सूत्रकृताङ्ग (प्राकृत में सूयगडंग) श्वेताम्बर जैन पन्थ के १२ मुख्य अंगप्रविष्ट आगमों में से दूसरा अंग है। इसकी भाषा अर्धमागधी प्राकृत है। परम्परा के अनुसार यह गान्धार सुधर्मस्वामी द्वारा रचित है।

इस ग्रन्थ के दो मुख्य भाग हैं- प्रथम भाग काव्य रूप में है जबकि द्वितीय भाग गद्य रूप में। इसमें कथा-शैली, प्रश्नोत्तर शैली, आदि कई शैलियों का उपयोग किया ग्या है। अध्याय के आरम्भ में रचनाकार अपने शिष्य जम्बूस्वामी को विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या करते हैं और उनके द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देते हैं।

सागरमल जैन के अनुसार यह ग्रन्थ ईसापूर्व चौथी-तीसरी शताब्दी में रचा गया था। किन्तु जोहान्स ब्रोंकहोर्स्ट (Johannes Bronkhorst) का विचार है कि यह ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी के पूर्व रचित नहीं हो सकता क्योंकि इसमें बौद्ध दर्शन से सम्बन्धित सामग्री सम्मिलित है।