्रतीक सूचकाक्षरों का कार्य करते हैं। -, +, ¸, =, \, आदि प्रतीकों का परिचय पाठकों को देना आवश्यक नहीं जान पड़ता। ये भी एक प्रकार के सूचकाक्षर ही हैं। खगोल विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, गणितशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र और संगीतशास्त्र आदि विषयों का कार्य तो बिना सूचकाक्षरों के चल ही नहीं सकता। रसायनशास्त्र में विविध रासायनिक तत्वों के नाम के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग होता है। ये सूचकाक्षर प्राय: मूल अंग्रेजी शब्दों के प्रथम अक्षर ही होते हैं। जब दो तत्वों का नाम एक ही अक्षर से प्रारंभ होता है तो उनके सूचकाक्षरों में प्रथम दो अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। कुछ तत्वों के लिए, विशेषकर जो तत्व अति प्राचीन काल से ज्ञात हैं, लैटिन नामों के प्रथम अक्षरों का भी प्रयोग होता है। उदाहरणत: लोहा का सूचकाक्षर Fe है जो वस्तुत: लैटिन के 'Ferrum ' शब्द से बना है। ऐसा प्रयोग किस प्रकार होता है, इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए किसी अंग्रेजी विश्वकोष में "केमिस्ट्री" शब्द के अंतर्गत अधिक सूचना मिल सकती है।
वर्तमान काल में सूचकाक्षरों की जो वृद्धि हुई है, उसका बहुत कुछ श्रेय समाचारपत्रों को भी दिया जा सकता है। समाचारपत्रों का एक मुख्य सिद्धांत यह होता है कि कम से कम स्थान में अधिक से अधिक समाचार सारगर्भित रूप में दिए जाएँ। सूचकाक्षरों की सहायता से ही समाचार इस उद्देश्य में सफल हो पाते हैं। वर्तमान में बहुत सी राजनीतिक पार्टियों एवं संस्थाओं के नामों के लिए जो अनधिकारिक नाम प्रचलित हो गए हैं, वे वस्तुत: समाचारपत्रों की ही देन है। नाटो, सीटो और प्रसोपा जैसे नामों की कल्पना भी कभी इनके संस्थापकों ने न की होगी, पर समाचारपत्रों ने अपनी सुविधा के लिए "नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन" (उत्तर अतलांतक संधि संघटन) के लिए "नाटो" और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के लिए "प्रसोपा", भारतीय जनता पार्टी के लिये 'भाजपा' जैसे सरल और सहजग्राह्य सूचकाक्षरों का प्रयोग करना शुरू कर लिया।
समाचारपत्र राजनीतिक नेताओं के नामों के भी सूचकाक्षर बना लेते हैं। रूस के प्रधानमंत्री श्री निकिता एस क्रुश्चेव के लिए केवल "के" (K) और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री हेरोल्ड मैकमिलन के लिए केवल "मैक" (Mac) लिखकर ही काम चला लिया जाता था। अमरीका के राष्ट्रपति श्री आइसनहावर के लिए हिंदी के पत्र भी केवल आइक शब्द का प्रयोग करने लगे थे।
आधुनिक युग में सूचकाक्षरों की जो अप्रत्याशित वृद्धि हुई है उसे देखते हुए हम उन्हें साधारण भाषा के अंतर्गत प्रयोग की जाने वाली प्राविधिक भाषा (Technical Language) कह सकते हैं। गणित शास्त्र तथा रसायनशास्त्र के विषय में, जिनमें प्रयुक्त किए जाने वाले सूचकाक्षर सभी देशों में समान रूप से ज्ञात हैं, यह बात विशेष रूप से कही जा सकती है। इन विषयों के सूचकाक्षर राष्ट्रीयता, धर्म, वर्ण आदि का बंधन तोड़कर हर जगह समान रूप से प्रयुक्त होते हैं। शैक्षणिक जगत् में डिग्री और पाठ्यक्रम प्राय: सूचकाक्षरों से ही जाने जाते हैं। बी.ए., एम. ए., पी-एच.डी. आदि शब्द अब इतने अधिक प्रचलित हो चुके हैं कि इनके मूल शब्द "बैचलर ऑव आर्ट्स", "मास्टर ऑव आर्ट्स", तथा "डाक्टर ऑव फिलासफी" आदि का प्रयोग प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त शायद ही कहीं और होता हो। उद्योग, व्यवसाय आदि के क्षेत्र में भी सूचकाक्षरों की एक लंबी सूची प्रयोग में आती है। आधुनिक जीवन में सूचकाक्षरों ने इतना अधिक स्थान बना लिया है कि उनके अर्थ को जानना अब दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझा जाने लगा है।
सूचकाक्षर बनाने के नियम
संपादित करेंसूचकाक्षर बनाने के कोई निश्चित नियम नहीं हैं। किसी एक शब्द या नाम के लिए इतने अधिक सूचकाक्षर बनाए जा सकते हैं कि कभी-कभी एक ही शब्द के लिए कई सूचकाक्षर प्रचलित हो जाते हैं। जो हो, वर्तमान में विविध प्रकार के जो सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं, उनका अध्ययन करने पर हमें सूचकाक्षर बनाने के कुछ नियमों का पता चलता है, जो इस प्रकार है-
(1) सूचकाक्षरों का सरलतम रूप वह है जिसमें किसी नाम में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्दों के केवल प्रथमाक्षरों का ही प्रयोग होता है, यथा-यू॰एस॰ए॰ (यूनाइटेड स्टेट्स ऑव अमरीका), उ. प्र. (उत्तर प्रदेश), अ.भा.कां.क. (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी), आई.ए.एस. (इंडियन ऐडमिनिस्ट्रेशन सर्विस), प्रे.ट्र. (प्रेस ट्रस्ट), ए.पी.आई. (एसोशियेटेड प्रेस ऑव इंडिया), एच.आर.एच. (हिज या हर रायल हाइनेस) आदि।
(2) मूल शब्द के प्रथम और अंतिम अक्षरों को मिलाकर बनाए गए सूचकाक्षर यथा Dr. (Doctor), Mr. (Mister), Fa (Florida) आदि।
(3) मूल शब्द में प्रयुक्त कुछ अक्षरों को इस क्रम से लिखना कि वे सहज ही मूल शब्द का बोध करा दें। यथा Ltd. (Limited) Bldg. (Building) आदि।
(4) मूल शब्द का इतना प्राथमिक अंश लिखना कि उससे पूरे शब्द का बोध सहज ही हो जाए। यथा अंग्रेजी में Prof. (Professor), Wash. (Washington), तथा हिंदी में कं. (कंपनी), लि. (लिमिटेड), डॉ॰ (डॉक्टर), पं॰ (पंडित) आदि।
(5) मूल शब्द या नाम में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के कुछ ऐसे अंशों को मिलाना कि उनके मेल से एक स्वतंत्र शब्द बन सके यथा टिस्को (Tata Iron and Steel Company) गेस्टापो (Geheime Staats Polizic), रेडार (Radio detection and ranging system), Benelux (Belgium, Netherlands and Luxemburg), इम्पा (Indian Motion Pictures Producers Association) आदि।
(6) शब्दों को पूरे रूप में न कहकर (या लिखकर) केवल उनके प्रथमाक्षर ही कहना (या लिखना) यथा-ए.सी. (Alternative Current), डी.सी. (Direct Current), डी.सी. (Direct Current या Deputy Collector), ए.जी.एम. (Annual General Meeting), एच.पी. (Horse Power), एम.पी.एच. (Mile per hour) आदि।
(7) विविध-इस श्रेणी में हम ऐसे सूचकाक्षरों को रख सकते हैं जो यद्यपि किसी मूल शब्द के अंश हैं, तथापि जो अब स्वयं स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रचलित हो चुके हैं। यथा - फ्लू (इन्फ्लुएंजा), फोटो (फोटोग्राफ), आटो (आटोमोबाइल), आदि।
कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के नामों के भी अब सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं। अंग्रेजी साहित्य में जार्ज बर्नार्ड शा के लिए जी.बी.एस. और राबर्ट लुई स्टीवेन्सन के लिए आर.एल.एस. का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार राजनीति में भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति श्री फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के लिए एफ.डी.आर. और भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री आइसनहाइवर के लिए प्रयोग किए जाने वाले "आइक" सूचकाक्षर से जनसाधारण अच्छी तरह परिचित है। अंग्रेजी में फ्रेडरिक को फ्रेड, विलियन को बिल, पैट्रिशिया को पैट, हिंदी में विश्वनाथ को बिस्सु, परमेश्वरी को परमू, चमेली को चंपी आदि कहना भी वास्तव में सूचकाक्षर का ही प्रयोग करना है, तथापि नामों को इस संक्षिप्त रूप में केवल स्नेह या प्यार के कारण ही कहा जाता है।
कभी-कभी यह भी देखा गया है कि एक ही सूचकाक्षर कई शब्दों (नामों) के लिए प्रयुक्त होता है। अत: प्रसंगानुकूल ही उसका अर्थ लगाना चाहिए, अन्यथा कभी-कभी अर्थ का अनर्थ हो सकता है। अंग्रेजी के एक प्रसिद्ध सूचकाक्षर पी.सी. का अर्थ पुलिस कांस्टेबल, प्रिवी कौंसिल, पीस कमीशन, पोस्टकार्ड, पोर्टलैंड सीमेंट, पनामा केनाल, प्राइस करेंट, आदि हो सकता है। समाचारपत्रों के प्रसंग में ए.बी.सी. का अर्थ आडिट ब्यूरो सर्कुलेशन होता है, पर जब किसी राजनीतिक प्रसंग में ए.बी.सी. कहा जाता है तो इसका अर्थ अर्जेंटाइना, ब्राजील और चिली होता है। किसी हिंदी शब्दकोश में सामान्यत: सं. का अर्थ संज्ञा होता है पर किसी समाचारपत्र डायरेक्टरी में इसका अर्थ संपादक होगा।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Abbreviations.com — a database of acronyms and abbreviations
- Acronym Finder — a database of acronyms and abbreviations (over 750,000 entries)
- All Acronyms — a database of acronyms, initialisms and abbreviations (over 750,000 entries)
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